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सांविधानिक विधि

बंधित श्रम पद्धति (उत्सादन) अधिनियम, 1976

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 04-Oct-2023

टिप्पणी:

छह ठेकेदारों को दो मज़दूरों का अपहरण करने, उन्हें लंबे समय तक बंधुआ मज़दूर के रूप में कार्य करने के लिये मज़बूर करने और अंततः उनकी हथेलियों को कलाई से काटने का दोषी पाया गया है।

उड़ीसा उच्च न्यायालय

स्रोत: उड़ीसा उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

उड़ीसा उच्च न्यायालय (HC) ने छह ठेकेदारों के अपराध के फैसले की पुष्टि की है, जिन्हें दो मज़दूरों का अपहरण करने, उन्हें लंबे समय तक बंधुआ मज़दूरों के रूप में कार्य करने के लिये मज़बूर करने और अंततः उनकी हथेलियों को कलाई से काटने का दोषी ठहराया गया था।

मामले की पृष्ठभूमि

  • कुछ अपीलकर्त्ताओं ने पीड़ितों और इस मामले में शामिल कुछ अन्य मज़दूरों से एक ईंट-भट्ठे पर रोज़गार के लिये रायपुर जाने का अनुरोध किया, जहाँ उन्हें 20,000/- रुपये प्रति माह कमाने का अवसर देने का वादा किया गया था।
    • इस तरह के प्रस्ताव से आकर्षित होकर, निर्दोष पीड़ित और अन्य लोग अपीलकर्त्ताओं का पीछा करते हुए रायपुर तक पहुँच गये।
  • अपीलकर्ता चाहते थे कि पीड़ित उल्लिखित नौकरी के लिये हैदराबाद में उनके साथ कार्य करें लेकिन कुछ संदिग्धों के आने पर, पीड़ितों ने अन्य लोगों के साथ मिलकर प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।
    • इस बात से इनकार करने पर, अपीलकर्त्ता आक्रामक हो गये और पीड़ितों को जान से मारने की धमकी देते हुए कहा कि अगर उन्होंने उनकी आज्ञाओं का पालन नहीं किया, जान से मार दिया जाएगा।
  • भय के मारे दोनों पीड़ित और अन्य मज़दूर हैदराबाद जाने वाली ट्रेन में चढ़ गये, रास्ते में दो पीड़ितों को छोड़कर लगभग सभी मज़दूर अपीलकर्त्ताओं के नियंत्रण से भागने में सफल रहे।
  • अपीलकर्त्ताओं ने पीड़ितों को ट्रेन से उतरने के लिये मज़बूर किया और उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के बाद, उन्हें एक आरोपी व्यक्ति के आवास में कैद कर दिया, जहाँ तीन अपीलकर्त्ताओं ने दोनों पीड़ितों के साथ शारीरिक रूप से मारपीट की और दो लाख रुपये के भुगतान की मांग की।
  • पीड़ितों और उनके परिवार के सदस्यों द्वारा मांगे गये पैसे की व्यवस्था नहीं कर पाने पर पीड़ितों को कपास के खेतों में बंधुआ मज़दूर के रूप में कार्य करने के लिये मज़बूर किया गया।
  • पीड़ितों को एक कमरे में कैद कर दिया गया और एक रात, उन्हें जबरन जंगल में ले जाया गया जहाँ उनसे अपनी जान या अंग देने के लिये कहा गया।
  • इसके बाद, पीड़ितों को कुछ आरोपी व्यक्तियों ने पकड़ लिया और उनमें से दो आरोपियों ने दोनों पीड़ितों की दाहिनी हथेलियाँ काट दीं।
  • एक होटल मालिक ने उनके घावों पर पट्टी बांधने में सहायता की और गाँव वालों की सहायता से वे उपचार के लिये भवानीपटना के जिला मुख्यालय अस्पताल पहुँचे।
  • पुलिस ने प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की, और वर्तमान अपीलकर्त्ताओं पर आरोप पत्र दायर किया गया।
  • उन्हें अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, धरमगढ़, उड़ीसा द्वारा भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 307/364A/365/342/370/506/420/323/326/201/34 और बंधित श्रम पद्धति (उत्सादन) अधिनियम, 1976 की धारा 16/17 के तहत विभिन्न अपराधों के लिये दोषी ठहराया गया था।
  • इसलिये, अपीलकर्त्ताओं ने उच्च न्यायालय में अपील की।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

  • न्यायाधीश बिभु प्रसाद राउत्रे और चितरंजन दाश की खंडपीठ ने कहा कि, "वर्तमान मामले में हम एक ऐसे मामले पर विचार कर रहे हैं, जिसमें बंधुआ मज़दूरों को तथाकथित श्रम ठेकेदार के हाथों एक पूर्ण बर्बर कृत्य का सामना करना पड़ता है, जिसने न केवल मज़दूरों को मूर्ख बनाया और धोखे से उनका बकाया पैसा ले लिया, बल्कि उनके साथ सबसे भयानक कृत्य भी किया, जिसके सामने मृत्यु भी एक आकर्षक विकल्प लगती है”
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 364a के तहत अपीलकर्त्ताओं की दोषसिद्धि को धारा 367 के तहत एक धारा में परिवर्तित किया गया और भारतीय दंड संहिता की धारा 323/342/326/307/420/120b और 201/34 के तहत उनकी सजा को बरकरार रखा गया।

