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आपराधिक कानून

ज़मानत देते समय चार्जशीट

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 08-Dec-2023

केशव प्रकाश गुप्ता बनाम राज्य एन.सी.टी. दिल्ली

"किसी आपराधिक मामले में चार्जशीट दाखिल करना किसी अभियुक्त को ज़मानत देने पर विचार करते समय ध्यान में रखा जाने वाला एकमात्र मानदंड नहीं है क्योंकि इसमें तथ्यों और परिस्थितियों को शामिल किया जाना चाहिये।"

न्यायमूर्ति सौरभ बनर्जी

स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति सौरभ बनर्जी ने कहा है कि किसी आपराधिक मामले में चार्जशीट दाखिल करना किसी अभियुक्त को ज़मानत देने पर विचार करते समय ध्यान में रखा जाने वाला एकमात्र मानदंड नहीं है क्योंकि इसमें तथ्यों और परिस्थितियों को शामिल किया जाना चाहिये।

केशव प्रकाश गुप्ता बनाम राज्य एन.सी.टी. दिल्ली मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • सामूहिक बलात्कार के मामले में एक 19 वर्षीय लड़के को ज़मानत देने से इनकार करते हुए, मामले के तथ्यों, अपराधों और सज़ा की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए, भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धाराओं 323, 328, 343, 376D, 376(2)(n), 506, 509/l तथा 120B के तहत अपराधों के लिये प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की गई थी।
  • शिकायतकर्त्ता ने आरोप लगाया कि उसे ज़बरदस्ती नशा दिया गया था और उसके हाथ बाँध दिये गए थे, जब अभियुक्त ने दो अन्य सह-अभियुक्तों के साथ मिलकर धन के बदले उन्हें उसके साथ यौन संबंध बनाने के लिये आमंत्रित किया था।
  • वकील ने कहा कि उसका मुवक्किल लगभग 19 वर्ष का एक युवक था, उसकी छवि साफ-सुथरी थी और FIR दर्ज करने में लगभग 31 महीने की अत्यधिक व अस्पष्ट देरी हुई थी।
  • अभियोजन पक्ष ने ज़मानत याचिका का विरोध किया।
  • ज़मानत याचिका को खारिज़ करते हुए, न्यायालय ने कहा कि हालाँकि मामले में चार्जशीट दायर की गई थी, शिकायतकर्त्ता ने पुलिस और मजिस्ट्रेट के समक्ष अपने दोनों बयानों में विशेष रूप से न केवल अभियुक्त का नाम बताया था, बल्कि मामले में उसकी एक विशिष्ट भूमिका भी बताई थी।

न्यायालय की टिप्पणी क्या थी?

  • हालाँकि ज़मानत देते समय चार्जशीट दाखिल करना एक आवश्यक विचार है, तथापि यह विचार करने का एकमात्र मानदंड नहीं है क्योंकि इसमें तथ्यों और परिस्थितियों को शामिल किया जाना चाहिये।

चार्जशीट क्या है?

  • परिचय:
    • दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 173 के तहत परिभाषित एक चार्जशीट, किसी मामले की जाँच पूरी करने के बाद एक पुलिस अधिकारी या जाँच एजेंसी द्वारा तैयार की गई अंतिम रिपोर्ट होती है।
      • के. वीरास्वामी बनाम भारत संघ और अन्य (1991) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि चार्जशीट CrPC की धारा 173(2) के तहत पुलिस अधिकारी की अंतिम रिपोर्ट है।
    • अभियुक्त के खिलाफ 60-90 दिनों की निर्धारित अवधि के भीतर चार्जशीट दायर की जानी चाहिये, अन्यथा गिरफ्तारी अवैध है, और आरोपी ज़मानत का हकदार है।
  • चार्जशीट में शामिल होने चाहिये:
    • नामों का विवरण, सूचना की प्रकृति और अपराधों का विवरण। क्या अभियुक्त गिरफ्तार है, हिरासत में है, या रिहा कर दिया गया है, क्या उसके खिलाफ कोई कार्रवाई की गई है, ये सभी महत्त्वपूर्ण सवाल हैं जिनका जवाब चार्जशीट में दिया जाना चाहिये।
  • चार्जशीट दाखिल करने के बाद की प्रक्रिया:
    • चार्जशीट तैयार करने के बाद, पुलिस स्टेशन का प्रभारी अधिकारी इसे एक मजिस्ट्रेट के पास भेजता है, जिसे इसमें उल्लिखित अपराधों पर ध्यान देने का अधिकार है ताकि आरोप तय किये जा सकें।