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सिविल कानून
पुराने और नए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत उपभोक्ता
« »13-May-2024
श्रीराम चिट्स (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड, जिसे पहले श्रीराम चिट्स (के) प्राइवेट लिमिटेड के नाम से जाना जाता था बनाम राघचंद एसोसिएट्स "शिकायतकर्त्ता पर यह दिखाने का नकारात्मक भार नहीं डाला जा सकता कि उपलब्ध सेवा वाणिज्यिक उद्देश्य के लिये नहीं थी”। न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने माना कि यह तय करना आवश्यक होगा कि उपभोक्ता मंचों को सेवा प्रदाताओं द्वारा उठाई गई तकनीकी दलीलों पर किस तरह से निर्णय लेना चाहिये कि प्राप्त की गई सेवाएँ/खरीदी गई वस्तुएँ वाणिज्यिक उद्देश्य के लिये थीं और इसलिये, ऐसे व्यक्तियों की ओर से दायर की गई शिकायत संधार्य नहीं हैं।
श्रीराम चिट्स (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड, जिसे पहले श्रीराम चिट्स (के) प्राइवेट लिमिटेड के नाम से जाना जाता था बनाम राघचंद एसोसिएट्स मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- अपीलकर्त्ता (सेवा प्रदाता) एक रजिस्ट्रीकृत चिट फंड कंपनी थी। प्रतिवादी (शिकायतकर्त्ता) ने इस कंपनी में एक निश्चित चिट्स के लिये सदस्यता ली।
- सदस्यता 1,00,000/- रुपए के मूल्य के लिये बनाई गई थी और यह 40 महीनों के लिये 2500/- रुपए प्रति माह की दर से देय थी।
- शिकायतकर्त्ता का तर्क था कि अपीलकर्त्ता ने वर्ष 1996 में अवैध रूप से व्यवसाय बंद कर दिया था।
- शिकायतकर्त्ता ने अपीलकर्त्ता से चिट राशि लौटाने का अनुरोध किया, लेकिन उसने भुगतान करने से इनकार कर दिया और कहा कि शिकायतकर्त्ता पर कुछ बकाया था, इसलिये उसने सदस्यता राशि को लंबित बकाया राशि के विरुद्ध समायोजित कर दिया।
- कंपनी को अवैध तरीके से बंद करने और सदस्यता राशि वापस न करने को लेकर ज़िला फोरम में शिकायत दर्ज की गई थी।
- लिखित निवेदन में अपीलकर्त्ता ने आपत्ति उठाई कि शिकायतकर्त्ता "उपभोक्ता" की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता है क्योंकि प्राप्त सेवा वाणिज्यिक उद्देश्य के लिये थी। इसलिये, शिकायतकर्त्ता को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत किसी भी उपाय का लाभ उठाने से बाहर रखा जाएगा।
- हालाँकि, ज़िला फोरम अपीलकर्त्ता के इस तर्क से संतुष्ट नहीं था कि शिकायत संधार्य नहीं थी और दावा की गई राशि 18% प्रतिवर्ष ब्याज के साथ वापस करने का आदेश दिया।
- राज्य फोरम के समक्ष अपील दायर की गई और फोरम ने ज़िला फोरम के आदेश को बरकरार रखा।
- इसके बाद राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, नई दिल्ली (NCDRC) के समक्ष अपील दायर की गई। NCDRC राज्य फोरम और ज़िला फोरम के आदेश से सहमत था।
- वर्तमान अपील उच्चतम न्यायालय के समक्ष दायर की गई है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि हम इस बारे में कुछ मार्गदर्शन प्रदान करने के लिये आगे बढ़ रहे हैं कि मुद्दों को कैसे तैयार किया जाना चाहिये और किस तरीके से सबूतों की सराहना की जानी चाहिये।
- न्यायालय ने कहा कि चूँकि हमेशा सेवा प्रदाता ही दलील देता है कि सेवा वाणिज्यिक उद्देश्य के लिये प्राप्त की गई थी, इसलिये इसे साबित करने की ज़िम्मेदारी भी उसे ही उठानी होगी।
- प्रमाण के मानक को 'बहुतायत की प्रधानता' के विरुद्ध मापा जाना चाहिये।
- जब तक सेवा प्रदाता अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन नहीं करता, तब तक शिकायतकर्त्ता पर यह दिखाने का उत्तरदायित्व नहीं जाता है कि प्राप्त सेवा विशेष रूप से स्व-रोज़गार के माध्यम से अपनी आजीविका कमाने के लिये थी।
- न्यायालय ने उदाहरण के तौर पर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 2(7)(i) का खंडन किया। इस खंड का तीसरा भाग बहिष्करण खंड का अपवाद है [दूसरा भाग एक 'बहिष्करण खंड' है]- यह धारा 2(7) के स्पष्टीकरण (a) से संबंधित है जो 'वाणिज्यिक उद्देश्य' के दायरे को सीमित करता है।
- इस मामले में अपीलकर्त्ता ने दलील दी कि सेवा वाणिज्यिक उद्देश्य के लिये प्राप्त की गई थी, लेकिन इसकी संभावना के लिये कोई सबूत नहीं दिया गया है। अब यह अच्छी तरह से तय हो गया कि बिना सबूत की दलील और बिना दलील के सबूत कानून की नज़र में कोई सबूत नहीं है।
- उच्चतम न्यायालय ने NCDRC, राज्य फोरम और ज़िला फोरम के निर्णय की पुष्टि की तथा माना कि अपीलकर्त्ता (सेवा प्रदाता) की ओर से सेवा में कमी है, इसलिये अपील खारिज की जाती है।
इस मामले में क्या कानूनी प्रावधान शामिल हैं?
