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आपराधिक कानून

आरोप पत्र में शामिल सभी आवश्यक विवरण

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 13-Mar-2024

डबलू कुजूर बनाम झारखंड राज्य

"आरोप पत्र में दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 173 (2) के सभी विवरणों का पालन किया जाना चाहिये।"

न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने डबलू कुजूर बनाम झारखंड राज्य के मामले में माना है कि आरोप पत्र में दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973  (CrPC) की धारा 173 (2) के सभी विवरणों का पालन किया जाना चाहिये।

डबलू कुजूर बनाम झारखंड राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में अपीलकर्त्ता ने उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की है।
  • वर्तमान अपील के माध्यम से, अपीलकर्त्ता ने रांची में झारखंड उच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय और आदेश को चुनौती दी है।
  • उच्च न्यायालय ने भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धाराओं के तहत दण्डनीय अपराधों के लिये दर्ज मामले के संबंध में ज़मानत पर उसकी रिहाई की मांग करने वाले उक्त आवेदन को खारिज़ कर दिया है।
  • न्यायालय द्वारा अपील का निपटारा किया गया।
  • न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
  • न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने पाया कि अन्वेषक अधिकारी आरोप पत्र दाखिल करते समय उक्त प्रावधान की आवश्यकताओं का पालन नहीं करते हैं।
  • इसमें कहा गया है कि हालाँकि यह सत्य है कि CrPC की धारा 173(2) के तहत प्रस्तुत की जाने वाली रिपोर्ट का फॉर्म राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किया जाना है और प्रत्येक राज्य सरकार के पास अपने कर्त्तव्य का निर्वहन करते समय पुलिस अधिकारियों द्वारा पालन करने के लिये अपना स्वयं का पुलिस मैनुअल होता है, आरोप पत्र में ऐसे अधिकारियों द्वारा अनुपालन की जाने वाली अनिवार्य आवश्यकताएँ धारा 173, विशेष रूप से उसकी उपधारा (2) में निर्धारित की गई हैं।
  • आगे यह माना गया कि अन्य अभियुक्तों के लिये आगे की जाँच के लंबित रहने या आरोप पत्र दाखिल करने के समय उपलब्ध न होने वाले कुछ दस्तावेज़ों को प्रस्तुत करने से न तो आरोप पत्र खराब होगा और न ही यह अभियुक्त को इस आधार पर डिफाॅल्ट ज़मानत प्राप्त करने के अधिकार का दावा करने का समर्थन करेगा कि आरोप पत्र अधूरा था या कि आरोप पत्र CrPC की धारा 173 (2) के संदर्भ में दायर नहीं किया गया था।

आरोप पत्र क्या है ?

परिचय:

  • CrPC की धारा 173 के तहत परिभाषित आरोप पत्र, किसी पुलिस अधिकारी या जाँच एजेंसी द्वारा किसी मामले की जाँच पूरी करने के बाद तैयार की गई अंतिम रिपोर्ट होती है।
  • इसे आपराधिक मुकदमा शुरू करने के लिये न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।

आरोप पत्र में शामिल होना चाहिये:

  • आरोप पत्र में पक्षकारों के नाम, जानकारी की प्रकृति और अपराधों का विवरण शामिल होना चाहिये।
  • क्या अभियुक्त गिरफ्तार है, अभिरक्षा में है, या रिहा कर दिया गया है, क्या उसके विरुद्ध कोई कार्रवाई की गई है, ये सभी प्रश्न महत्त्वपूर्ण होते हैं जिनका उत्तर आरोप पत्र में दिया जाना चाहिये।
  • सभी दस्तावेज़ों से परिपूर्ण आरोप पत्र, अभियोजन मामले और तय किये जाने वाले आरोपों का आधार बनता है।

आरोप पत्र दाखिल करने की समय सीमा:

  • अभियुक्त के विरुद्ध 60-90 दिनों की निर्धारित अवधि के भीतर आरोप पत्र दायर किया जाना चाहिये, अन्यथा गिरफ्तारी अवैध होती है, और अभियुक्त ज़मानत का हकदार होता है।
  • आरोप पत्र दाखिल करने की निर्धारित समय सीमा इस प्रकार है:
    • मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय अपराध: 60 दिन
    • सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय अपराध: 90 दिन
  • CrPC के अनुसार, यदि उपर्युक्त निर्धारित समय के भीतर आरोप पत्र दाखिल नहीं किया जाता है, तो अभियुक्त को डिफाॅल्ट ज़मानत का अधिकार होता है।

आरोप पत्र दाखिल करने के बाद की प्रक्रिया:

  • आरोप पत्र तैयार करने के बाद, पुलिस स्टेशन का भारसाधक अधिकारी इसे मजिस्ट्रेट के पास भेजता है, जिसे इसमें उल्लिखित अपराधों पर ध्यान देने का अधिकार है ताकि आरोप तय किये जा सकें।

निर्णयज विधि: 

  • के. वीरास्वामी बनाम भारत संघ और अन्य (1991) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि CrPC की धारा 173(2) के तहत आरोप पत्र पुलिस अधिकारी की अंतिम रिपोर्ट होती है।