Drishti IAS द्वारा संचालित Drishti Judiciary में आपका स्वागत है










होम / करेंट अफेयर्स

आपराधिक कानून

पुलिस अभिर क्षा में संस्वीकृति

    «    »
 01-Jul-2024

नवदीप उर्फ ​​छोटू व अन्य बनाम हरियाणा राज्य

“पुलिस अभिरक्षा में अभियुक्त द्वारा की गई संस्वीकृति के आधार पर अपीलकर्त्ता को दोषी नहीं ठहराया जा सकता”।

न्यायमूर्ति पंकज जैन

स्रोत: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति पंकज जैन की पीठ ने कहा कि पुलिस अभिरक्षा में आरोपी द्वारा दी गई संस्वीकृति पर विश्वास कर अपीलकर्त्ता को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

  • पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने नवदीप उर्फ ​​छोटू एवं अन्य बनाम हरियाणा राज्य मामले में यह निर्णय दिया।

नवदीप उर्फ ​​छोटू एवं अन्य बनाम हरियाणा राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • 1 सितंबर 2020 को गश्त के दौरान पुलिस को गुप्त सूचना मिली कि एक व्यक्ति के पास बिना नंबर प्लेट की स्विफ्ट डिज़ायर कार है, जो लूटी हुई है।
  • आरोपी नंबर 2 को सफेद रंग की स्विफ्ट डिज़ायर कार के साथ गिरफ्तार किया गया।
  • आरोपी नंबर 2 ने बताया कि उक्त वाहन सह-आरोपी नवदीप उर्फ ​​छोटू उसके पास छोड़ गया था।
  • अभियोजन पक्ष का यह भी मामला है कि आरोपी नवदीप- अपीलकर्त्ता नंबर 1 को गिरफ्तार किया गया, जिसने प्रकट किया कि स्विफ्ट डिज़ायर कार, लूटी हुई थी।
  • ट्रायल कोर्ट ने गुरप्रीत सिंह के बयान पर भरोसा किया, जिसने दावा किया था कि वह गुरुग्राम से अपने घर की ओर कार से जा रहा था।
  • जींद के शुगर मिल के पास 4 लड़कों ने बंदूक के बल पर उनकी कार लूट ली थी। भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 395 और शस्त्र अधिनियम, 1959 की धारा 25 के अधीन दण्डनीय अपराध के लिये 25 अगस्त 2020 को FIR नंबर 306 दर्ज की गई थी।
  • इस प्रकार ट्रायल कोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष अपीलकर्त्ता संख्या 2 सुधीर से संबंधित कार की बरामदगी सिद्ध करने में सक्षम रहा है, जिसे अपीलकर्त्ता संख्या 2 नवदीप उर्फ ​​छोटू ने उसे सौंप दिया था।
  • उपरोक्त के मद्देनज़र ट्रायल कोर्ट ने दोनों अपीलकर्त्ताओं को धारा 412 IPC के अधीन दण्डनीय अपराध का दोषी माना।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • उल्लेखनीय है कि गुरप्रीत सिंह ने आरोप लगाया था कि बंदूक के बल पर चार युवकों ने उससे लूटपाट की थी।
  • भारतीय दण्ड संहिता की धारा 412 के अधीन अपराध दर्ज करने के लिये यह आवश्यक है कि डकैती का अपराध किया गया हो।
    • परिणामस्वरूप, डकैती के अपराध के प्रयोजन के लिये अपराध में शामिल व्यक्तियों की संख्या पाँच से अधिक होनी चाहिये।
  • न्यायालय ने कहा कि गुरप्रीत सिंह के बयान से यह स्पष्ट है कि कोई डकैती नहीं हुई थी, इसलिये अपीलकर्त्ता संख्या 2 सुधीर का अपराध धारा 412 IPC से बदलकर धारा 411 IPC कर दिया गया।
  • अपीलकर्त्ता नंबर 1 नवदीप उर्फ ​​छोटू के संबंध में, पुलिस अभिरक्षा में सह-अभियुक्त द्वारा किये गए प्रकटन के अतिरिक्त, नवदीप के विरुद्ध कोई अन्य साक्ष्य नहीं था।
  • जहाँ तक ​​अपीलकर्त्ता नंबर 1 नवदीप उर्फ ​​छोटू का संबंध है, वर्तमान मामले में दोनों आरोपियों द्वारा पुलिस अभिरक्षा में किये गए प्रकटन के अतिरिक्त, उसके विरुद्ध कोई अन्य साक्ष्य नहीं है।
  • न्यायालय ने कहा कि पुलिस अभिरक्षा में दी गई संस्वीकृति के आधार पर आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, इसलिये अपीलकर्त्ता नवदीप उर्फ ​​छोटू को रिहा करने का आदेश दिया गया।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA) की धारा 23 के अधीन पुलिस अभिरक्षा में संस्वीकृति के संबंध में विधि क्या है?

  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA) की धारा 23 (1) में प्रावधान है कि किसी भी अपराध के आरोपी व्यक्ति के विरुद्ध पुलिस अधिकारी के समक्ष की गई कोई भी संस्वीकृति सिद्ध नहीं की जाएगी।
    • BSA की धारा 23(2) में प्रावधान है कि पुलिस अधिकारी की अभिरक्षा में किसी व्यक्ति द्वारा की गई कोई भी संस्वीकृति, जब तक कि वह मजिस्ट्रेट की तत्काल उपस्थिति में न की गई हो, उसके विरुद्ध सिद्ध नहीं की जाएगी।
    • परंतु जब किसी तथ्य के विषय में यह अभिसाक्ष्य दिया जाता है कि वह किसी अपराध के अभियुक्त व्यक्ति से, जो पुलिस अधिकारी की अभिरक्षा में है, प्राप्त सूचना के परिणामस्वरूप खोजा गया है, तब ऐसी सूचना में से उतनी जानकारी, चाहे वह संस्वीकृति हो या न हो, जो खोजे गए तथ्य से सुस्पष्टतः संबंधित है, सिद्ध की जा सकेगी।
  • यह ध्यान देने योग्य है कि BSA की धारा 23 के अधीन प्रदान की गई शक्ति भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) के अधीन तीन अलग-अलग धाराओं (धारा 25, 26 और 27) में विस्तारित थी।
  • IEA की धारा 25 में वही प्रावधान है जो अब BSA की धारा 23(1) में निहित है।

इस मामले में पुलिस अभिरक्षा में संस्वीकृति के कौन-सी ऐतिहासिक निर्णयज विधियाँ उद्धृत की गईं हैं?

  • उत्तर प्रदेश राज्य बनाम देवमन उपाध्याय (1961):
    • IEA की धारा 25 के अधीन प्रतिबंध के प्रभावी होने के लिये यह आवश्यक नहीं है कि जब व्यक्ति ने अपराध स्वीकार किया हो तो उस पर किसी अपराध का आरोप हो।
    • न्यायालय ने कहा कि विशेषण खंड "किसी अपराध का आरोपी", उस व्यक्ति का वर्णन करता है जिसके विरुद्ध दी गई संस्वीकृति द्वारा उसे अपराधी सिद्ध नहीं किया गया है और यह प्रतिबंध की प्रयोज्यता के लिये बयान देने के समय, उस व्यक्ति की स्थिति का पूर्वानुमान नहीं करता है।
  • अघनू नागेसिया बनाम बिहार राज्य (1966):
    • न्यायालय ने कहा कि "किसी भी अपराध का आरोपी" शब्द में वाद के दौरान किसी अपराध का आरोपी व्यक्ति शामिल है, चाहे वह अपराध स्वीकार करते समय आरोपी हो या नहीं।