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आपराधिक कानून

चेक अनादरण में मांग सूचना

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 24-May-2024

राजीव मल्होत्रा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

"कूरियर सेवा के माध्यम से नोटिस, धारा 138 के अंतर्गत एक वैध लिखित नोटिस है”।

न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल

स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने कहा कि भले ही किसी चेक को प्रस्तुत करने से पहले, पूर्वसूचना की आवश्यकता होती है, परंतु प्रस्तुति से पहले कोई अधिसूचना नहीं दिये जाने के कारण इसके अनादर पर धारा 138 परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (NI  अधिनियम) का दायित्व आएगा।

  • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी राजीव मल्होत्रा बनाम यूपी राज्य के मामले में दी थी।

राजीव मल्होत्रा बनाम यूपी राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • यह आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 482 के अधीन 16 अगस्त 2023 के समन आदेश और NI अधिनियम की धारा 138 के अधीन राहुल चौहान बनाम राजीव मल्होत्रा के चेक अनादर की पूरी कार्यवाही को रद्द करने के लिये दायर किया गया एक आवेदन था।
  • इसमें मुख्य मुद्दे थे:
    • क्या न्यायालय गैर-अभियोजन के लिये शिकायत को खारिज करने वाले अपने पूर्व के आदेश को वापस ले सकती है?
    • क्या बिना किसी पूर्व सूचना के प्रस्तुत किया गया सशर्त चेक, धारा 138 दायित्व को आकर्षित करता है?
    • क्या कूरियर सेवा के माध्यम से दिया गया नोटिस धारा 138 के तहत वैध नोटिस है?
    • क्या व्हाट्सएप के माध्यम से नोटिस, इलेक्ट्रॉनिक सेवा के लिये विशिष्ट नियमों के बिना, वैध है?

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • अर्द्ध नागरिक(सिविल) प्रकृति:
    • न्यायालय अपने पहले के आदेश को वापस ले सकती है जिसमें प्रारंभिक चरण में अभियोजन न चलाने के लिये शिकायत को खारिज कर दिया गया था, क्योंकि NI अधिनियम की कार्यवाही प्रकृति अर्ध-सिविल प्रकार की है।
  • मांग सूचना:
    • कूरियर सेवा के माध्यम से नोटिस, धारा 138 के तहत एक वैध लिखित नोटिस है, परंतु सामान्य धारा अधिनियम, 1897 की धारा 27 के अधीन, सेवा की अवधारणा तब तक लागू नहीं की जा सकती जब तक कि कूरियर को पंजीकृत डाक के साथ शामिल नहीं किया जाता है।
    • व्हाट्सएप के माध्यम से सूचना, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT अधिनियम) की धारा 13 के अंतर्गत वैध सेवा है तथा प्रक्रिया निर्धारित करने के लिये किसी अलग नियम की आवश्यकता नहीं है।
  • निष्कर्ष:
    • आवेदन खारिज कर दिया गया तथा न्यायालय ने सभी ज़िला न्यायालयों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि आदेश-पत्र साफ और सुपाठ्य लिखावट में लिखे जाएँ अथवा टाइप किये गए हों।

NI अधिनियम के अधीन चेक का अनादरण क्या है?

  • परिचय:
    • चेक का अनादरण धारा 138 के अधीन विनियमित किया जाता है, जो NI अधिनियम के अध्याय 17 के अंतर्गत वर्ष 1988 में शामिल किया गया है।
    • NI अधिनियम की धारा 138 विशेष रूप से धन की कमी अथवा चेक-जारीकर्त्ता के खाते द्वारा भुगतान की जाने वाली राशि अधिक होने पर चेक के अनादरण के अपराध से संबंधित है।
    • यह उस प्रक्रिया से संबंधित है जहाँ कोई चेक, किसी ऋण को पूर्णतः अथवा आंशिक रूप से चुकाने के लिये चेक-जारीकर्त्ता द्वारा जारी किया जाता है तथा यह चेक, बैंक को वापस कर दिया जाता है।

  • महत्त्वपूर्ण तत्त्व:
    • जारीकर्त्ता का उत्तरदायित्व:
      • चेक का अनादर होने पर चेक जारीकर्त्ता आपराधिक रूप से उत्तरदायी हो जाता है।
      • अंतर्निहित लेन-देन की प्रकृति की परवाह किये बिना आपराधिक दायित्व स्थापित किया जाता है।
    • अपराध के लिये शर्तें:
      • आवश्यक शर्तों में ऋण या अन्य देनदारी का होना, चेक जारी करना तथा उसके बाद उस चेक का अनादर शामिल है।
      • यदि चेक जारीकर्त्ता के पास पर्याप्त धनराशि है, परंतु किसी अन्य कारण से चेक अनादरित हो गया है, तो यह अपराध लागू नहीं होता है।
  • अभियोजन की प्रक्रिया:
    • जारीकर्त्ता को नोटिस:
      • भुगतान प्राप्तकर्त्ता को अनादर के 30 दिनों के भीतर भुगतान की मांग करते हुए एक नोटिस जारी करना होगा।
      • स्थिति को सुधारने के लिये नोटिस प्राप्त करने वाले के पास 15 दिन का समय है, अन्यथा विधिक कार्रवाई शुरू की जा सकती है।
    • शिकायत दर्ज करने की समय-सीमा:
      • धारा 138 के तहत शिकायत, 15 दिन की नोटिस अवधि समाप्त होने के एक महीने के भीतर दर्ज की जानी चाहिये।
    • शिकायत दर्ज करने का क्षेत्राधिकार:
      • शिकायत उस न्यायालय में दायर की जा सकती है जिसके स्थानीय क्षेत्राधिकार में भुगतानकर्त्ता का बैंक स्थित है।
  • दण्ड:
    • कारावास:
      • धारा 138 के अधीन दोषसिद्धि पर दो वर्ष तक का कारावास हो सकता है।
    • अर्थदण्ड:
      • चेक जारीकर्त्ता को अर्थदण्ड देना पड़ सकता है जो चेक या ऋण की राशि के दोगुने तक हो सकता है।
  • महत्त्वपूर्ण मामले:
    • डालमिया सीमेंट (भारत) लिमिटेड बनाम गैलेक्सी ट्रेडर्स एंड एजेंसीज़ लिमिटेड (2001):
      • उच्चतम न्यायालय ने माना कि जिस तिथि को फैक्स द्वारा भेजा गया नोटिस, चेक जारीकर्त्ता के पास पहुँचा, उस दिन 15 दिनों की अवधि (जिसके भीतर उसे भुगतान करना होता है) प्रारंभ हो गई थी तथा अवधि की समाप्ति पर अपराध पूरा हो गया था, यदि इस अवधि के अंदर भुगतान न किया जाए।
    • सुनील तोड़ी एवं अन्य बनाम गुजरात राज्य एवं अन्य (2021):
      • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि भले ही ऐसी शर्त हो कि चेक केवल प्रतिभूति के लिये है तथा पुष्टि के बाद जमा किया जाना है, नोटिस के 15 दिनों के अंदर राशि का भुगतान नहीं करने पर धारा 138 के अंतर्गत इसका अनादर माना जाएगा।