Drishti IAS द्वारा संचालित Drishti Judiciary में आपका स्वागत है










होम / करेंट अफेयर्स

आपराधिक कानून

जमानत को किसी विशिष्ट समय अवधि तक सीमित नहीं किया जा सकता

    «    »
 14-Sep-2023

रंजीत दिग्गल बनाम ओडिशा राज्य

जब उच्च न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि कोई व्यक्ति जमानत का हकदार है, तो जमानत को किसी विशिष्ट समय अवधि तक सीमित करने का कोई कारण नहीं है।

उच्चतम न्यायालय

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

उच्चतम न्यायालय (SC) ने हाल ही में उड़ीसा उच्च न्यायालय के एक आदेश को अस्वीकार कर दिया है जिसने रंजीत दिग्गल बनाम ओडिशा राज्य के मामले में एक विशेष समय अवधि के लिये जमानत पर प्रतिबंध लगाया था

पृष्ठभूमि

  • यह मामला स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 धारा 20(b)(ii)(c)/29 (Sections 20(b)(ii)(C)/29 of the Narcotic Drugs and Psychotropic Substances Act, 1985 (NDPS Act) के तहत दंडनीय अपराध से संबंधित है। यह विशेष न्यायाधीश सह अपर सत्र न्यायाधीश, बल्लीगुडा की न्यायालय में लंबित था।
  • याचिकाकर्ता ने विशेष न्यायाधीश की न्यायालय में जमानत के लिये आवेदन दिया जिसे खारिज कर दिया गया।
  • जमानत देने के लिये दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Criminal Procedure Code, 1973 (CrPC) की धारा 439 के तहत उड़ीसा उच्च न्यायालय (HC) में एक आवेदन दायर किया गया था।
  • उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता को रिहाई की तारीख से तीन महीने की अवधि के लिये अंतरिम जमानत पर रिहा करने का आदेश देते हुए अंतरिम जमानत आवेदन की अनुमति दी और याचिकाकर्ता को तीन महीने की अवधि समाप्त होने पर तुरंत ट्रायल कोर्ट के समक्ष आत्मसमर्पण करना होगा। किसी भी नियम और शर्तों का उल्लंघन करने पर अंतरिम जमानत रद्द कर दी जाएगी।
  • जमानत की समय सीमा से व्यथित होकर अपीलकर्ता ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

  • न्यायमूर्ति अभय एस. ओका. और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने अपील स्वीकार कर ली और उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया। न्यायालय ने यह भी आदेश दिया कि जमानत आदेश ट्रायल कोर्ट द्वारा मामले का निपटारा होने तक प्रभावी रहेगा।

CrPC की धारा 439

  • यह प्रावधान उच्च न्यायालय और सत्र न्यायालय को जमानत देने की विशेष शक्तियाँ प्रदान करता है।
  • यदि आरोपी हिरासत में है तो इस प्रावधान के तहत जमानत दी जा सकती है।
    • 'हिरासत में' का मतलब न केवल तब होता है जब पुलिस किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करती है या उसे रिमांड या अन्य प्रकार की हिरासत के लिये मजिस्ट्रेट के सामने पेश करती है, बल्कि तब भी होती है जब वह न्यायालय के सामने आत्मसमर्पण करता है और उसके आदेशों का पालन करता है।

CrPC के तहत जमानत के प्रकार

  • नियमित जमानत: न्यायालय जमानत राशि के रूप में राशि का भुगतान करने के बाद गिरफ्तार व्यक्ति को पुलिस हिरासत से रिहा करने का आदेश देती है। एक आरोपी CrPC की धारा 437 और 439 के तहत नियमित जमानत के लिये आवेदन कर सकता है।
  • अंतरिम जमानत: यह न्यायालय द्वारा आरोपी को अस्थायी और अल्पकालिक जमानत प्रदान करने का एक सीधा आदेश है जब तक कि उसकी नियमित या अग्रिम जमानत याचिका न्यायालय के समक्ष लंबित न हो।
  • अग्रिम जमानत : गैर-जमानती अपराध के लिये गिरफ्तारी की आशंका वाला व्यक्ति CrPC की धारा 438 के तहत उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय में अग्रिम जमानत के लिये आवेदन कर सकता है।

NDPS(नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्स्टांसेस) एक्ट

  • NDPS अधिनियम, या स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, नशीले पदार्थों और मन:प्रभावी पदार्थों की अवैध तस्करी और दुरुपयोग से निपटने के लिये बनाया गया एक कानून है।
  • यह नवंबर 1985 को लागू हुआ।
  • यह नशीले पदार्थों और मन:प्रभावी पदार्थों से संबंधित विभिन्न अपराधों के लिये दंड निर्धारित करता है, जिसका उद्देश्य उनके दुरुपयोग को रोकना और सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा को बढ़ावा देना है।

धारा 20 (b)(ii)(c) -

धारा 20 - भांग के पौधे और भांग के संबंध में उल्लंघन के लिये सजा - जो कोई, इस अधिनियम के किसी उपबंध या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम या निकाले गए किसी आदेश या दी गई अनुज्ञप्ति की शर्त के उल्लंघन में, -

(ख) कैनेबिस का उत्पादन, विनिर्माण, कब्जा, विक्रय, क्रय, परिवहन अंतर्राज्यीय आयात, अंतर्राज्यीय निर्यात या उपयोग करेगा;

(i) जहाँ उल्लंघन खंड (क) के संबंध में है वहांँ, कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से भी, जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा; और

(ii) जहाँ उल्लंघन खंड (ख) के संबंध में है, -                 

(c) और जहाँ वाणिज्यिक मात्रा से संबंधित है, वहां, कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु 20 वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी, जो एक लाख रुपए से कम का नहीं होगा किंतु जो दो लाख रुपए तक का हो सकेगा,

धारा 29 - दुष्प्रेरण और आपराधिक षड्यंत्र के लिये दंड-(1) जो कोई इस अध्याय के अधीन दंडनीय किसी अपराध का दुष्प्रेरण करेगा या ऐसा कोई अपराध करने के आपराधिक षड्यंत्र का पक्षकार होगा, वह चाहे ऐसा अपराध ऐसे दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप या ऐसे आपराधिक षड्यंत्र के अनुसरण में किया जाता है या नहीं किया जाता है और भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 116 में किसी बात के होते हुए भी, उस अपराध के लिये उपबन्धित दंड दिया जाएगा।

(2) वह व्यक्ति इस धारा के अर्थ में किसी अपराध का दुष्प्रेरण करता है या ऐसा कोई अपराध करने के आपराधिक षड्यंत्र का पक्षकार होता है जो भारत में, भारत से बाहर और परे किसी स्थान में ऐसा कोई कार्य किये जाने का भारत में दुष्प्रेरण करता है या ऐसे आपराधिक षड्यंत्र का पक्षकार होता है, जो-

(क) यदि भारत के भीतर किया जाता तो, अपराध गठित करता, या

(ख) ऐसे स्थान की विधियों के अधीन स्वापक औषधियों अथवा मनः प्रभावी पदार्थों से सम्बन्धित ऐसा अपराध है, जिसमें उसे ऐसा अपराध गठित करने के लिये अपेक्षित वैसे ही या उसके समरूप सभी विधिक शर्तें हैं जैसी उसे इस अध्याय के अधीन दंडनीय अपराध गठित करने के लिये अपेक्षित विधिक शर्तें होती यदि ऐसा अपराध भारत में किया जाता है।