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हिंदू विधि के अधीन विवाह संस्कार

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 01-May-2024

डॉली रानी बनाम मनीष कुमार चंचल

"अपेक्षित समारोहों के अभाव में किसी संस्था द्वारा केवल प्रमाण-पत्र जारी करना वैध हिंदू विवाह नहीं माना जाता है”।

न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना एवं ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना एवं ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि अपेक्षित समारोहों के अभाव में किसी संस्था द्वारा प्रमाण-पत्र जारी करना वैध हिंदू विवाह नहीं है।

  • उच्चतम न्यायालय ने यह टिप्पणी डॉली रानी बनाम मनीष कुमार चंचल मामले में दी।

डॉली रानी बनाम मनीष कुमार चंचल मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • याचिकाकर्त्ता (पत्नी) एवं प्रतिवादी (पति) प्रशिक्षित वाणिज्यिक पायलट थे।
  • उनकी सगाई 07 मार्च 2021 को होनी थी तथा दावा किया गया था कि उनका विवाह 07 जुलाई 2021 को होगा।
  • उन्होंने वैदिक जनकल्याण समिति (पंजीकृत) से "विवाह प्रमाण-पत्र" एवं उत्तर प्रदेश विवाह पंजीकरण नियम, 2017 के अंतर्गत "विवाह के पंजीकरण का प्रमाण-पत्र" प्राप्त किया।
  • हालाँकि, हिंदू रीति-रिवाज़ों के अनुसार वास्तविक वैवाहिक संस्कार 25 अक्टूबर 2022 को निर्धारित किया गया था, लेकिन यह नहीं हुआ।
  • पक्षों के बीच मतभेद पैदा हो गए तथा याचिकाकर्त्ता ने प्रतिवादी के परिवार पर दहेज़ की मांग एवं उत्पीड़न का आरोप लगाया।
  • याचिकाकर्त्ता ने IPC एवं दहेज़ निषेध अधिनियम, 1961 की विभिन्न धाराओं के अधीन प्रतिवादी एवं उसके परिवार के सदस्यों के विरुद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज कराई।
  • 13 मार्च 2023 को, प्रतिवादी ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(ia) के अधीन विवाह विच्छेद के लिये याचिका दायर करके प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय, मुज़फ्फरपुर, बिहार के न्यायालय में आवेदन किया।
  • याचिकाकर्त्ता-पत्नी, इस तथ्य से व्यथित होकर, क्योंकि वह वर्तमान में अपने माता-पिता के साथ रांची, झारखंड में रह रही थी, उसने विवाह विच्छेद की याचिका को प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय, रांची, झारखंड के न्यायालय में स्थानांतरित करने की मांग करते हुए स्थानांतरण याचिका दायर की।
  • स्थानांतरण याचिका के लंबित रहने के दौरान, पक्ष भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत एक संयुक्त आवेदन दायर करने के लिये सहमत हुए, जिसमें यह घोषणा करने की मांग की गई कि 07 जुलाई 2021 को उनका विवाह विधि की दृष्टि में वैध नहीं थी तथा परिणामस्वरूप, निर्गत किये गए विवाह प्रमाण-पत्र अमान्य थे।
  • पक्षकारों ने स्वीकार किया कि विवाह किसी भी रीति-रिवाज़ों, संस्कारों एवं प्रथाओं के अनुसार नहीं किया गया था तथा उन्होंने अत्यावश्यकताओं एवं दबावों के कारण प्रमाण-पत्र प्राप्त किया।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • न्यायालय ने कहा कि अधिनियम के अधीन वैध हिंदू विवाह के लिये, अपेक्षित समारोह आयोजित किये जाने चाहिये तथा ऐसे समारोहों के प्रदर्शन का साक्ष्य भी होना चाहिये।
  • न्यायालय ने कहा कि हिंदू विवाह एक संस्कार है तथा इसका पवित्र चरित्र है।
    • इसने भारतीय समाज में विवाह संस्था के महत्त्व एवं इससे जुड़े पारंपरिक समारोहों व रीति-रिवाज़ों के महत्त्व पर बल दिया।
  • न्यायालय ने अधिनियम के प्रावधानों के अधीन वैध वैवाहिक संस्कार के बिना पति एवं पत्नी का दर्जा हासिल करने की मांग करने वाले जोड़ों की प्रथा की निंदा की, जैसे कि वर्तमान मामले में जहाँ विवाह अभी होनी बाकी है।
  • न्यायालय ने घोषणा की कि पक्षकारों के बीच 'विवाह' हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 7 के अधीन 'हिंदू विवाह' नहीं था तथा परिणामस्वरूप, इसमें सम्मिलित संस्थाओं द्वारा जारी किये गए प्रमाण-पत्रों को अमान्य घोषित कर दिया गया।
  • न्यायालय ने आगे घोषणा की कि याचिकाकर्त्ता एवं प्रतिवादी ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अनुसार विवाह नहीं किया था तथा उन्होंने कभी भी पति एवं पत्नी का दर्जा प्राप्त नहीं किया था।

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अधीन वैवाहिक संस्कार क्या हैं?

  • परिचय:
    • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 7 उन संस्कारों एवं रीति-रिवाज़ों से संबंधित है जो हिंदू विवाह को वैध और विधिक रूप से बाध्यकारी मानने के लिये आवश्यक हैं।
  • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 7:
    • एक हिंदू विवाह किसी भी पक्ष के पारंपरिक संस्कारों और समारोहों के अनुसार संपन्न किया जा सकता है।
    • जहाँ ऐसे संस्कारों एवं समारोहों में सप्तपदी (अर्थात् दूल्हे और दुल्हन द्वारा पवित्र अग्नि के सामने संयुक्त रूप से सात कदम उठाना) शामिल है, सातवाँ कदम उठाने पर विवाह पूर्ण तथा बाध्यकारी हो जाता है।
      • सप्तपदी एक प्रतीकात्मक अनुष्ठान है जो जोड़े की एक-दूसरे के प्रति प्रतिबद्धता एवं जीवन में एक साथ उनकी यात्रा का प्रतिनिधित्व करता है।
  • महत्त्वपूर्ण मामले:
    • सीमा बनाम अश्वनी कुमार (2007):
      • इस मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अधीन, विवाह का पंजीकरण, पक्षकारों  के विवेक पर छोड़ दिया गया है, वे या तो उप-निबंधक के समक्ष प्रथागत मान्यताओं के अनुसार विवाह को संपन्न कर सकते हैं या उसके अनुसार वैवाहिक संस्कार करने के बाद इसे पंजीकृत कर सकते हैं।
    • प्रिया बाला घोष बनाम सुरेश चंद्र घोष (1971):
      • उच्चतम न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि यह आवश्यक है कि विवाह उचित संस्कारों के साथ तथा पक्षकारों पर लागू विधि या स्थापित रीति-रिवाज़ के अनुसार किया जाए।