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आपराधिक कानून

IPC की धारा 498A के तहत क्रूरता

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 16-Jan-2024

संदेश मधुकर सालुंखे बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य

"पत्नी के खाना पकाने के कौशल पर टिप्पणी करना IPC की धारा 498A के तहत क्रूरता नहीं है।"

न्यायमूर्ति अनुजा प्रभुदेसाई और एन.आर. बोरकर

स्रोत: बॉम्बे उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, संदेश मधुकर सालुंखे बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य के मामले में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने माना है कि पत्नी के खाना पकाने के कौशल पर टिप्पणी करना भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 498 A के तहत क्रूरता नहीं है।

संदेश मधुकर सालुंखे बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में, प्रतिवादी (पत्नी) ने आरोप लगाया कि उसका पति, अमोल सालुंखे, विवाह के बाद से उसके साथ वैवाहिक संबंध स्थापित करने में विफल रहा। उसने अपने ससुराल वालों पर ताने मारने और अपमान करने का भी आरोप लगाया।
  • याचिकाकर्त्ताओं, जो प्रतिवादी के पति के सगे व चचेरे भाई थे, के खिलाफ आरोप लगाया गया है कि उन्होंने टिप्पणी की थी कि प्रतिवादी खाना बनाना नहीं जानती है और उसके माता-पिता ने उसे कुछ भी नहीं सिखाया है।
  • याचिकाकर्त्ताओं के खिलाफ IPC की धारा 498A के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की गई थी।
  • इसके बाद FIR को रद्द करने के लिये उच्च न्यायलय में याचिका दायर की गई।
  • उच्च न्यायलय ने याचिका मंज़ूर करते हुA FIR रद्द कर दी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति अनुजा प्रभुदेसाई और न्यायमूर्ति एन. आर. बोरकर की खंडपीठ ने कहा कि यह टिप्पणी करना कि एक महिला खाना बनाना नहीं जानती, क्रूरता नहीं है तथा IPC की धारा 498 A के तहत अपराध नहीं माना जाएगा।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि IPC की धारा 498A के तहत छोटे-मोटे झगड़े क्रूरता नहीं माने जाते। इस धारा के तहत अपराध का गठन करने के लिये, प्रथम दृष्टया यह साबित करने के लिये साक्ष्य होना चाहिये कि जानबूझकर किया गया आचरण महिला को आत्महत्या करने या गंभीर चोट पहुँचाने के लिये मजबूर कर सकता है, और उसे गैरकानूनी दहेज की मांगों को पूरा करने के लिये परेशान किया गया था।

IPC की धारा 498A क्या है?

परिचय:

  • धारा 498A विवाहित महिलाओं को पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता का शिकार होने से बचाने के लिये वर्ष 1983 में पेश की गई थी।
    • भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 84 इसी प्रावधान से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि जो कोई, स्त्री का पति या पति का रिश्तेदार होते हुए, ऐसी स्त्री के प्रति क्रूरता करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और ज़ुर्माने से भी दंडित होगा।
  • इस धारा के प्रयोजन के लिये, "क्रूरता" का अर्थ है-
    • जानबूझकर किया गया कोई आचरण जो ऐसी प्रकृति का है जिससे किसी स्त्री को आत्महत्या करने के लिये प्रेरित करने की या उस स्त्री के जीवन, अंग या स्वास्थ्य की (जो चाहे मानसिक हो या शारीरिक) गंभीर क्षति या खतरा कारित करने के लिये उसे करने की संभावना है; या
    • किसी स्त्री को तंग करना, जहाँ उसे या उससे संबंधित किसी व्यक्ति को किसी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति के लिये किसी विधिविरुद्ध मांग को पूरी करने के लिये प्रपीड़ित करने की दृष्टि से या उसके अथवा उससे संबंधित किसी व्यक्ति को ऐसे मांग पूरी करने में असफल रहने के कारण इस प्रकार तंग किया जा रहा है।
  • इस धारा के तहत अपराध संज्ञेय और गैर ज़मानती अपराध होता है।
  • धारा 498-A के तहत शिकायत अपराध से पीड़ित महिला या उसके रक्त, विवाह या दत्तक ग्रहण संबंधित किसी भी व्यक्ति द्वारा दर्ज की जा सकती है। और यदि ऐसा कोई रिश्तेदार नहीं है, तो किसी भी लोक सेवक द्वारा जिसे राज्य सरकार द्वारा इस संबंध में अधिसूचित किया जा सकता है।
  • धारा 498-A के तहत अपराध करने का आरोप लगाने वाली शिकायत कथित घटना के 3 वर्ष के भीतर दर्ज की जा सकती है। हालाँकि, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 473 न्यायालय को सीमा अवधि के बाद किसी अपराध का संज्ञान लेने में सक्षम बनाती है यदि वह संतुष्ट है कि न्याय के हित में ऐसा करना आवश्यक है।

आवश्यक तत्त्व:

  • धारा 498-A के तहत अपराध करने के लिये निम्नलिखित आवश्यक तत्त्वों का कारित होना आवश्यक है:
    • महिला विवाहित होनी चाहिये;
    • वह क्रूरता या उत्पीड़न से पीड़ित होनी चाहिये;
    • या तो ऐसी क्रूरता या उत्पीड़न को महिला के पति या उसके पति के रिश्तेदार द्वारा प्रदर्शित किया गया होगा।

निर्णयज विधि:

  • अरुण व्यास बनाम अनीता व्यास, (1999) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि धारा 498-A में अपराध का सार क्रूरता है। यह अपराध लगातार होता है और प्रत्येक अवसर पर जब महिला क्रूरता का शिकार होती थी, तो उसके पास सीमा का एक नया बिंदु होता था।
  • मंजू राम कलिता बनाम असम राज्य (2009) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि किसी अभियुक्त को IPC की धारा 498A के तहत दोषी ठहराने के लिये, यह स्थापित करना होगा कि महिला के साथ लगातार या कम-से-कम शिकायत दर्ज कराने के समय के दौरान क्रूरता की गई है तथा IPC की धारा 498A के प्रावधानों को लागू करने के लिये छोटे-मोटे झगड़ों को क्रूरता नहीं कहा जा सकता है।