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विवाह के पंजीकरण से इनकार

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 13-Dec-2023

श्रीमती अश्वनी शरद पेंडसे और अन्य बनाम हिंदू विवाह रजिस्ट्रार और अन्य

"केवल इस आधार पर कि एक पक्ष विदेशी नागरिक है, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत विवाह के पंजीकरण से इनकार करना उचित नहीं है।"

न्यायमूर्ति अनूप कुमार ढांड

स्रोत: राजस्थान उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में श्रीमती अश्वनी शरद पेंडसे और अन्य बनाम हिंदू विवाह रजिस्ट्रार और अन्य के मामले में राजस्थान उच्च न्यायालय ने कहा है कि केवल इस आधार पर कि एक पक्ष विदेशी नागरिक है, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) के तहत विवाह के पंजीकरण से इनकार करना उचित नहीं है।

श्रीमती अश्वनी शरद पेंडसे और अन्य बनाम हिंदू विवाह रजिस्ट्रार और अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में याचिकाकर्ता (पति-पत्नी) स्वयं को हिंदू विवाहित जोड़ा बता रहे हैं और पत्नी भारत की निवासी है, जबकि पति बेल्जियम का निवासी है।
  • उन्होंने 18 जनवरी, 2010 को हिंदू रीति-रिवाज़ों के अनुसार विवाह किया है।
  • रजिस्ट्रार ने यह कहते हुए उनके विवाह को पंजीकृत करने से इनकार कर दिया कि उनका विवाह पंजीकृत नहीं की जा सकता क्योंकि पति एक विदेशी नागरिक है और वह भारत का निवासी नहीं है।
  • इसके बाद, याचिकाकर्ताओं ने विवाह रजिस्ट्रार को उनके विवाह को पंजीकृत करने और उन्हें विवाह प्रमाण पत्र जारी करने का निर्देश देने के लिये राजस्थान उच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट याचिका दायर की है।
  • याचिका स्वीकार करते हुए उच्च न्यायालय ने विवाह रजिस्ट्रार को जोड़े को विवाह प्रमाणपत्र जारी करने का निर्देश दिया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति अनूप कुमार ढांड की एकल-न्यायाधीश पीठ ने कहा कि इस आधार पर विवाह के पंजीकरण से इनकार करना कि एक पक्ष विदेशी नागरिक है, उचित नहीं है।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि प्रतिवादी याचिकाकर्ताओं के विवाह को केवल इसलिये पंजीकृत करने से इनकार नहीं कर सकते क्योंकि पति विदेशी है और भारत का नागरिक नहीं है। यदि याचिकाकर्ता HMA के तहत निहित प्रावधानों के संदर्भ में अपने विवाह के में वैध सबूत प्रस्तुत करते हैं, तो प्रतिवादी को बिना किसी देरी के तत्काल प्रभाव से उनके विवाह को पंजीकृत करना होगा।
  • इसमें आगे कहा गया कि HMA की धारा 8 हिंदू विवाहों के पंजीकरण की प्रक्रिया से संबंधित है। लेकिन इसमें कहीं भी यह उल्लेख नहीं किया गया है कि एक विदेशी हिंदू नागरिक भारत में अपना विवाह पंजीकृत नहीं करा सकता है, यदि उसने HMA की आवश्यकता के अनुसार विवाह किया है।
  • न्यायालय ने राज्य के अधिकारियों और प्रतिवादी को HMA के तहत ई-पोर्टल पर आवश्यकता को संपादित करने के लिये कदम उठाने का भी निर्देश दिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यदि संबंधित पक्ष कानून के अनुसार सख्ती से अपने विवाह का वैध प्रमाण प्रस्तुत करते हैं, तो पार्टियों के भारत के नागरिक होने की आवश्यकता पर ज़ोर न दिया जाए।

HMA की धारा 8 क्या है?

परिचय:

यह धारा हिंदू विवाहों के पंजीकरण से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-

(1) राज्य सरकार हिन्दू-विवाहों की सिद्धि को सुकर करने के प्रयोजन के लिये यह उपबन्धित करने वाले नियम बना सकती है कि ऐसे किसी विवाह के पक्षकार अपने विवाह से सम्बद्ध विशिष्टयाँ इस प्रयोजन के लिये रखे जाने वाले हिन्दू-विवाह रजिस्टर में ऐसी रीति में और ऐसी शर्तों के अधीन रहकर जैसी कि विहित की जायें, प्रविष्ट कर सकती है।

(2) यदि राज्य सरकार की यह राय है कि ऐसा करना आवश्यक या इष्टकर है तो यह उपधारा (1) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी यह उपबन्ध कर सकती है कि उपधारा (1) में निर्दिष्ट विशिष्टयों को प्रविष्ट करना उस राज्य में या उसके किसी भाग में या तो सब अवस्थाओं में या ऐसी अवस्थाओं में जैसी कि उल्लिखित की जायें, अनिवार्य होगा और जहाँ कि ऐसा कोई निर्देश निकाला गया है, वहाँ इस निमित्त बनाए गए किसी नियम का उल्लंघन करने वाला कोई व्यक्ति ज़ुर्माने से जो कि 25 रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा।

(3) इस धारा के अधीन बनाए गए सब नियम अपने बनाए जाने के यथाशक्य शीघ्र पश्चात् राज्य विधान मण्डल के समक्ष रखे जाएंगे।

(4) हिन्दू-विवाह रजिस्टर सब युक्तियुक्त समयों पर निरीक्षण के लिये खुला रहेगा और उसमें अन्तर्विष्ट कथन साक्ष्य के रूप में ग्राह्य होंगे और रजिस्ट्रार आवेदन किये जाने पर और अपने की विहित फीस की देनगियाँ किये जाने पर उसमें से प्रमाणित उद्धरण देगा

(5) इस धारा में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी किसी हिन्दू-विवाह की मान्यता ऐसी प्रविष्टि करने में कार्यलोप के कारण किसी अनुरीति में प्रभावित न होगी।

निर्णयज विधि:

  • भूमिका मोहन जयसिंघानी और अन्य बनाम विवाह रजिस्ट्रार और अन्य (2019) के मामले में, एक पक्ष कनाडा का नागरिक था और दूसरा पक्ष ब्रिटेन का निवासी था। दोनों ने अपने विवाह के पंजीकरण के लिये ऑनलाइन आवेदन किया लेकिन सॉफ्टवेयर ने उनके आवेदन को स्वीकार नहीं किया क्योंकि वे भारत के नागरिक नहीं थे। दिल्ली उच्च न्यायालय ने न केवल विवाह रजिस्ट्रार को दो विदेशियों (भारत के नागरिक नहीं) के विवाह को पंजीकृत करने का निर्देश दिया, बल्कि अधिकारियों को सॉफ्टवेयर में संशोधन के लिये आवश्यक कदम उठाने का भी निर्देश दिया, जिसका उपयोग विवाह के पंजीकरण और प्रमाणपत्रों के जारी करने के लिये किया जा रहा था।