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वाणिज्यिक विधि
व्यक्तियों का निकाय या संघ
« »22-Jul-2024
मेसर्स Ktc इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम रणधीर बरार एवं अन्य “करार में “उत्तरवर्ती शेयरधारकों” ने एकल निकाय का गठन नहीं किया ताकि अधिनियम की धारा 2(1)(f)(iii) का अनुप्रयोग किया जा सके”। न्यायमूर्ति प्रतीक जालान |
स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ ने कहा कि यहाँ उत्तरवर्ती शेयरधारकों को सहायता संघ या भागीदार नहीं माना जा सकता।
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने मेसर्स Ktc इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम रणधीर बरार एवं अन्य के मामले में यह निर्णय दिया।
मेसर्स Ktc इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम रणधीर बरार एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- वर्तमान मामले में याचिकाकर्त्ता और प्रतिवादियों (पंद्रह व्यक्ति जिनमें से तेरह को "उत्तरवर्ती शेयरधारक" कहा गया) के बीच विवाद उत्पन्न हुआ।
- Ktc इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (याचिकाकर्त्ता) ने मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 11 के अंतर्गत उच्च न्यायालय में याचिका दायर की तथा शेयरधारक करार से उत्पन्न विवादों को हल करने के लिये मध्यस्थ की नियुक्ति की मांग की।
- एक प्रमुख प्रारंभिक प्रश्न यह था कि क्या यह याचिका न्यायालय में स्वीकार्य है, यह देखते हुए कि करार के एक पक्षकार, श्री निकोलस वल्लाडारेस, न तो भारत के नागरिक हैं और न ही भारत के स्थायी निवासी हैं।
- यहाँ मुख्य मुद्दा यह था कि क्या इस मामले में धारा 2(1)(f)(iii) लागू होगी या नहीं।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि यह विधि की स्थापित स्थिति है कि प्रतिवादियों को मध्यस्थता अधिनियम की धारा 2 (1) (f) (iii) के अंतर्गत “व्यक्तियों का संघ या निकाय” नहीं माना जा सकता है।
- न्यायालय ने कहा कि तेरह व्यक्तियों को अलग-अलग सूचीबद्ध किया गया था तथा यह किसी सहायता संघ या भागीदारी से संबंधित मामला नहीं है।
- इसलिये, न्यायालय ने माना कि “उत्तरवर्ती शेयरधारक” एक एकल इकाई का गठन नहीं करते हैं क्योंकि प्रत्येक शेयरधारक एक विशिष्ट संख्या में शेयरों की सदस्यता लेता है, परिभाषित शर्तों के अंतर्गत व्यक्तिगत रूप से कंपनी से बाहर निकलने का अधिकार रखता है और व्यक्तिगत अधिकारों तथा दायित्वों का वहन करता है।
- इसने माना कि मध्यस्थता अधिनियम की धारा 2(1)(f)(iii) के अधीन इन शेयरधारकों को एक एकल संघ के रूप में मानना, किसी कंपनी में शेयरधारकों को केवल उनकी शेयरधारिता के आधार पर सामूहिक इकाई के रूप में मानने के समान होगा।
- परिणामस्वरूप, न्यायालय ने माना कि प्रतिवादी संख्या 5 की स्थिति भारत के अतिरिक्त किसी अन्य देश के निवासी की है और इसलिये उच्च न्यायालय के पास अधिनियम की धारा 11 के अधीन याचिका पर विचार करने का अधिकार नहीं है।
अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता क्या है?
- मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 2 (1) (f) “अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता” शब्द की परिभाषा निर्धारित करती है।
- इसका अर्थ है विधिक संबंधों से उत्पन्न विवादों से संबंधित मध्यस्थता, चाहे वे संविदात्मक हों या नहीं, जिन्हें भारत में लागू विधि के अधीन वाणिज्यिक माना जाता है और जहाँ कम-से-कम एक पक्षकार:
- ऐसा व्यक्ति जो भारत के अतिरिक्त किसी अन्य देश का नागरिक है या वहाँ का स्थायी निवासी है; या
- कोई निगमित निकाय जो भारत के अतिरिक्त किसी अन्य देश में निगमित है; या
- ऐसा संघ या व्यक्तियों का निकाय जिसका केंद्रीय प्रबंधन और नियंत्रण भारत के अतिरिक्त किसी अन्य देश में किया जाता है; या
- किसी विदेशी देश की सरकार
- मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 11 (9) के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता में एकमात्र या तीसरे मध्यस्थ की नियुक्ति के मामले में, [उच्चतम न्यायालय या उस न्यायालय द्वारा नामित व्यक्ति या संस्था] पक्षों की राष्ट्रीयताओं के अलावा किसी अन्य राष्ट्रीयता के मध्यस्थ को नियुक्त कर सकता है, जहाँ पक्ष अलग-अलग राष्ट्रीयताओं के हैं।
न्यायालय द्वारा "संघ या व्यक्तियों का निकाय" शब्द की क्या व्याख्या की गई है?
- मीरा एंड कंपनी बनाम CIT (1997)
- इस मामले में न्यायालय ने आयकर अधिनियम, 1961 के संदर्भ में इस शब्द की व्याख्या की।
- इस मामले में न्यायालय ने माना कि “व्यक्तियों का संघ” “व्यक्तियों के समूह” से भिन्न और पृथक नहीं है।
- इसे इस बिंदु पर होने वाले किसी भी विवाद को टालने के लिये जोड़ा गया है कि क्या केवल व्यक्तियों के समूह को ही मूल्यांकन की इकाई माना जाना चाहिये।
- रमनलाल भाईलाल पटेल बनाम गुजरात राज्य (2008)
- न्यायालय ने इस शब्द की व्याख्या बॉम्बे जनरल क्लॉज़ एक्ट, 1904 और गुजरात कृषि भूमि सीलिंग एक्ट, 1960 के संदर्भ में की।
- न्यायालय ने इस मामले में माना कि शब्द "व्यक्तियों का संघ" और "व्यक्तियों का निकाय" (जो एक दूसरे के स्थान पर प्रयोग किये जा सकते हैं) का विधिक अर्थ है तथा यह अधिकारों एवं कर्त्तव्यों वाली इकाई को संदर्भित करता है।
- यह माना गया कि जहाँ पक्षों की इच्छा से व्यक्तियों का एक समूह किसी संयुक्त उद्यम या उपक्रम में एक साथ लगा हुआ है, उसे "व्यक्तियों का संघ/व्यक्तियों का निकाय" कहा जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता से संबंधित मामले विधान क्या हैं?
- लार्सन एंड टुब्रो SCOMI इंजीनियरिंग BHD बनाम मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी (2019):
- इस मामले में अनुबंध करने वाले पक्ष एक सहायता संघ था, जिसमें एक ओर भारतीय कंपनी और एक मलेशियाई कंपनी थी तथा दूसरी ओर मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण (MMRDA) था।
- इन परिस्थितियों में, न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि संघ एक अनिगमित संघ था, जिसमें भारतीय कंपनी प्रमुख भागीदार थी और निर्णायक सहमति उसकी थी अर्थात् संघ का केंद्रीय प्रबंधन तथा नियंत्रण भारत में था।
- अतः उच्चतम न्यायालय ने माना कि अधिनियम की धारा 11 के अधीन याचिका उच्चतम न्यायालय के समक्ष नहीं आएगी और इसलिये इसे अस्वीकार कर दिया गया।
- पर्किन्स ईस्टमैन आर्किटेक्ट्स DPC बनाम HSCC (इंडिया) लिमिटेड (2020):
- इस मामले में भी विवाद संघ और प्रतिवादी HSCC इंडिया लिमिटेड के बीच अनुबंध के अंतर्गत उत्पन्न हुआ।
- न्यायालय ने माना कि सहायता संघ का प्रमुख सदस्य एक विदेशी इकाई थी और इसलिये धारा 2(1)(f) की आवश्यकताएँ पूरी होती हैं।