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व्यवहार विधि

ईपीएफ अधिनियम, 1952 के तहत कवरेज

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 19-Oct-2023

मैसर्स माथोश्री माणिकबाई कोठारी कॉलेज ऑफ विजुअल आर्ट्स बनाम सहायक भविष्य निधि आयुक्त

"दो संस्थानों के बीच वित्तीय अखंडता के मामले में, उन्हें ईपीएफ अधिनियम के तहत कवरेज के उद्देश्य से जोड़ा जा सकता है।"

न्यायाधीश हिमा कोहली और राजेश बिंदल

स्रोत- उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने मैसर्स माथोश्री माणिकबाई कोठारी कॉलेज ऑफ विजुअल आर्ट्स बनाम सहायक भविष्य निधि आयुक्त के मामले में कर्मचारी भविष्य निधि प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम, 1952 (ईपीएफ अधिनियम) के तहत कवरेज के उद्देश्य से विभिन्न संस्थानों को क्लब करने से संबंधित कानूनी स्थिति का समाधान किया है।

मैसर्स माथोसरी माणिकबाई कोठारी कॉलेज ऑफ विजुअल आर्ट्स बनाम सहायक भविष्य निधि आयुक्त मामले की पृष्ठभूमि

  • आइडियल फाइन आर्ट्स सोसाइटी दो संस्थान चलाती है, आइडियल इंस्टीट्यूट ऑफ फाइन आर्ट्स और माथोश्री माणिकबाई कोठारी कॉलेज ऑफ विजुअल आर्ट्स।
  • दोनों संस्थान एक ही परिसर में चलाए जा रहे हैं और आइडियल इंस्टीट्यूट में 8 कर्मचारी कार्यरत थे, जबकि आर्ट्स कॉलेज में 18 कर्मचारी।
  • 1 जुलाई, 2003 की प्रवर्तन अधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर, यह बताया गया कि दोनों संस्थानों में कुल 26 कर्मचारी कार्यरत हैं, जिनका प्रबंधन एक ही सोसायटी द्वारा और एक ही परिसर में किया जाता है, इस प्रतिष्ठान को 1 मार्च, 1988 से प्रभावी ईपीएफ अधिनियम के प्रावधानों के तहत कवर किया जाएगा।
  • ईपीएफ अधिनियम की धारा 7-a के तहत एक आदेश पारित किया गया था, जिसमें ईपीएफ अधिनियम की विभिन्न योजनाओं के तहत अपीलकर्त्ता द्वारा किये जाने वाले योगदान की राशि का आकलन किया गया था।
  • उपरोक्त आदेश को अपीलकर्त्ता द्वारा ट्रिब्यूनल/अधिकरण के समक्ष वैधानिक अपील के माध्यम से चुनौती दी गई थी, जिसे बाद में खारिज कर दिया गया था।
  • इसके बाद, अपीलकर्त्ता ने कर्नाटक उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश पीठ के समक्ष ट्रिब्यूनल द्वारा पारित आदेश को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की।
  • उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश पीठ ने ट्रिब्यूनल द्वारा पारित आदेश को बरकरार रखा और अपीलकर्त्ता की संस्था पर ईपीएफ अधिनियम लागू होने के प्रावधान को भी बरकरार रखा।
  • इस रिट अपील में, एकल न्यायाधीश के आदेश को कर्नाटक उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच द्वारा बरकरार रखा गया था।
  • इसके बाद उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील दायर की गई जिसे बाद में खारिज़ कर दिया गया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

  • न्यायाधीश हिमा कोहली और न्यायाधीश राजेश बिंदल की खंडपीठ ने कहा कि, रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री और कानून की स्थापित स्थिति के अवलोकन से, यह सुरक्षित रूप से माना जा सकता है कि अपीलकर्त्ता की सोसायटी और आदर्श के बीच वित्तीय अखंडता है। सोसायटी द्वारा संस्थानों को पर्याप्त धनराशि प्रदान की गई है। इसके अलावा, दोनों संस्थान एक ही परिसर से कार्य कर रहे हैं।
  • इस पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि कवरेज के उद्देश्य से दोनों संस्थानों को आपस में जोड़ा जा सकता है।

शामिल कानूनी प्रावधान

परिचय:

  • यह एक सामाजिक सुरक्षा कानून है जो श्रमिकों की सेवानिवृत्ति पर या उनकी मृत्यु की स्थिति में श्रमिकों के आश्रितों के भविष्य को बेहतर बनाने के लिये बनाया गया है।
  • यह अधिनियम कारखानों और अन्य प्रतिष्ठानों में कर्मचारियों के लिये भविष्य निधि, पेंशन निधि और जमा-लिंक्ड बीमा निधि की स्थापना का प्रावधान करता है।

अधिनियम की प्रयोज्यता

  • इस अधिनियम की धारा 1(3)(a) में कहा गया है कि यह अधिनियम ऐसे प्रत्येक प्रतिष्ठान पर लागू होता है जो अनुसूची I में निर्दिष्ट किसी भी उद्योग में स्थापित फैक्ट्री है और जिसमें बीस या अधिक लोग कार्यरत हैं।
  • इस अधिनियम की धारा 1(3)(b) में कहा गया है कि यह अधिनियम बीस या अधिक व्यक्तियों को रोज़गार देने वाले किसी भी अन्य प्रतिष्ठान या ऐसे प्रतिष्ठानों के एक वर्ग पर लागू होता है, जिसे केंद्र सरकार, आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस संबंध में निर्दिष्ट कर सकती है।
  • बशर्ते कि केंद्र सरकार ऐसा करने के अपने आशय के बारे में कम-से-कम दो माह का नोटिस देने के बाद, आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के प्रावधानों को बीस से कम संख्या में व्यक्तियों को नियोजित करने वाले किसी भी प्रतिष्ठान पर लागू कर सकती है। ऐसा केवल अधिसूचना में निर्दिष्ट करके ही किया जाएगा।
  • ईपीएफ अधिनियम की धारा 7क. नियोजकों द्वारा शोध्य धन का अवधारण-(1) केंद्रीय भविष्य-निधि आयुक्त, कोई भी केंद्रीय भविष्य-निधि अपर आयुक्त, कोई भी भविष्य-निधि उपायुक्त, कोई भी प्रादेशिक भविष्य-निधि आयुक्त या कोई भी भविष्य-निधि सहायक आयुक्त,   आदेश द्वारा-

(क) किसी ऐसे मामले में जहाँ कोई विवाद किसी स्थापन को इस अधिनियम के लागू किये जाने के संबंध में उठता है, ऐसे विवाद का विनिश्चय कर सकेगा; और

(ख) यथास्थिति, इस अधिनियम, स्कीम या  [पेंशन] स्कीम या बीमा स्कीम के किसी उपबंध के अधीन किसी नियोजक द्वारा शोध्य रकम का अवधारण कर सकेगा,

और किसी भी पूर्वोक्त प्रयोजन के लिये ऐसी जाँच कर सकेगा, जो वह आवश्यक समझे।

(2) उपधारा (1) के अधीन जाँच करने वाले अधिकारी को, ऐसी जाँच के प्रयोजनों के लिये, वही शक्तियाँ होंगी, जो निम्नलिखित विषयों के बारे में, अर्थात्:-

(क) किसी व्यक्ति को हाजिर कराने या शपथ पर उसकी संपरीक्षा करने;

(ख) दस्तावेज़ों के प्रकटीकरण तथा पेश करने की अपेक्षा करने;

(ग) शपथपत्र पर साक्ष्य लेने;

(घ) साक्षियों की संपरीक्षा के लिये कमीशन निकालने के बारे में,

  • वाद का विचारण करना, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन आता है, और ऐसी कोई भी जाँच भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 193 और 228 के अंतर्गत और धारा 196 के प्रयोजनों के लिये न्यायिक कार्यवाही समझी जाएगी।

(3)  कोई आदेश उपधारा (1) के अधीन तब तक नहीं किया जाएगा जब तक कि  संबद्ध नियोजकट को अपना मामला अभ्यावेदित करने का युक्तियुक्त अवसर न दे दिया गया हो।

(3क) जहाँ नियोजक, कर्मचारी या कोई अन्य व्यक्ति जिसकी उपधारा (1) के अधीन जाँच में उपस्थित होने की अपेक्षा की जाती है, कोई विधिमान्य कारण बताए बिना, ऐसी जाँच में उपस्थित होने में असफल रहता है या कोई दस्तावेज़ पेश करने में या कोई रिपोर्ट या विवरणी फाइल करने में, जब ऐसा करने की उनसे अपेक्षा की जाए, असफल रहता है, वहाँ जाँच करने वाला अधिकारी ऐसी जाँच के दौरान पेश किये गए साक्ष्य और अभिलेख में उपलब्ध अन्य दस्तावेज़ों के आधार पर, यथास्थिति, अधिनियम के लागू होने के बारे में विनिश्चय कर सकेगा या किसी नियोजक द्वारा शोध्य रकम का अवधारण कर सकेगा।

(4) जहाँ उपधारा (1) के अधीन कोई आदेश किसी नियोजक के विरुद्ध एकपक्षीय रूप से पारित किया जाता है, वहाँ वह, ऐसे आदेश की संसूचना की तारीख से तीन माह के भीतर उसी अधिकारी को ऐसे आदेश को अपास्त करने के लिये आवेदन कर सकेगा और यदि वह अधिकारी उसका समाधान कर देता है कि कारण बताओ सूचना की सम्यक् रूप से तामील नहीं की गई थी या यह कि वह उस समय जब जाँच की गई थी उपस्थित होने से किसी पर्याप्त कारण से निवारित हुआ था, तो वह अधिकारी अपने पूर्वतर आदेश को अपास्त्र करने वाला आदेश कर सकेगा और जाँच की कार्यवाही के लिये कोई तारीख नियत करेगा :

  • परंतु कोई ऐसा आदेश केवल इस आधार पर अपास्त नहीं किया जाएगा कि कारण बताओ सूचना की तामील में कोई अनियमितता हुई है, यदि अधिकारी का यह समाधान हो जाता है कि नियोजक को सुनवाई की तारीख की सूचना थी और अधिकारी के समक्ष उपस्थित होने के लिये पर्याप्त समय था।
  • स्पष्टीकरण- जहाँ कोई अपील एक पक्षीय रूप से पारित आदेश के विरुद्ध इस अधिनियम के अधीन की गई है और ऐसी अपील का निपटारा इस आधार से अन्यथा कि अपीलार्थी ने अपील वापस ले ली है, किसी आधार पर किया गया है वहाँ इस धारा के अधीन उस एक पक्षीय आदेश को अपास्त करने के लिये कोई आवेदन नहीं किया जाएगा।

(5) इस धारा के अधीन पारित कोई आदेश, उपधारा (4) के अधीन किसी आवेदन पर तब तक अपास्त नहीं किया जाएगा जब तक कि उसकी सूचना की तामील विरोधी पक्ष पर न कर दी गई हो।

ईपीएफ अधिनियम के कवरेज के संबंध में प्रमुख निर्णयज विधि

  • एसोसिएटेड सीमेंट कंपनी बनाम कर्मकार (1960) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि कवरेज के उद्देश्य से दो प्रतिष्ठानों को एकत्रित (क्लब) करने से संबंधित मुद्दे को निर्धारित करने के लिये सभी मामलों के लिये ईपीएफ अधिनियम के तहत किसी एक परीक्षण को पूर्ण और अपरिवर्तनीय बनाना असंभव है।
  • नूर निवास नर्सरी पब्लिक स्कूल बनाम क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त और अन्य (2001) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि ईपीएफ अधिनियम के तहत दो प्रतिष्ठानों को एकत्रित (क्लब) करने और कवरेज के उद्देश्य से कोई स्ट्रेट जैकेट फॉर्मूला या परीक्षण निर्धारित नहीं किया जा सकता है।