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आपराधिक कानून

विधि का उल्लंघन करने वाले बालक

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 26-Jun-2024

XYZ बनाम महाराष्ट्र राज्य

हम पीड़ितों तथा उनके परिवारों के प्रति पूरी सहानुभूति रखते हैं, परंतु एक न्यायालय के रूप में हम विधि का प्रवर्तन करने के लिये बाध्य हैं”।

न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे

स्रोत: बॉम्बे उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने XYZ बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले में माना है कि किशोर न्याय बोर्ड द्वारा ज़मानत दिये जाने पर न्यायालय को किसी नाबालिग को अभिरक्षा में लेने तथा उसे स्वतंत्रता से वंचित करने का कोई अधिकार नहीं है।

XYZ बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में याचिकाकर्त्ता 17 वर्ष और 8 महीने का नाबालिग है।
  • नाबालिग पर आरोप है कि वह नशे में था, 19 मई 2024 को दो बाइक सवारों के साथ उसकी कार से दुर्घटना हो गई और उसकी पोर्श कार की तेज़ गति के कारण दोनों बाइक सवारों की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई।
  • इस घटना के कारण पुणे में वृहद् स्तर पर विरोध प्रदर्शन हुआ।
  • भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) और मोटर वाहन अधिनियम, 1988 (MVA) के अधीन विभिन्न प्रावधानों के आधार पर नाबालिग के विरुद्ध लापरवाही तथा तेज़ गति से वाहन चलाने के आरोप में प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की गई।
  • नाबालिग को किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत किया गया तथा उसी दिन उसे ज़मानत दे दी गई।
  • अभियोजन पक्ष ने नाबालिग के विरुद्ध FIR में IPC की धारा 304 लगाने के उपरांत 21 मई 2024 को किशोर न्याय (देखरेख और संरक्षण अधिनियम) 2015 (JJA) की धारा 104 के अंतर्गत एक आवेदन दायर किया तथा नए साक्ष्यों के आधार पर ज़मानत आदेश की समीक्षा करने पर सहमति व्यक्त की क्योंकि यह तर्क दिया गया था कि नाबालिग शराब और धूम्रपान के प्रभाव में था, उसके पास कोई लाइसेंस नहीं था तथा इसके समर्थन में सीसीटीवी रिकॉर्डिंग जैसे साक्ष्य प्रस्तुत किये गए थे।
  • पुणे में विरोध प्रदर्शन और भीड़ की हिंसा को ध्यान में रखते हुए, JJB ने JJA की धारा 104 के आधार पर ज़मानत आदेश में संशोधन किया तथा नाबालिग के पुनर्वास के लिये अवलोकन का आदेश दिया।
  • हालाँकि ज़मानत अभी भी रद्द नहीं की गई, परंतु आदेश में कहा गया कि जाँच में कुछ विसंगतियाँ थीं तथा नाबालिग को मनोवैज्ञानिक उपचार की आवश्यकता है।
  • तदुपरांत,जाँच के बाद नाबालिग को निगरानी में रखने की अवधि बढ़ा दी गई।
  • नाबालिग के परिवार द्वारा बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के आधार पर एक आवेदन दायर किया गया था जिसमें कहा गया था कि ज़मानत मिलने के बाद भी उसे कई दिनों तक निगरानी के नाम पर अभिरक्षा में रखा गया है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • पीठ ने कहा कि किशोर न्याय अधिनियम का मुख्य उद्देश्य विधि के साथ संघर्ष की स्थिति में बच्चे की सुरक्षा और देखभाल करना है।
  • आगे यह माना गया कि JJA की धारा 12 के अनुसार, जब किसी बच्चे को ज़मानत देने से इनकार कर दिया जाता है तो ही उसे पर्यवेक्षण गृह में रखा जाना चाहिये, अन्यथा नहीं।
  • यह भी माना गया कि किशोर न्याय बोर्ड द्वारा JJA की धारा 104 के अनुसार किये गए संशोधन तथा बोर्ड द्वारा दिये गए अभिरक्षा आदेश अवैध हैं और इसका उपयोग किसी बच्चे को उसकी स्वतंत्रता से वंचित करने के लिये नहीं किया जा सकता है एवं यह संविधान के अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 22(1) का उल्लंघन है।
  • न्यायालय ने कहा कि ज़मानत पर रिहा नाबालिग को पर्यवेक्षण गृह में नहीं रखा जा सकता, अतः बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका स्वीकार्य है।

‘विधि का उल्लंघन करने वाला बालक’ क्या है?

परिचय:

  • विधि का उल्लंघन करने वाला बालक, किशोर न्याय अधिनियम पर आधारित एक अवधारणा है, जिसे अधिनियम की धारा 2(13) के अंतर्गत परिभाषित किया गया है, जहाँ यह कहा गया है कि कोई व्यक्ति जिसने 18 वर्ष की आयु प्राप्त नहीं की है, ने कोई अपराध किया है या उसके द्वारा अपराध किये जाने का आरोप लगाया गया है, तो उसे विधि का उल्लंघन करने वाला बालक माना जाएगा।
  • सामान्यतः यह माना जाता है कि बच्चा मासूम होता है तथा सामाजिक व्यवहार एवं मनोवैज्ञानिक असमानताओं के कारण वह नैतिक मूल्यों से वंचित हो जाता है, जिसके कारण वह अपराध करने के लिये प्रेरित होता है।
  • जब कोई नाबालिग समाज के विरुद्ध ऐसे अपराध करता है तो इसे विधि के विरुद्ध अपराध कहा जाता है।
  • यह देखा गया है कि उचित देखरेख और पुनर्वास से एक बच्चे को एक बेहतर व्यक्ति में बदला जा सकता है।

