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आपराधिक कानून

पुरानी और नई आपराधिक विधि में हत्या का प्रयत्न

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 20-Mar-2024

विनोद बिहारी लाल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

"SUATS निदेशक को न्यायालय ने ज़मानत दे दी, जिसने मामले की योग्यता पर बात करने से इनकार कर दिया"।

न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल

स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की पीठ ने हत्या के प्रयत्न के एक मामले में सैम हिगिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज़ (SHUATS) के निदेशक को ज़मानत दे दी।

  • उच्चतम न्यायालय ने यह टिप्पणी विनोद बिहारी लाल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में दी।

विनोद बिहारी लाल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • विवाद सैम हिगिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज़ में प्रशासन के निदेशक के रूप में आवेदक की स्थिति से उत्पन्न हुआ, जहाँ पहले गुप्तचर, एक पूर्व छात्र, ने परीक्षा आवश्यकताओं को पूरा किये बिना डिग्री की मांग की थी।
  • आरोपों से पता चलता है कि आवेदक के अनुपालन से इनकार करने के कारण पहले गुप्तचर से व्यक्तिगत शत्रुता हुई, जिसके परिणामस्वरूप उसके विरुद्ध झूठे आरोप लगाए गए।
  • इसके अलावा, साक्षियों के बयानों और CCTV फुटेज में विसंगतियों ने कथित घटना में आवेदक की संलिप्तता पर संदेह जताया है।
  • इन दावों के बावजूद, अभियोजन पक्ष का दावा है कि पहले गुप्तचर को लगी चोटें गंभीर थीं, जो हत्या के प्रयत्न का संकेत देती हैं।
  • इसके अतिरिक्त, दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 161 के तहत बयानों में कथित तौर पर आवेदक को अपराध कबूल करने और जाली दस्तावेज़ पेश करने के लिये फँसाया गया।
  • आवेदक ने ज़मानत के लिये उच्च न्यायालय में अपील की।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • अदालत ने ज़मानत दे दी लेकिन मामले की योग्यता दर्ज करने से इनकार कर दिया।

इस मामले में क्या निर्णय उद्धृत किये गए?

  • नीरू यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2014):
    • उच्चतम न्यायालय ने माना कि दाण्डिक अपराधों के इतिहास वाले व्यक्तियों से संबंधित ज़मानत आवेदनों पर विचार करते समय, हर पहलू की सावधानीपूर्वक जाँच करना अनिवार्य है।
    • आरोपों की गंभीरता और अभियुक्त के आपराधिक रिकॉर्ड पर विचार किये बिना केवल समानता के आधार पर ज़मानत देना न्याय की शिथिलता को प्रदर्शित करेगा।
    • न्यायालय ने ज़मानत देने से पहले अपराध की प्रकृति एवं गंभीरता और अभियुक्त के आपराधिक इतिहास सहित सभी प्रासंगिक कारकों पर विचार करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
  • प्रभाकर तिवारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2020):
    • उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि केवल अभियुक्त के आपराधिक इतिहास के आधार पर ज़मानत अर्ज़ी खारिज़ नहीं की जानी चाहिये।
    • इसके स्थान पर परिस्थितियों पर समग्रता से विचार करना आवश्यक होता है।
    • न्यायालय ने दोषी साबित होने तक निर्दोषता के सिद्धांत की उपेक्षा किये बिना, यहाँ तक कि आपराधिक रिकॉर्ड होने पर भी, प्रत्येक मामले के उसके गुणों के आधार पर मूल्यांकन करने के महत्त्व को रेखांकित किया।

नई और पुरानी आपराधिक विधि में हत्या के प्रयत्न की क्या स्थिति है?

प्रावधान

भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC)

भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS)

 

धारा

IPC की धारा 307 हत्या के प्रयत्न के लिये सज़ा का प्रावधान करती है।

BNS की धारा 109 हत्या के प्रयत्न के लिये सज़ा का प्रावधान करती है।

प्रमुख प्रावधान

जो कोई किसी कार्य को ऐसे आशय या ज्ञान से और ऐसी परिस्थितियों में करेगा कि यदि वह उस कार्य द्वारा मृत्यु कारित कर देता तो वह हत्या का दोषी होता है।

जो कोई भी ऐसे आशय या ज्ञान के साथ और ऐसी परिस्थितियों में कोई कार्य करता है कि, यदि उस कार्य के कारण मृत्यु हो जाती है, तो वह हत्या का दोषी होगा, उसे हत्या के प्रयत्न के लिये दण्डित किया जाएगा।

सज़ा

●       वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और ज़ुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

●       और यदि ऐसे कार्य द्वारा किसी व्यक्ति को उपहति कारित हो जाए, तो वह अपराधी या तो आजीवन कारावास से या ऐसे दण्ड से दण्डनीय होगा, जैसा एतस्मिनपूर्व वर्णित है।

●       जब कि इस धारा में वर्णित अपराध करने वाला कोई व्यक्ति आजीवन कारावास के दण्डादेश के अधीन हो, तब यदि उपहति कारित हुई हो, तो वह मृत्यु से दण्डित किया जा सकेगा।

●       वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और ज़ुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

●       और यदि ऐसे कार्य द्वारा किसी व्यक्ति को उपहति कारित हो जाए, तो वह अपराधी या तो आजीवन कारावास से या ऐसे दण्ड से दण्डनीय होगा, जैसा एतस्मिनपूर्व वर्णित है।

●       जब उप-धारा (1) के तहत अपराध करने वाला कोई भी व्यक्ति आजीवन कारावास की सज़ा के अधीन है, तो चोट लगने पर उसे मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास से दण्डित किया जा सकता है, जिसका अर्थ उस व्यक्ति के प्राकृतिक जीवन का शेष भाग होगा।