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आपराधिक कानून

सामान्य उद्देश्यों के अधीन विधिविरुद्ध जनसमूह

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 13-Oct-2023

नरेश @ नेहरू बनाम हरियाणा राज्य

भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 149 से संबंधित मामलों में सामान्य उद्देश्य स्थापित करने के लिये निर्णायक साक्ष्य की आवश्यकता होती है।

उच्चतम न्यायालय

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

उच्चतम न्यायालय (SC) ने नरेश @ नेहरू बनाम हरियाणा राज्य के मामले में भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 149 से संबंधित मामलों में सामान्य उद्देश्य स्थापित करने हेतु ठोस साक्ष्य की आवश्यकता के महत्त्व को रेखांकित किया है।

नरेश @ नेहरू बनाम हरियाणा राज्य मामले की पृष्ठभूमि

इस मामले के तथ्य इस बात से संबंधित हैं कि कुछ व्यक्तियों ने एक लड़के पर गोली चलाई थी। वहाँ घटना स्थल पर पहुँचकर मोहित काला नाम के व्यक्ति का बयान दर्ज किया गया।

उसने कहा कि:

  • उसने अजय और सूरज को धर्मेंद्र के घर की ओर भागते देखा क्योंकि बुलेट मोटरसाइकिल पर तीन युवक उसका पीछा कर रहे थे।
  • रवि द्वारा चलायी जा रही बुलेट मोटरसाइकिल के पीछे दो और मोटरसाइकिलें चल रही थीं, जिनमें दो-दो सवार थे और उनके हाथों में डंडे थे।
  • आगे बुलेट मोटरसाइकिल पर बैठा व्यक्ति नीचे उतरा और उसने देसी रिवॉल्वर से अजय पर गोली चला दी, जो उसके सिर में लगी और गोली लगते ही अजय गिर गया।
    • शोर मचाने पर हमलावर अपनी मोटरसाइकिलों पर सवार होकर भाग गये।
  • रवि अजय के स्कूल में पढ़ता था और उसका जूनियर था। वह सभी को धमकाता और डराता था।
  • अजय का रवि और सूरज से झगड़ा हुआ था, जिसे उसने उसे जान से मारने की धमकी दी थी।
  • घटना घटित होने पर आईपीसी की धारा 148, 149, 307 और शस्त्र अधिनियम, 1959 की धारा 25 के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की गई थी।
  • इसके बाद, अजय की मृत्यु होने पर आईपीसी की धारा 307 के तहत आरोप को उसी अधिनियम की धारा 302 में तब्दील कर दिया गया।
  • सत्र न्यायालय ने आरोपी व्यक्तियों को दोषी ठहराया, जिसे उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा।
  • इसलिये, वर्तमान अपील उच्चतम न्यायालय में की गई थी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

न्यायालय ने निम्नलिखित कानूनों के तहत मामले पर विचार किया:

  • रॉय फर्नांडीस बनाम गोवा राज्य (2012) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि विधिविरुद्ध जनसमूह में एक भागीदार के रूप में, किसी को पता होना चाहिये कि मृतक की हत्या सामान्य उद्देश्य की प्राप्ति में एक संभावित परिणाम थी।
  • लालजी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1989) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि “विधिविरुद्ध जनसमूह का सामान्य उद्देश्य जमावड़े की प्रकृति को, उनके द्वारा प्रयोग किये गये शस्त्रों और घटना स्थल पर या उससे पहले जनसमूह के व्यवहार से लगाया जा सकता है। यह प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से निकलने वाला एक अनुमान है।”
  • न्यायाधीश एस. रवींद्र भट और न्यायाधीश अरविंद कुमार ने आरोपी व्यक्तियों को बरी करते हुए कहा कि "आईपीसी की धारा 149 के तहत किसी व्यक्ति को दोषी ठहराने के लिये अभियोजन पक्ष को साक्ष्यों की सहायता से यह स्थापित करना होगा कि सर्वप्रथम, अपीलकर्त्ताओं ने एक ही उद्देश्य साझा किया था, जो विधिविरुद्ध जनसमूह का हिस्सा था और दूसरी बात, यह साबित करना था कि वे उक्त सामान्य उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये किये जाने वाले संभावित अपराधों के बारे में जानते थे।"

विधिविरूद्ध जनसमूह

आईपीसी की धारा 141 के तहत विधिविरुद्ध जनसमूह को इस प्रकार परिभाषित किया गया है:

