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जमानत आवेदनों के शीघ्र निस्तारण हेतु दिशा-निर्देश

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 22-Jan-2024

राजंती देवी @ राजंती कुमारी बनाम भारत संघ

"जमानत आवेदनों के शीघ्र निपटान के लिये उच्च न्यायालयों को निर्देश।"

जस्टिस बेला त्रिवेदी और सतीश चंद्र शर्मा

स्रोतः उच्चतम न्यायालय

चर्चा  में क्यों?

हाल ही में जस्टिस बेला त्रिवेदी और सतीशचंद्र शर्मा की बेंच ने उच्च न्यायालय को जमानत अर्जियों के जल्द निपटारे के निर्देश दिये थे।

  • उच्चतम न्यायालय ने राजंती देवी @ राजंती कुमारी बनाम भारत संघ के मामले में यह टिप्पणी की।

राजंती देवी @ राजंती कुमारी बनाम भारत संघ की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • रजिस्ट्री के माध्यम से अपने कार्यालय रिपोर्ट के साथ प्रस्तुत अनुपालन रिपोर्ट पर विचार करने के लिये विविध आवेदन न्यायालय के समक्ष दायर किया गया था।
  • रिपोर्ट के अनुसार, एक अग्रिम जमानत के मामले में एक लंबी प्रक्रिया चली, जिसमें संबंधित न्यायाधीश ने 07 अप्रैल 2022 को फैसला सुरक्षित कर दिया।
    • करीब एक वर्ष बाद 04 अप्रैल, 2023 को फैसला सुनाया गया।
  • न्यायालय ने जमानत आवेदनों की संख्या को स्वीकार किया, लेकिन लगातार हो रही देरी पर चिंता व्यक्त की और इस मुद्दे के समाधान के लिये दिशानिर्देश जारी किये।

न्यायालय की टिप्पणियाँ :

  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यह निर्देश दिया जाता है कि सभी न्यायालय उसके द्वारा कई फैसलों में जारी निर्देशों/दिशा-निर्देशों का ईमानदारी से पालन करेंगे।
  • उच्चतम न्यायालय ने प्रत्येक माह के अंत में प्रत्येक न्यायालय में निर्णयों और आदेशों के लिये आरक्षित मामलों की लम्बितता की जाँच और सत्यापन करने के लिये एक प्रणाली/तंत्र विकसित करने की ज़िम्मेदारी उच्च न्यायालयों पर छोड़ दी।

उच्चतम न्यायालय द्वारा उद्धृत ऐतिहासिक निर्णय:

  • अनिल राय बनाम बिहार राज्य (2001):
    • उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश रजिस्ट्री को उचित निर्देश जारी कर सकते हैं, ऐसे मामले में जहाँ निर्णय सुरक्षित रखा गया है और बाद में सुनाया गया है, निर्णय में एक कॉलम जोड़ा जाए, जहाँ पहले पृष्ठ पर, कारण-शीर्षक के बाद, आरक्षण की तारीख लिखी जाए। संबंधित न्यायालय अधिकारी द्वारा निर्णय और उसे सुनाने की तारीख का अलग से उल्लेख किया जाना चाहिये।
    • उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को, अपने प्रशासनिक पक्षकार की ओर से, उच्च न्यायालयों में विभिन्न पीठों के न्यायालय अधिकारियों/रीडर्स को प्रत्येक माह उन मामलों की सूची प्रस्तुत करने का निर्देश देना चाहिये, जहाँ आरक्षित निर्णय उस माह की अवधि के अंदर नहीं सुनाए जाते हैं।
    • यह देखते हुए कि कार्यवाही के समापन के बाद दो माह की अवधि के अंदर निर्णय नहीं सुनाया जाता है, तब संबंधित मुख्य न्यायाधीश संबंधित पीठ का ध्यान लंबित मामले की ओर आकर्षित करेंगे।
      • मुख्य न्यायाधीश ऐसे मामलों के विवरण को उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के बीच उनकी जानकारी के लिये प्रसारित करने की वांछनीयता भी देख सकते हैं, जिनमें कार्यवाही समाप्त होने की तारीख से छह सप्ताह की अवधि के अंदर निर्णय नहीं सुनाया गया है।
      • ऐसा संचार गोपनीय और सीलबंद लिफाफे में किया जाना चाहिये।
    • जहाँ कोई फैसला सुरक्षित रखने की तारीख से तीन माह के भीतर नहीं सुनाया जाता है, तब मामले में किसी भी पक्षकार को शीघ्र फैसले की प्रार्थना के साथ उच्च न्यायालय में आवेदन दायर करने की अनुमति दी जाती है।
      • ऐसा आवेदन, जब भी दायर किया जाएगा, न्यायालय के अवकाश काल को छोड़कर दो दिवसों के भीतर संबंधित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाएगा।
    • यदि किसी भी कारण से, छह माह की अवधि के अंदर निर्णय नहीं सुनाया जाता है, तो उक्त मुकदमे का कोई भी पक्ष उक्त मामले को वापस लेने की प्रार्थना के साथ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष एक आवेदन दायर करने का हकदार होगा। नवीन और नए सिरे से कार्यवाही आरंभ करने के लिये इसे किसी अन्य पीठ को सौपा जाएगा ।
      • इससे संबंधित मुख्य न्यायाधीश के पास विवेकाधिकार है, कि वह उक्त प्रार्थना को स्वीकार कर सकता है या कोई अन्य आदेश पारित कर सकता है, जो भी वह परिस्थितिजन्य कारणों से उचित समझे।
  • सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम केंद्रीय अन्वेषण अभिकरण और अन्य, (2022):
    • उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया कि जमानत आवेदनों पर दो सप्ताह के अंदर फैसला किया जाना चाहिये, जब तक कि कोई हस्तक्षेप करने वाला आवेदन न हो या आवश्यकताओं के लिये अलग समय सीमा की आवश्यकता न हो।
    • किसी भी हस्तक्षेप आवेदन को छोड़कर, अग्रिम जमानत के आवेदनों का छह सप्ताह की अवधि के अंदर निपटारा होने की उम्मीद है।