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आपराधिक कानून
BNSS के अंतर्गत शांति भंग
« »27-Jun-2024
श्री मिनोंड्रो अरेंग बनाम तालिका टी. संगमा “धारा 146, CrPC के अधीन कुर्की आदेश के लिये शांति भंग की संभावना के साक्ष्य की आवश्यकता होती है”। न्यायमूर्ति बी. भट्टाचार्य |
स्रोत: मेघालय उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
मेघालय उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया है कि एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट केवल भूमि पर कब्ज़े का निर्धारण करने में असमर्थता के आधार पर दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 146 के अधीन कुर्की आदेश जारी नहीं कर सकता है।
- श्री मिनोंड्रो अरेंग बनाम तालिका टी. संगमा के मामले में न्यायमूर्ति बी. भट्टाचार्य ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ऐसे आदेशों के लिये शांति भंग होने के संभावित साक्ष्य की आवश्यकता होती है, जैसा कि CrPC की धारा 145 में निर्धारित है।
- यह निर्णय भूमि विवाद मामलों में पक्षकारों के अधिकारों की रक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिये प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं का पालन करने के महत्त्व को रेखांकित करता है।
श्री मिनोंड्रो अरेंग बनाम तालिका टी. संगमा की पृष्ठभूमि क्या थी?
- प्रतिवादी (तालिका टी. संगमा) ने 05 फरवरी 2021 को अम्पाती पुलिस स्टेशन में एक प्राथमिकी दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्त्ता (श्री मिनोंड्रो अरेंग) दक्षिण-पश्चिम गारो हिल्स ज़िले के अम्पाती के इचाकुरी में उसकी ज़मीन पर बलात् कब्ज़ा करने का प्रयास कर रहा था।
- पुलिस ने CrPC की धारा 145 के अधीन कार्यकारी मजिस्ट्रेट को एक रिपोर्ट भेजी और कार्यकारी मजिस्ट्रेट ने कार्यवाही प्रारंभ की।
- 20 अप्रैल 2022 को कार्यकारी मजिस्ट्रेट ने आदेश पारित किया:
- धारा 146(1) CrPC के अधीन विवादित भूमि की कुर्की का निर्देश दिया गया।
- इसका उद्देश्य दोनों पक्षों को भूमि पर किसी भी आर्थिक गतिविधि में संलग्न होने से रोकना था।
- यह निषेध कुर्की अवधि के दौरान या गारो हिल्स स्वायत्त ज़िला परिषद (GHADC) द्वारा प्रक्रिया और सीमांकन पूरा होने तक प्रभावी रहना था।
- याचिकाकर्त्ता ने इस आदेश को इस आधार पर चुनौती दी कि:
- कार्यपालक मजिस्ट्रेट ने CrPC की धारा 145 और 146(1) के प्रावधानों का पालन नहीं किया।
- यह आदेश भूमि के कब्ज़े को लेकर पक्षों के बीच शांति भंग होने की संभावना को ध्यान में रखे बिना पारित किया गया।
- प्रतिवादी ने तर्क दिया कि:
- यह कार्यवाही शांति भंग की आशंका से संबंधित पुलिस रिपोर्ट के आधार पर आरंभ की गई थी।
- मौजूदा स्थिति और पक्षों के बीच सीमा विवाद से संबंधित 21 फरवरी 2020 के पिछले आदेश के कारण, कुर्की आदेश करना आवश्यक था।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने माना कि धारा 146(1) CrPC के अधीन कुर्की का आदेश अनुचित था क्योंकि:
- शांति भंग होने की किसी भी संभावना का अभाव था।
- यह सिद्धांत कि केवल कब्ज़े का निर्धारण करने में असमर्थता ही कुर्की के लिये अपर्याप्त आधार है।
- न्यायमूर्ति बी. भट्टाचार्य ने कहा कि संबंधित कार्यकारी मजिस्ट्रेट ने मौजूदा तथ्यात्मक स्थिति के आधार पर कोई निष्कर्ष दर्ज करने में विफल रहने की गलती की है, जिससे यह पता लगाया जा सके कि प्रासंगिक समय पर विवादित भूमि पर किस पक्ष का कब्ज़ा था।
- न्यायालय ने माना कि धारा 146(1) CrPC के अधीन कुर्की के वैध आदेश के लिये एक पूर्व शर्त धारा 145(1) CrPC के अधीन परिकल्पित स्थिति का अस्तित्व है, विशेष रूप से, विवादित भूमि पर कब्ज़े को लेकर पक्षों के बीच शांति भंग होने की संभावना।
- न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि धारा 145(4) CrPC में यह प्रावधान है कि कब्ज़े के प्रश्न का निर्णय, विवादित स्थल पर कब्ज़े के अधिकार के किसी भी पक्ष के गुण-दोष या दावे के संदर्भ के बिना किया जाना चाहिये।
- धारा 145 CrPC के अधीन कार्यवाही में, कब्ज़े से संबंधित विवादों का निपटारा स्वामित्व के अभिलेखित साक्ष्यों के बजाय प्रस्तुत किये गए बयानों, दर्ज किये गए साक्ष्यों और पक्षों की सुनवाई के आधार पर किया जाना चाहिये।
BNSS की धारा 164 क्या है?