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 (पुराना अधिनियम) की धारा 2(1)(d):
- "उपभोक्ता" से ऐसा कोई व्यक्ति अभिप्रेत है, जो-
(i) किसी ऐसे प्रतिफल के लिये जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागतः संदाय किया गया है और भागतः वचन दिया गया है, या किसी आस्थगित संदाय की पद्धति के अधीन किसी माल का क्रय करता है, तथा इसके अंतर्गत ऐसे किसी व्यक्ति से भिन्न, जो ऐसे प्रतिफल के लिये जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागतः संदाय किया गया है या भागतः वचन दिया गया है या आस्थगित संदाय की पद्धति के अधीन माल का क्रय करता है ऐसे माल का कोई प्रयोगकर्त्ता भी है, जब ऐसा प्रयोग ऐसे व्यक्ति के अनुमोदन से किया जाता है किंतु इसके अंतर्गत ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो ऐसे माल को पुनः विक्रय या किसी वाणिज्यिक प्रयोजन के लिये अभिप्राप्त करता है; और
(ii) किसी ऐसे प्रतिफल के लिये जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागतः संदाय किया गया है और भागतः वचन दिया गया है, या किसी आस्थगित संदाय की पद्धति के अधीन सेवाओं को भाड़े पर लेता है या उनका उपभोग करता है तथा इसके अंतर्गत ऐसे किसी व्यक्ति से भिन्न जो ऐसे किसी प्रतिफल के लिये जिसका संदाय किया गया है एवं वचन दिया गया है व भागतः संदाय किया गया है और भागतः वचन दिया गया है या किसी आस्थगित संदाय की पद्धति के अधीन सेवाओं को भाड़े पर लेता है या उनका उपभोग करता है ऐसी सेवाओं का कोई हिताधिकारी भी है जब ऐसी सेवाओं का उपयोग प्रथम वर्णित व्यक्ति के अनुमोदन से किया जाता है, किंतु इसके अंतर्गत ऐसा व्यक्ति नहीं आता है जो किसी वाणिज्यिक प्रयोजन के लिये ऐसी सेवाएँ प्राप्त करता है।- स्पष्टीकरण- इस खंड के प्रयोजनों के लिये-
(a) “वाणिज्यिक प्रयोजन" के अंतर्गत किसी व्यक्ति द्वारा ऐसे माल या सेवाओं का उपयोग नहीं है जिन्हें वह स्वः नियोजन द्वारा अपनी जीविका उपार्जन के प्रयोजनों के लिये अनन्य रूप से लाया है और जिनका उसने उपयोग किया है तथा उसने जो सेवाएँ प्राप्त की हैं;
- स्पष्टीकरण- इस खंड के प्रयोजनों के लिये-
- नया अधिनियम:
- नए अधिनियम में मौजूदा प्रावधान, यानी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 को धारा 2 (7) (i) के रूप में पुनः क्रमांकित किया गया है।
- नए अधिनियम में मौजूदा प्रावधान में इसके बाद उल्लिखित स्पष्टीकरण भी जोड़ा गया था।
- (b) अभिव्यक्ति "कोई सामान खरीदता है" और "किराये पर लेता है या कोई सेवा लेता है" में इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से या टेलीशॉपिंग या प्रत्यक्ष बिक्री या बहु-स्तरीय विपणन के माध्यम से ऑफलाइन या ऑनलाइन लेन-देन शामिल हैं;