बंधुआ मजदूरी

  • परिचय:
    • बंधुआ मज़दूरी, जिसे ऋण बंधन या दासता के रूप में भी जाना जाता है, आधुनिक समय की गुलामी का एक रूप है, जिसमें व्यक्तियों को कर्ज चुकाने के लिये उनकी इच्छा के विरुद्ध कार्य करने के लिये मज़बूर किया जाता है।
    • सामान्यतः बंधुआ मज़दूरी तब होती है, जब कोई व्यक्ति किसी नियोक्ता, मकान मालिक या साहूकार से पैसा उधार लेता है या अग्रिम भुगतान लेता है। जब वे कर्ज चुकाने में असमर्थ हो जाते हैं तो वे बंधुआ मज़दूर बन जाते हैं।
    • इस प्रथा पर रोक लगाने के लिये वर्ष 1976 में एक विशिष्ट कानून बनाया गया था, जिसे बंधित श्रम पद्धति (उत्सादन) अधिनियम के रूप में जाना जाता है। इसे निम्नलिखित विधानों द्वारा भी समर्थन प्राप्त है:
      • अनुबंध श्रम (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम, 1970
      • अंतर-राज्य प्रवासी कामगार (रोज़गार और सेवा शर्तों का विनियमन) अधिनियम, 1979
      • न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948
  • सांविधिक प्रावधान:
    • भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 21 और 23 के तहत भारत में बंधुआ मज़दूरी निषिद्ध है।

अनुच्छेद 21: प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण — किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं।

अनुच्छेद 23: मानव के दुर्व्यापार और बलात्‌‌ श्रम का प्रतिषेध—

(1) मानव का दुर्व्यापार और बेगार तथा इसी प्रकार का अन्य बलात्‌ श्रम प्रतिषिद्ध किया जाता है और इस उपबंध का कोई भी उल्लंघन अपराध होगा जो विधि अनुसार दंडनीय होगा।

(2) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को सार्वजनिक प्रयोजनों के लिये अनिवार्य सेवा अधिरोपित करने से निवारित नहीं करेगी। ऐसी सेवा अधिरोपित करने में राज्य केवल धर्म, मूलवंश, जाति या वर्ग या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।

  • संबंधित निर्णयज विधि:
      • बंधुआ मुक्ति मोर्चा बनाम भारत संघ एवं अन्य (वर्ष 1997), वर्तमान मामले में बंधुआ मज़दूरों की मुक्ति के लिये कार्य करने वाले एक गैर सरकारी संगठन बंधुआ मुक्ति मोर्चा ने भारत के उच्चतम न्यायालय में मामला दायर किया। इस मामले में बंधुआ मज़दूरी को खत्म करने और मज़दूरों के कल्याण तथा अधिकारों को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से महत्त्वपूर्ण विधिक विकास और निर्णय हुए हैं, जिनमें से कुछ निम्नानुसार हैं:
      • पहचान और पुनर्वास: न्यायालय ने सरकार को देश भर में बंधुआ मज़दूरों की पहचान करने और उनका पुनर्वास करने का निर्देश दिया। इसमें बंधुआ मज़दूरी के पीड़ितों की पहचान करने के लिये सर्वेक्षण करने के महत्त्व पर ज़ोर दिया गया।
      • रिहाई और मुआवज़ा: जिन बंधुआ मज़दूरों की पहचान की गई, उन्हें उनकी शोषणकारी स्थितियों से शीघ्र रिहा किया जाना था। न्यायालयों ने इन व्यक्तियों को मुआवज़ा देने का भी आदेश दिया।
      • विधिक सहायता: न्यायालय ने बंधुआ मज़दूरों को न्याय पाने और उनकी स्वतंत्रता वापस पाने में सहायता करने के लिये विधिक सहायता प्रदान करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
      • निगरानी क्रियाविधि: न्यायालय ने इन दिशा अनुदेशों के कार्यान्वयन की निगरानी करने और यह सुनिश्चित करने के लिये कि बंधुआ मज़दूरी का उन्मूलन हो, विभिन्न स्तरों पर निगरानी समितियों की स्थापना की सिफारिश की।
      • सरकार की जवाबदेही: बंधुआ मज़दूरी के खिलाफ कानून लागू करने और शोषण के इस रूप को खत्म करने के लिये सक्रिय कदम उठाने के लिये सरकार को जवाबदेह ठहराया गया।

बंधुआ श्रम पद्धति (उत्सादन) अधिनियम, 1976 में शामिल प्रावधान

  • यह लोगों के कमज़ोर वर्गों के आर्थिक और शारीरिक शोषण को रोकने और उससे जुड़े या उसके आनुषंगिक मामलों के लिये बंधुआ मज़दूरी पद्धति के उन्मूलन का प्रावधान करने के लिये बनाया गया एक अधिनियम है।
    • वर्तमान मामला अधिनियम के निम्नलिखित दो प्रावधानों से संबंधित है:
      • धारा 16 - बंधुआ मज़दूरी कराने के लिये सजा - बंधित श्रम के प्रवर्तन के लिये दंड - जो कोई इस अधिनियम के प्रारंभ के पश्चात् किसी व्यक्ति को कोई बंधित श्रम करने के लिये विवश करेगा वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, और ज़ुर्माने से भी, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा।
      • धारा 17 - बंधित ऋण हेतु दिये जाने वाले दंड - जो कोई इस अधिनियम के प्रारंभ के पश्चात् कोई बंधित ऋण प्रदान करेगा, वह कारावास से जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से भी, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा।