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दंड विधि

दंड प्रक्रिया संहिता (उत्तर प्रदेश संशोधन) अधिनियम, 2018

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 15-Nov-2023

अल्लामा ज़मीर नकवी उर्फ ताहिर, फ़िर ज़मीन नकवी उर्फ ताहिर बनाम प्रधान सचिव एलकेओ के माध्यम से उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य

"संशोधन अधिनियम, 2018 के लागू होने के बाद 'गिरफ्तारी की आशंका' वाले सभी व्यक्तियों को अग्रिम जमानत उपलब्ध होगी, भले ही अपराध पहले किया गया हो"।

न्यायामूर्ति सुभाष विद्यार्थी

स्रोतः इलाहाबाद उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अल्लामा ज़मीर नकवी उर्फ ताहिर, फ़िर ज़मीन नकवी उर्फ ताहिर बनाम प्रधान सचिव एलकेओ के माध्यम से उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य के मामले में सुनवाई की। न्यायालय ने माना है कि दंड प्रक्रिया संहिता (उत्तर प्रदेश संशोधन) अधिनियम, 2018 द्वारा संशोधित अग्रिम जमानत से संबंधित प्रावधान 2018 से पहले किये गए अपराधों पर भी लागू है।

पृष्ठभूमि

  • इस मामले में आवेदक 2014 में दर्ज एक मामले के लिये अग्रिम जमानत की मांग कर रहा था।
  • आवेदक की अग्रिम जमानत सत्र न्यायालय ने इस आधार पर खारिज कर दी है कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) 1973 की धारा 438 उस पर लागू नहीं होती है।
  • दंड प्रक्रिया संहिता (उत्तर प्रदेश संशोधन) अधिनियम, 2018 को 2019 में अधिसूचित किया गया था।
    • 'संशोधन अधिनियम के उद्देश्यों और कारणों का विवरण' में कहा गया है कि अग्रिम जमानत के प्रावधान के संबंध में सीआरपीसी की धारा 438 को दंड प्रक्रिया संहिता (उत्तर प्रदेश संशोधन) अधिनियम, 1976 द्वारा हटा दिया गया था।

न्यायालय की टिप्पणी

  • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना कि "संशोधन अधिनियम को इसके संचालन में अधिनियम, 2019 के अधिनियमन के बाद किये गए अपराधों तक सीमित नहीं किया जा सकता है और यह संशोधन अधिनियम, 2018 के अधिनियमन के बाद 'गिरफ्तारी की आशंका' वाले सभी व्यक्तियों के लिये उपलब्ध होगा, भले ही अपराध संशोधन अधिनियम, 2018 के लागू होने से पहले किया गया था।'

दंड प्रक्रिया संहिता (उत्तर प्रदेश संशोधन) अधिनियम, 2018

  • अग्रिम जमानत देने वाली सीआरपीसी की धारा 438 को दंड प्रक्रिया (उत्तर प्रदेश संशोधन अधिनियम), 1976 के माध्यम से उत्तर प्रदेश राज्य में हटा दिया गया था।
  • इसके पुनरुद्धार के लिये कई अनुरोध थे।
  • 2009 में राज्य विधि आयोग की तीसरी रिपोर्ट में धारा 438 की बहाली की सिफारिश की गई।
  • इससे संबंधित विधेयक 31 अगस्त, 2018 को पारित किया गया और 1 जून 2019 को राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई।
  • पहले केवल इलाहाबाद उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय को ही अग्रिम जमानत देने की अनुमति थी।
  • हालाँकि, 2018 के संशोधन अधिनियम के बाद, सत्र न्यायालय को धारा 438 सीआरपीसी के तहत जमानत देने की शक्ति भी मिल गई।
  • धारा 438 आरोपी या किसी भी व्यक्ति को, जिसके गिरफ्तार होने की उचित आशंका है, अग्रिम जमानत के लिये आवेदन करने की अनुमति देती है, हालांकि यह पूर्ण अधिकार नहीं है।