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आपराधिक कानून
CrPC की धारा 200 के तहत शिकायत का संज्ञान
« »10-Oct-2023
इलमपिरैयन बनाम श्री पेठी @ थिरुमलाई राजा और अन्य "संज्ञान लेने के चरण में, मजिस्ट्रेट गवाहों की सत्यता का अध्ययन नहीं कर सकते।" न्यायमूर्ति पी. धनबल |
स्रोत: मद्रास उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति पी. धनबल ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 200 के तहत प्रक्रिया के दौरान एक मजिस्ट्रेट किसी गवाह की सत्यता की जाँच नहीं कर सकता है।
- मद्रास उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी इलमपिरैयन बनाम श्री पेथी @ थिरुमलाई राजा और अन्य के मामले में दी।
इलमपिरैयन बनाम श्री पेठी @ थिरुमलाई राजा और अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- याचिकाकर्ता ने राजपालयम न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती दी, जिन्होंने CrPC की धारा 200 के तहत उसकी निजी शिकायत को खारिज़ कर दिया था।
- याचिकाकर्ता के साथ पुलिस अधिकारियों द्वारा दुर्व्यवहार किया गया और उसे अवैध रूप से पुलिस हिरासत में रखा गया।
- उन्होंने न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष एक निजी शिकायत दायर की, जिन्होंने फैसला सुनाया कि गवाह के बयान में विरोधाभास थे।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि "संज्ञान लेने के चरण में, मजिस्ट्रेट गवाहों की सत्यता का अध्ययन नहीं कर सकता है और मजिस्ट्रेट का कर्त्तव्य यह है कि अपराध का गठन करने के लिये कोई प्रथम दृष्टया सामग्री उपलब्ध है या नहीं"।
- इसलिये, न्यायालय ने न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द कर दिया।
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 200 क्या है?
- चर्चा में क्यों?
- CrPC की धारा 200 मजिस्ट्रेट के लिये किसी अपराध का संज्ञान लेने की प्रक्रिया की रूपरेखा बताती है।
- यह धारा इस आवश्यकता से शुरू होती है कि कोई भी व्यक्ति जो मजिस्ट्रेट से किसी अपराध का संज्ञान लेना चाहता है, उसे एक लिखित शिकायत या जानकारी प्रस्तुत करनी होगी।
- यह शिकायत मामले पर अधिकार क्षेत्र रखने वाले मजिस्ट्रेट को की जानी चाहिये।
- CrPC की धारा 200 "शिकायतकर्ता की जाँच" से संबंधित है।
- कानूनी ढाँचा:
- इस धारा के तहत, शिकायत पर अपराध का संज्ञान लेने वाला मजिस्ट्रेट शिकायतकर्ता और उपस्थित साक्षियों की शपथ लेकर जाँच करेगा।
- और ऐसी परीक्षा का सार लेखबद्ध कर दिया जाएगा।
- और इस पर शिकायतकर्ता और गवाहों और मजिस्ट्रेट द्वारा भी हस्ताक्षर किये जाएंगे।
- CrPC की धारा 200 का प्रावधान:
- जब शिकायत लिखित रूप में की जाती है, तो मजिस्ट्रेट को शिकायतकर्ता और गवाहों की जाँच करने की आवश्यकता नहीं होती है-
(क) यदि परिवाद अपने पदीय कर्तव्यों के निर्वहन में कार्य करने वाले या कार्य करने वाले या कार्य करने का तात्पर्य रखने वाले लोक सेवक द्वारा या न्यायालय द्वारा किया गया है, अथवा
(ख) यदि मजिस्ट्रेट जाँच या विचारण के लिये मामले को धारा 192 के अधीन किसी अन्य मजिस्ट्रेट के हवाले कर देता है: - परंतु यह और कि यदि मजिस्ट्रेट परिवादी या साक्षियों की परीक्षा करने के पश्चात मामले को धारा 192 के अधीन किसी अन्य मजिस्ट्रेट के हवाले करता है तो बाद वाले मजिस्ट्रेट के लिये उनकी फिर से परीक्षा करना आवश्यक न होगा।
- जब शिकायत लिखित रूप में की जाती है, तो मजिस्ट्रेट को शिकायतकर्ता और गवाहों की जाँच करने की आवश्यकता नहीं होती है-
उद्देश्य:
- यह प्रावधान आपराधिक कार्यवाही में शिकायतकर्ता की भूमिका के महत्त्व को रेखांकित करता है।
- शिकायतकर्ता की जाँच महज एक औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करने के उद्देश्य से है कि प्रथम दृष्टया मामले की सुनवाई चल रही है।
इस मामले में ऐतिहासिक निर्णय क्या शामिल था?
- मुकेश जैन पुत्र प्रेम चंद बनाम बालाचंदर (2005): मद्रास उच्च न्यायालय ने माना कि शिकायतकर्ता को CrPC की धारा 200 के तहत दर्ज़ किये गए शिकायतकर्ता के शपथपूर्ण बयान के साथ पढ़ा जाना चाहिये और उन्हें अलग-अलग नहीं पढ़ा जाना चाहिये , क्योंकि वे एक-दूसरे के पूरक हैं।