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पारिवारिक कानून
मुस्लिम विधि के तहत अभिरक्षा
« »15-Dec-2023
तकबीर खान (नाबालिग) थ्रू. उसकी माँ रेहाना बनाम उत्तर प्रदेश राज्य थ्रू. मुख्य गृह सचिव लखनऊ और 3 अन्य "मुस्लिम विधि के तहत, एक माँ अपने बेटे की 7 वर्ष की आयु पूरी होने तक उसकी अभिरक्षा (हिज़ानत) की हकदार है।" न्यायमूर्ति करुणेश सिंह पवार |
स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति करुणेश सिंह पवार ने कहा है कि मुस्लिम विधि के तहत, एक माँ अपने बेटे की 7 वर्ष की आयु पूरी होने तक उसकी अभिरक्षा (हिज़ानत) की हकदार है।
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह निर्णय तकबीर खान (नाबालिग) थ्रू. उसकी माँ रेहाना बनाम उत्तर प्रदेश राज्य थ्रू. मुख्य गृह सचिव लखनऊ और 3 अन्य के मामले में दिया।
तकबीर खान (नाबालिग) थ्रू. उसकी माँ रेहाना बनाम उत्तर प्रदेश राज्य थ्रू. मुख्य गृह सचिव लखनऊ और 3 अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में, याचिकाकर्ता ने दावा किया कि प्रतिवादी नंबर 4, उसके पति ने शराब के प्रभाव में उसके साथ शारीरिक दुर्व्यवहार किया। इसलिये, वह वर्ष 2021 में अपने बेटे (वर्ष 2020 में जन्मे) के साथ अपने माता-पिता के घर लौट आई।
- याचिकाकर्ता-अभिसाक्षी ने तर्क दिया कि अपने पति के साथ अपने वैवाहिक घर में अस्थायी रूप से सहवास फिर से शुरू करने के बावजूद, उसके व्यवहार में बदलाव नहीं आया और बाद में यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 के तहत पति के खिलाफ मामला दर्ज किया गया, जिसके कारण उस पर आरोप-पत्र दायर किया गया तथा लगभग एक वर्ष तक कारावास में रखा गया।
- यह उनका मामला था कि ज़मानत पर रिहा होने पर, वह कथित तौर पर विवाहेत्तर संबंध में शामिल हो गया, जिस पर उसने आपत्ति जताई थी। पति ने कथित तौर पर उसे वैवाहिक आवास छोड़ने के लिये मजबूर किया, जबकि अभिसाक्षी की इच्छा के विरुद्ध डिटेनु तकबीर खान की अभिरक्षा बरकरार रखी।
- नतीजतन, यह याचिका तकबीर खान/डिटेनु में लिये गए व्यक्ति की अभिरक्षा के लिये न्यायिक हस्तक्षेप की मांग के लिये दायर की गई थी।
- बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट विरोधी पक्ष संख्या 4 को निर्देश देते हुए जारी की गई थी कि वह अभिरक्षा में लिये गए डिटेनु को याचिका के अभिसाक्षी रेहाना को तुरंत सौंप दे।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- तथ्य यह है कि अभिसाक्षी डिटेनु की माँ है, जिसकी उम्र लगभग 3 वर्ष और 7 महीने है, तथा आमतौर पर नाबालिग की अभिरक्षा, जो सिर्फ 3 वर्ष और 7 महीने की है, माँ के पास निहित है।
- डिटेनु की अभिरक्षा अभिसाक्षी-रेहाना को दी जाने योग्य थी।
इस मामले में उद्धृत ऐतिहासिक निर्णय क्या है?
- नील रतन कुंडू और अन्य बनाम अभिजीत कुंडू (2008):
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि नाबालिग बच्चे की अभिरक्षा के लिये पति या पत्नी की उपयुक्तता निर्धारित करने के लिये प्रस्तावित अभिभावक के चरित्र पर विचार करना आवश्यक है।
मुस्लिम विधि के तहत 'अभिरक्षा' की अवधारणा क्या है?
- नाबालिग कौन है?
- भारतीय वयस्कता अधिनियम, 1875 की धारा 3 के अनुसार, भारत गणराज्य में रहने वाला कोई व्यक्ति जो अठारह वर्ष से कम आयु का है, वह नाबालिग है।
- यह माना जाता है कि एक नाबालिग के पास अपने हितों की रक्षा करने की क्षमता नहीं है। इस प्रकार के कानून की आवश्यकता है कि कुछ वयस्क व्यक्तियों को नाबालिग व्यक्ति या उसकी संपत्ति की रक्षा करनी चाहिये और उसकी ओर से सब कुछ करना चाहिये क्योंकि ऐसा नाबालिग कानूनी रूप से अक्षम है।
- संरक्षकता क्या है?
- मुस्लिम विधि के तहत इसे 'हिज़ानत' कहा जाता है।
- किसी बच्चे की संरक्षकता का अर्थ है बच्चे की अल्पवयस्कता के दौरान उसकी समग्र निगरानी।
- पिता या उसके निष्पादक या उसकी अनुपस्थिति में, दादा, वास्तविक संरक्षक होने के नाते, नाबालिग व्यक्ति के प्रभारी होते हैं।
- दूसरी ओर, 'बच्चे की अभिरक्षा' का सीधा सा अर्थ एक निश्चित उम्र तक बच्चे का भौतिक संरक्षण (अभिरक्षा) है।
- हालाँकि मुस्लिम विधि के तहत माँ बच्चे की वास्तविक संरक्षक नहीं है, लेकिन जब तक बच्चा एक निश्चित उम्र का नहीं हो जाता, तब तक उसे बच्चे की अभिरक्षा का अधिकार है। लेकिन पिता या दादा अल्पवयस्कता की पूरी अवधि के दौरान अवयस्क पर नियंत्रण रखते हैं।