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आपराधिक कानून

हिस्ट्रीशीटर के खिलाफ FIR रद्द करना

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 11-Aug-2023

मोहम्मद वाजिद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

"यदि प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) किसी अपराध के घटित होने का खुलासा करने में विफल रहती है, तो न्यायालय को केवल इस आधार पर आपराधिक मामले को रद्द करने से इनकार नहीं करना चाहिये कि आरोपी हिस्ट्रीशीटर (आपराधिक पृष्ठभूमि वाला व्यक्ति जिसका लंबा आपराधिक रिकॉर्ड है) है।"

न्यायमूर्ति बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला की पीठ ने कहा कि जब प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) को रद्द करने की बात आती है, तो याचिका को अस्वीकार करने के लिये आरोपी के आपराधिक इतिहास को एकमात्र आधार नहीं माना जा सकता है।

  • उच्चतम न्यायालय ने मोहम्मद वाजिद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के प्रकरण/वाद में यह टिप्पणी की।

पृष्ठभूमि

  • पहले सूचनादाता द्वारा आरोपी के खिलाफ निम्नलिखित धाराओं के तहत दंडनीय अपराध का आरोप लगाते हुए एक प्राथमिकी ((FIR)) दर्ज की गई थी:
    • भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 323 (Section 323 of Indian Penal Code, 1860 (IPC): किसी को स्वेच्छा से क्षति पहुँचाने के लिये दंड
    • भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 395 (Section 395 of Indian Penal Code, 1860 (IPC): डकैती
    • भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 504 (Section 504 of Indian Penal Code, 1860 (IPC): शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान
    • भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 506 (Section 506 of Indian Penal Code, 1860 (IPC): आपराधिक धमकी के लिये दंड
  • उक्त प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) घटना घटित होने के एक वर्ष बाद दर्ज की गई थी, इसमें तिथि और समय दर्ज नहीं था और प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करने में अत्यधिक देरी का कोई संभावित कारण नहीं बताया गया था।
  • उच्च न्यायालय ने प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) को रद्द करने के लिये रिट आवेदन पर विचार करने से इनकार कर दिया और उसे खारिज़ कर दिया।
  • आरोपियों ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की।
  • प्रतिवादियों ने इस तथ्य पर विश्वास किया कि आरोपी का आपराधिक इतिहास है।
  • हालाँकि, उच्चतम न्यायालय ने पहले सूचनादाता द्वारा दर्ज करवाए गये प्रकरण/वाद को मनगढ़ंत पाया और प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) को रद्द करने की अनुमति दी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ (Court’s Observations)

न्यायालय ने निम्नलिखित टिप्पणी की:

  • इसमें कहा गया है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करने में देरी, प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) को रद्द करने का आधार नहीं हो सकती।
  • हालाँकि, प्रकरण/वाद के रिकॉर्ड से सामने आने वाली अन्य उपस्थित परिस्थितियों में देरी, अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत किये गये पूरे प्रकरण/वाद को स्वाभाविक रूप से असंभव बना देती है और कभी-कभी यह प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) और उसके बाद की जाने वाली कार्यवाही को रद्द करने का एक अच्छा आधार बन सकता है।
  • यह सुनिश्चित करना राज्य का कर्तव्य है कि कोई भी अपराध बिना दंड के न हो, लेकिन साथ ही राज्य का यह सुनिश्चित करना भी कर्तव्य है कि देश के किसी भी नागरिक को अनावश्यक रूप से परेशान न किया जाए

प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR)

  • प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) शब्द को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973 (CrPC) में परिभाषित नहीं किया गया है।
  • दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973 (CrPC) की धारा 207 के अतिरिक्त, इस संहिता में FIR शब्द का उपयोग नहीं किया गया है, जिसके तहत मजिस्ट्रेट को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973 (CrPC) की धारा 154 (1) के तहत दर्ज की गई FIR की एक प्रति आरोपी को देने की आवश्यकता होती है।
  • दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 154 (1) के तहत प्राप्त सूचना को FIR कहा जाता है।

प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) के मूल सिद्धांत:

  • यह पुलिस अधिकारी को दी गई जानकारी का एक अंश होती है।
  • प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) संज्ञेय अपराध से संबंधित होनी चाहिये
  • यह समय-समय पर सबसे पहले रिपोर्ट की गई जानकारी का एक अंश है
  • इसे पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी द्वारा या उसके निर्देशन में लिखित रूप में प्रस्तुत किया जायेगा।
  • इसे सूचनादाता को पढ़कर सुनाया जायेगा।
  • इस पर सूचना देने वाले व्यक्ति के हस्ताक्षर होंगे।
  • धारा 154 की उपधारा (1) के तहत दर्ज की गई जानकारी की एक प्रति सूचनादाता को तुरंत निःशुल्क दी जाएगी।
  • यदि किसी पुलिस स्टेशन का प्रभारी अधिकारी सूचना दर्ज करने से इनकार करता है, तो सूचनादाता ऐसी सूचना का सार लिखित रूप में और डाक द्वारा पुलिस अधीक्षक को भेज सकता है

प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) को रद्द करना

  • दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482 के तहत उच्च न्यायालय द्वारा एक प्रथम सूचना रिपोर्ट को रद्द किया जा सकता है।
  • उपर्युक्त प्रावधान न्याय के उद्देश्यों को पूरा करने के लिये उच्च न्यायालय को एक अंतर्निहित शक्ति प्रदान करता है।
  • सक्षम क्षेत्राधिकार वाले संबंधित उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की जानी चाहिये।
  • इसे तब रद्द कर दिया जाता है जब न्यायालय को यह पता चलता है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट निरर्थक या दुर्भावनापूर्ण आधार पर दर्ज की गई है।
  • भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 136 और 142 के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट को रद्द करने का पर्यवेक्षी क्षेत्राधिकार उच्चतम न्यायालय के पास है।

हरियाणा राज्य एवं अन्य बनाम भजन लाल और अन्य मामले (1992) में दिशानिर्देश

प्रथम सूचना रिपोर्ट को रद्द करने के लिये न्यायालय ने निम्नलिखित मापदंड निर्धारित किये थे:

  • जहाँ आरोपों से प्रथमदृष्टया कोई अपराध नहीं बनता या आरोपी के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता।
  • जहाँ आरोपों से संज्ञेय अपराध का खुलासा नहीं होता है।
  • जहाँ सूचना के समर्थन में एकत्र किये गये साक्ष्य किसी अपराध के घटित होने का खुलासा नहीं करते हैं और आरोपी के खिलाफ मामला बनाते हैं।
  • जहाँ, प्रथम सूचना रिपोर्ट में लगाए गये आरोप संज्ञेय अपराध नहीं हैं, बल्कि केवल गैर-संज्ञेय अपराध हैं, तो मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना पुलिस अधिकारी द्वारा किसी भी जांच की अनुमति नहीं दी जाती है, जैसा कि संहिता की धारा 155 (2) के तहत विचार किया गया है।
  • जहाँ प्रथम सूचना रिपोर्ट या शिकायत में लगाए गये आरोप निरर्थक और स्वाभाविक रूप से असंभव हों
  • जहाँ दंड प्रक्रिया संहिता या किसी अधिनियम में कार्यवाही शुरू करने और जारी रखने के संबंध में स्पष्ट कानूनी रोक या अलग प्रक्रिया मौजूद है।
  • जब अभियुक्त पर प्रतिशोध लेने के गुप्त उद्देश्य से एवं निजी और व्यक्तिगत द्वेष के कारण उसे परेशान करने की दृष्टि से दुर्भावनापूर्ण तरीके से FIR दर्ज किया गया था।