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आपराधिक कानून

आयु का निर्धारण

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 04-Jul-2024

न्यायालय द्वारा स्वप्रेरणा से बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य

“यौन उत्पीड़न के ऐसे मामलों में, जहाँ भी न्यायालय को "अस्थिआयु निर्धारण रिपोर्ट" के आधार पर पीड़ित की आयु निर्धारित करने के लिये कहा जाता है, "संदर्भ सीमा" में दी गई ऊपरी आयु को पीड़ित की आयु माना जाएगा”।

न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति मनोज जैन

स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति मनोज जैन की पीठ ने कहा कि "यौन उत्पीड़न के ऐसे मामलों में, जहाँ भी न्यायालय को "अस्थिआयु निर्धारण रिपोर्ट" के आधार पर पीड़ित की आयु निर्धारित करने के लिये कहा जाता है, "संदर्भ सीमा" में दी गई ऊपरी आयु को पीड़ित की आयु माना जाना चाहिये"।

  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी न्यायालय द्वारा स्वप्रेरण बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य के मामले में की।

न्यायालय द्वारा स्वप्रेरण बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • यह एक अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा किया गया संदर्भ है, जिसमें लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण, 2015 (POCSO) मामलों में अस्थिआयु निर्धारण परीक्षण का उपयोग करते समय पीड़ितों की आयु का निर्धारण करने के तरीके पर स्पष्टीकरण मांगा गया है।
  • जिस विशिष्ट मामले के कारण यह संदर्भ दिया गया, उसमें एक आरोपी भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 376/506 और POCSO अधिनियम की धारा 4 के अधीन अपराधों के लिये वाद का सामना कर रहा था।
  • पीड़िता की आयु निर्धारित करने के लिये कोई स्कूल रिकॉर्ड या जन्म प्रमाण-पत्र उपलब्ध नहीं था, अतःअस्थिआयु परीक्षण कराया गया।
  • अस्थिआयु परीक्षण रिपोर्ट के अनुसार पीड़िता की आयु 16-18 वर्ष के बीच थी।
  • बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि या तो:
  • त्रुटि का 2 वर्ष का अतिरिक्त लाभ लागू किया जाना चाहिये, जिससे आयु सीमा 14-20 वर्ष हो जाएगी, या
  • न्यूनतम 18 वर्ष की ऊपरी आयु का प्रयोग किया जाना चाहिये, जिससे POCSO अधिनियम लागू नहीं होगा।
  • ट्रायल कोर्ट ने स्पष्टीकरण के लिये मामला दिल्ली उच्च न्यायालय को भेज दिया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • उच्च न्यायालय ने कहा कि POCSO मामलों में अस्थिआयु परीक्षण के आधार पर पीड़ित की आयु निर्धारित करते समय, न्यायालयों को अनुमानित सीमा की ऊपरी आयु को पीड़ित की आयु के रूप में मानना चाहिये।
  • उस ऊपरी आयु में 2 वर्ष की अतिरिक्त त्रुटि लाभ लागू किया जाना चाहिये।
  • न्यायालय ने निम्न तर्क दिये:
  • विरोधात्मक विधिक प्रणाली केवल निर्दोषता को स्वीकार करती है और उचित संदेह से परे साक्ष्य की आवश्यकता होती है। किसी भी प्रकार के संदेह से अभियुक्त को लाभ होता है।
  • उच्चतम न्यायालय सहित पिछले निर्णयों में कहा गया है कि अस्थिआयु परीक्षण सटीक नहीं होते हैं तथा दो वर्ष की त्रुटि सीमा की अनुमति दी जानी चाहिये।
  • यद्यपि यह दृष्टिकोण मूलतः किशोर अपराधियों के लिये प्रयोग किया गया था, परंतु यही सिद्धांत पीड़ितों की आयु निर्धारित करने के लिये भी लागू होना चाहिये।
  • यह व्याख्या अभियुक्त को सभी चरणों में संदेह का लाभ देने के स्थापित विधिक सिद्धांतों के अनुरूप है।
  • उच्च न्यायालय ने निचली न्यायालय को इस निर्णय के अनुसार मामले का निर्णय करने का निर्देश दिया।

आयु निर्धारण की प्रक्रिया क्या है?

POCSO अधिनियम:

  • प्रावधान:
  • धारा 2(d): बालक की परिभाषा 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति के रूप में की गई है।
  • धारा 34: विशेष न्यायालय द्वारा आयु निर्धारण की प्रक्रिया की रूपरेखा:
  • न्यायालय को व्यक्ति की आयु के बारे में स्वयं संतुष्ट होना चाहिये
  • न्यायालय को आयु निर्धारण के लिये अपने कारणों को लिखित रूप में दर्ज करना होगा
  • विशेष न्यायालय द्वारा दिये गए आदेश, गलत आयु निर्धारण के बाद के साक्ष्य से अमान्य नहीं होते
  • निर्णयज विधियाँ:
  • राज्य बनाम वरुण (2013): संदेह की स्थिति में न्यायालयों को पीड़ित की किशोर अवस्था को ध्यान में रखना चाहिये।
  • शाह नवाज़ बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2011): चिकित्सा राय केवल तभी मांगी जानी चाहिये जब दस्तावेज़ी साक्ष्य उपलब्ध न हों।

किशोर न्याय अधिनियम, 2015: 

  • धारा 94: आयु निर्धारण की प्रक्रिया निर्धारित करती है:
  • यदि वह स्पष्टतः बालक है तो समिति/बोर्ड उसकी स्थिति के आधार पर आयु निर्धारित कर सकता है।
  • यदि संदेह हो तो निम्नलिखित क्रम में साक्ष्य मांगें:
  • स्कूल सर्टिफिकेट या मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट
  • निगम, नगर निगम या पंचायत से जन्म प्रमाण-पत्र
  • अस्थिभंग (अस्थिआयु )परीक्षण या नवीनतम चिकित्सा आयु निर्धारण परीक्षण (केवल तभी जब i और ii उपलब्ध न हों)
  • निर्णयज विधियाँ:
  • जरनैल सिंह बनाम हरियाणा राज्य (2013): न्यायालय ने माना कि JJ अधिनियम की प्रक्रिया बाल पीड़ितों की आयु निर्धारित करने के लिये भी लागू होनी चाहिये।
  • मध्य प्रदेश राज्य बनाम अनूप सिंह (2015): पुष्टि की गई कि JJ नियम 2007 का नियम 12(3) बलात्कार पीड़ितों की आयु निर्धारित करने के लिये लागू होता है।

अस्थिभंग परीक्षण क्या है?

  • अस्थि अस्थिभंग या अस्थिजनन, हड्डियों के निर्माण की प्रक्रिया है। अस्थिआयु की गणना अस्थिभंग परीक्षणों के माध्यम से की जाती है, जो जन्म से लेकर पच्चीस वर्ष की आयु के बीच मानव शरीर में जोड़ों के संलयन के आधार पर अनुमान है, हालाँकि यह हर व्यक्ति के आधार पर भिन्न होता है। किसी विशेष मामले में घटना की तिथि पर आरोपी या पीड़ित की आयु का पता लगाने के लिये अस्थिकरण परीक्षण किया जाता है। यह परीक्षण किशोरों से जुड़े मामलों में प्रासंगिक हो जाता है क्योंकि विधि के साथ संघर्ष करने वाले बच्चों के साथ-साथ संरक्षण और देखरेख की आवश्यकता वाले बच्चों के संबंध में विशेष प्रावधान बनाए गए हैं [किशोर न्याय अधिनियम (बच्चों की देखभाल और संरक्षण), 2015 'JJ अधिनियम 2015']।
  • विनोद कटारा बनाम यूपी राज्य (2022)- अस्थिकरण परीक्षण एक सटीक विधि नहीं है जो हमें व्यक्ति की सही आयु बता सके।