संवैधानिक प्रावधान:

  • अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार यह कहता है कि किसी भी व्यक्ति को स्वतंत्रतापूर्वक जीवन जीने से वंचित नहीं किया जा सकता।
  • अनुच्छेद 22(1): गिरफ्तारी के विषय में सूचना प्राप्त करने और गिरफ्तार व्यक्ति का अधिवक्ता से परामर्श करने का अधिकार।

किशोर न्याय अधिनियम से संबंधित प्रावधान:

  • धारा 2(13): कोई भी व्यक्ति जिसने 18 वर्ष की आयु प्राप्त नहीं की है तथा जिसके विषय में यह आरोप लगाया गया है कि उसने कोई अपराध किया है या पाया गया है, उसे विधि का उल्लंघन करने वाला बालक कहा जाएगा।
  • धारा 12(1): जब किसी व्यक्ति ने 18 वर्ष की आयु प्राप्त नहीं की है तथा उसके द्वारा कोई ज़मानती या गैर-ज़मानती अपराध किया गया है, तो उसे इस शर्त पर ज़मानत दी जाएगी कि उसकी ज़मानत से उसे कोई खतरा नहीं होगा और ज़मानत देते समय किशोर न्याय बोर्ड द्वारा उचित सावधानी बरती जाएगी।
  • धारा 3: यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि इस अधिनियम के दायरे में आने वाले बच्चे को उसके सर्वोत्तम हित के लिये यथाशीघ्र उसके परिवार के साथ पुनः मिलाया जाएगा।
  • धारा 104: यह धारा, बोर्ड को अधिनियम में निर्दिष्ट सदस्यों की समिति के उचित गठन से संबंधित, पीड़ित पक्ष द्वारा प्रस्तुत आवेदन पर अपने निर्णय की समीक्षा करने का अधिकार देती है।
  • IPC से संबंधित प्रावधान:
  • धारा 279: यदि कोई व्यक्ति तेज़ी से या लापरवाही से वाहन चलाकर दूसरों के जीवन को संकट में डालता है तो उसे अधिकतम 6 महीने का कारावास और 1000 रुपए तक का अर्थदण्ड या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
  • धारा 304 A: यह धारा लापरवाही के ऐसे कृत्य से संबंधित है जो आपराधिक मानववध की श्रेणी में नहीं आता है तथा इसके लिये अधिकतम 2 वर्ष का कारावास या अर्थदण्ड या दोनों से दण्डनीय होगा।
  • धारा 337: कोई भी व्यक्ति जो अपनी लापरवाही से किसी अन्य व्यक्ति को चोट पहुँचाता है, उसे अधिकतम 6 महीने का कारावास या 500 रुपए तक का अर्थदण्ड या दोनों से दण्डित किया जा सकता है।
  • धारा 338: किसी व्यक्ति द्वारा लापरवाही से किसी अन्य को गंभीर चोट पहुँचाने पर अधिकतम 2 वर्ष का कारावास या 1000 रुपए तक का अर्थदण्ड अथवा दोनों से दण्डित किया जाएगा।

मोटर वाहन अधिनियम से संबंधित प्रावधान:

  • धारा 177: जो कोई भी मोटर वाहन अधिनियम के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन करेगा, उस पर पहली बार अपराध करने पर 100 रुपए तथा दूसरी बार अपराध करने पर 300 रुपए का अर्थदण्ड लगाया जाएगा।
  • धारा 184: खतरनाक तरीके से वाहन चलाने वाले किसी भी व्यक्ति को पहली बार अपराध करने पर अधिकतम 6 महीने का कारावास या 1000 रुपए तक का अर्थदण्ड तथा दूसरी बार अपराध करने पर अधिकतम 2 वर्ष का कारावास और अधिकतम 2000 रुपए तक का अर्थदण्ड हो सकता है।
  • धारा 190: इस धारा में असुरक्षित परिस्थितियों में उपयोग किये जाने वाले वाहनों से संबंधित प्रावधान हैं तथा दण्ड का भी प्रावधान किया गया है।

निर्णयज विधियाँ:

  • गौतम नौलखा बनाम NIA (2023): इस मामले में उन मापदण्डों पर चर्चा की गई जब बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका स्वीकार्य होती है, अर्थात् मुख्यतः जब अधिकार क्षेत्र का अभाव हो, या रिमांड आदेश अवैध हो।
  • शहजाद हसन खान बनाम इश्तियाक हसन खान (1987): इस मामले में, यह माना गया कि न्यायालय द्वारा आरोपी को ज़मानत देने के विवेकाधिकार का प्रयोग इस मामले में रेखांकित मापदण्डों के अनुसार तथा आरोपी की स्वतंत्रता की रक्षा के लिये किया जाना चाहिये।
  • नरेश गोयल बनाम प्रवर्तन निदेशालय व अन्य (2023): दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 167 के अनुसार जब रिमांड आदेश को चुनौती नहीं दी जाती है तो बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट लागू नहीं होगी।