- परिचय:
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 164 उस प्रक्रिया से संबंधित है जहाँ भूमि या जल से संबंधित विवाद से शांति भंग होने की संभावना हो।
- इससे पहले यह मामला CrPC की धारा 145 के अधीन निपटाया जाता था।
- BNSS की धारा 164(1) में कहा गया है कि जब भी कोई कार्यकारी मजिस्ट्रेट किसी पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट या अन्य सूचना से संतुष्ट हो कि उसके स्थानीय अधिकार क्षेत्र के भीतर किसी भूमि या जलक्षेत्र या उसकी सीमाओं के संबंध में विवाद है, जिससे शांति भंग होने की संभावना है, तो वह अपने संतुष्ट होने के आधारों को बताते हुए लिखित रूप में आदेश देगा तथा ऐसे विवाद में संबंधित पक्षों को निर्दिष्ट तिथि और समय पर व्यक्तिगत रूप से या अधिवक्ता के माध्यम से न्यायालय में उपस्थित होने तथा विवादित स्थल के वास्तविक कब्ज़े के संबंध में अपने-अपने दावों के लिखित बयान देना होगा।
- BNSS की धारा 164(4) में कहा गया है कि मजिस्ट्रेट, विवादित स्थल पर कब्ज़े के अधिकार के संबंध में किसी भी पक्षकार के दावे या गुण-दोष पर ध्यान दिए बिना, इस प्रकार दिये गए बयानों का अध्ययन करेगा, पक्षकारों की सुनवाई करेगा, उनके द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले सभी साक्ष्य प्राप्त करेगा, यदि कोई हो, तथा ऐसा अतिरिक्त साक्ष्य स्वीकार करेगा जैसा वह आवश्यक समझे, और यदि संभव हो तो यह निर्णय करेगा कि उपधारा (1) के अधीन उसके द्वारा दिये गए आदेश की तिथि को विवादित स्थल कौन-से पक्षकार के कब्ज़े में था।
- इसमें यह प्रावधान है कि यदि मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि किसी पक्षकार को पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट या अन्य सूचना मजिस्ट्रेट को प्राप्त होने की तिथि से ठीक दो महीने के भीतर या उस तिथि के पश्चात और उपधारा (1) के अधीन उसके आदेश की तिथि से पूर्व बलपूर्वक और अनुचित तरीके से निष्कासित किया गया है तो वह इस प्रकार निष्कासित किये गए पक्षकार को इस प्रकार मानेगा जैसे उपधारा (1) के अधीन उसके आदेश की तिथि को वह विवादित स्थल उसी पक्षकार के कब्ज़े में था।
- BNSS की धारा 164 के लिये शर्त
- पक्षों के बीच संघर्ष।
- इस संघर्ष में शांति भंग होने (सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने) की संभावना है।
- विवाद के विषय में शामिल हैं:
- संरचनाएँ
- वाणिज्यिक क्षेत्र
- मछली पकड़ने का तालाब
- कृषि उपज
- संपत्ति की सीमाएँ
- किराये की आय
- संपत्ति से वित्तीय लाभ
- दावा किया गया कि कब्ज़ा मजिस्ट्रेट के प्रारंभिक निर्देश से पूर्व 60 दिन की अवधि के भीतर हुआ था।
- इस मामले पर निर्णय लेना मजिस्ट्रेट के विधिक अधिकार क्षेत्र में आता है।
- निर्णयज विधियाँ:
- मोहम्मद शाकिर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2022): उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि सिविल वादों के लंबित रहने के कारण धारा 145 CrPC के अधीन कार्यवाही को समाप्त करते समय, मजिस्ट्रेट संबंधित संपत्ति पर पक्षों के अधिकारों के संबंध में कोई टिप्पणी नहीं कर सकता है या कोई निष्कर्ष नहीं दे सकता है।
BNSS की धारा 165 क्या है?
- BNSS की धारा 165 विवाद के विषय को कुर्क करने तथा रिसीवर नियुक्त करने की शक्ति से संबंधित है।
- इससे पहले यह मामला CrPC की धारा 146 के अधीन आता था।
- इसमें कहा गया है कि यदि मजिस्ट्रेट धारा 164 की उपधारा (1) के अधीन आदेश देने के पश्चात किसी भी समय मामले को आपात स्थिति का समझता है, या यदि वह निर्णय करता है कि पक्षकारों में से कोई भी उस समय धारा 164 में निर्दिष्ट कब्ज़े में नहीं था, या यदि वह स्वयं यह तय करने में असमर्थ है कि उनमें से कौन-सा पक्षकार उस समय विवाद के विषय पर ऐसे कब्ज़े में था, तो वह विवाद के विषय को कुर्क कर सकता है जब तक कि सक्षम न्यायालय उस पर कब्ज़े के अधिकारी व्यक्ति के संबंध में, पक्षकारों के अधिकारों का निर्धारण नहीं कर देता है।
- इसमें यह प्रावधान है कि यदि मजिस्ट्रेट को यह विश्वास हो जाए कि अब विवाद के विषय के संबंध में शांति भंग होने की कोई संभावना नहीं है तो वह किसी भी समय कुर्की वापस ले सकता है।
- एक बार जब सिविल न्यायालय ने मामले को अपने अधिकार में ले लिया, तो BNSS की धारा 165/164 के अधीन कार्यवाही आगे नहीं बढ़ सकती और उसे समाप्त कर देना चाहिये।
- स्वामित्व या कब्ज़े के संबंध में पक्षों के पारस्परिक अधिकारों का निर्धारण अंततः सिविल न्यायालय द्वारा किया जाएगा।