  • भारतीय दंड संहिता की धारा 141 के अनुसार, पाँच या अधिक व्यक्तियों का जनसमूह विधिविरुद्ध जनसमूह कहा जाता है, यदि उन व्यक्तियों का, जिनसे वह जनसमूह संस्थापित हुआ है, के सामान्य उद्देश्य निम्न हो --
    1. केंद्रीय सरकार को, या किसी राज्य सरकार को, या संसद को, या किसी राज्य के विधान-मंडल को, या किसी लोक सेवक को, जब कि वह ऐसे लोक सेवक की विधिपूर्ण शक्ति का प्रयोग कर रहा हो, आपराधिक बल या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा आतंकित करना हो, अथवा
    2. किसी कानून के, या किसी कानूनी प्रक्रिया के, निष्पादन का प्रतिरोध करना, अथवा
    3. किसी कुचेष्टा या आपराधिक अतिचार या अन्य अपराध का करना, अथवा
    4. किसी व्यक्ति पर आपराधिक बल या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा, किसी संपत्ति का कब्जा लेना या प्राप्त करना या किसी व्यक्ति को किसी मार्ग या जल के अधिकार के उपभोग से, या अन्य निराकार अधिकार जिसका उसे अधिकार हो या जिसका वह उपभोग करता हो, से वंचित करना या किसी अधिकार या अनुमित अधिकार को लागू कराना, अथवा
    5. आपराधिक बल या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा किसी व्यक्ति को वह करने के लिये, जिसके लिये वह कानूनी रूप से आबद्ध न हो या किसी कार्य का लोप करने के लिये, जिसे करने का वह कानूनी रूप से हकदार हो, विवश करना।
  • स्पष्टीकरण- कोई जनसमूह, जो इकठ्ठा होते समय विधिविरुद्ध नहीं था, बाद में विधिविरुद्ध जनसमूह कहलाएगा।
  • धारा 142 परिभाषित करती है कि किसे ऐसे व्यक्ति को जनसमूह का सदस्य कहा जाता है, जो उन तथ्यों से अवगत होते हुए भी, जो किसी सभा को विधिविरूद्ध जनसमूह बनाता है, जानबूझकर उस सभा में शामिल होता है, या उसमें बना रहता है, उसे विधिविरुद्ध जनसमूह का सदस्य कहा जाता है।
  • विधिविरुद्ध जनसमूह के लिये भारतीय दंड संहिता की धारा 143 के तहत छह माह तक की कैद या ज़ुर्माना या दोनों का प्रावधान है।

सामान्य उद्देश्य

  • आईपीसी की धारा 149 सामान्य उद्देश्य की अवधारणा के बारे में बताती है-
    • धारा 149 - विधिविरुद्ध जनसमूह का प्रत्येक सदस्य, सामान्य उद्देश्य का अभियोजन करने में किये गये अपराध का दोषी- भारतीय दंड संहिता की धारा 149 के अनुसार, यदि विधिविरुद्ध जनसमूह के किसी सदस्य द्वारा उस जनसमूह के सामान्य उद्देश्य का अभियोजन करने में कोई अपराध किया जाता है, या कोई ऐसा अपराध किया जाता है, जिसका किया जाना उस जनसमूह के सदस्य सम्भाव्य मानते थे, तो प्रत्येक व्यक्ति, जो उस अपराध के किये जाने के समय उस जनसमूह का सदस्य है, उस अपराध का दोषी होगा।
  • महाराष्ट्र राज्य बनाम काशीराव और अन्य (2003) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने सामान्य उद्देश्य को इस प्रकार परिभाषित किया है कि 'उद्देश्य' शब्द का तात्पर्य लक्ष्य से है और, इसे 'सामान्य' बनाने के लिये, सभी द्वारा साझा किया जाना चाहिये।
  • सामान्य उद्देश्य प्रतिवर्ती देयता के सिद्धांत पर आधारित है, जिसका अर्थ है कि किसी व्यक्ति को दूसरों द्वारा किये गये कृत्यों के लिये ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।
    • प्रत्येक व्यक्ति जो सामान्य उद्देश्य वाले किसी विधिविरुद्ध जनसमूह में शामिल होता है, उसे उत्तरदायी ठहराया जाता है क्योंकि यह माना जाता है कि उसने ऐसे जनसमूह के उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिये सहमति दी है।