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पारिवारिक कानून

परित्याग के आधार पर विवाह-विच्छेद

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 11-Jun-2024

X बनाम Y

“प्रतिवादी/पति की 2017 से दो वर्ष से अधिक समय तक गिरफ्तारी एवं कारावास, पत्नी के लिये पारिस्थितिजन्य परित्याग के समतुल्य है, जो विवाह-विच्छेद देने का एक आधार है।”

न्यायमूर्ति विवेक रूसिया एवं न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार वाणी

स्रोत: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति विजय कुमार शुक्ला एवं न्यायमूर्ति हृदेश की पीठ ने परित्याग के आधार पर विवाह-विच्छेद को स्वीकृति दे दी।

  • मध्य प्रदेश सरकार ने यह निर्णय X बनाम Y के मामले में दिया।

X बनाम Y मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • अपीलकर्त्ता/पत्नी ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 13(1) के अंतर्गत प्रतिवादी/पति के साथ अपने विवाह के समापन की मांग करते हुए याचिका दायर की। 21 नवंबर 2011 को विवाह संपन्न हुआ था।
  • अपीलकर्त्ता/पत्नी ने आरोप लगाया कि प्रतिवादी/पति का स्वभाव क्रूर, आक्रामक एवं चिड़चिड़ा था तथा उसने उसे शारीरिक एवं मानसिक रूप से प्रताड़ित किया।
  • प्रतिवादी/पति के विरुद्ध दो आपराधिक मामले दर्ज किये गए।
  • दूसरे मामले में प्रतिवादी/पति को भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 302 के अधीन दोषी ठहराया गया तथा अपने पिता की हत्या के लिये आजीवन कारावास की सज़ा दी गई।
  • कुटुंब न्यायालय ने अपीलकर्त्ता/पत्नी की विवाह-विच्छेद की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि आपराधिक मामले में दोषसिद्धि क्रूरता नहीं है तथा वर्ष 2017 में आपराधिक मामला दर्ज होने से पहले क्रूरता का कोई साक्ष्य नहीं था।
  • अपीलकर्त्ता/पत्नी ने कुटुंब न्यायालय के निर्णय को चुनौती देते हुए अपील दायर की, जिसमें तर्क दिया गया कि प्रतिवादी/पति की हत्या एवं आजीवन कारावास की सज़ा उसके प्रति मानसिक क्रूरता है तथा उसके एवं उसकी अप्राप्तवय पुत्री के लिये उसके साथ रहना दुष्कर होगा।
  • अपीलकर्त्ता/पत्नी ने यह भी दावा किया कि वर्ष 2017 से प्रतिवादी/पति की गिरफ्तारी एवं कारावास दो वर्ष से अधिक समय तक परित्याग करने के समतुल्य है।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • इस अपील में न्यायालय द्वारा विचारित एकमात्र मुद्दा यह है कि क्या भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 के अधीन आपराधिक मामले में पति को दोषी ठहराना एवं आजीवन कारावास की सज़ा देना, पत्नी के प्रति "मानसिक क्रूरता" के तुल्य है।
    • न्यायालय ने कहा कि यद्यपि HMA में पति या पत्नी को आजीवन कारावास की सज़ा दिये जाने पर विवाह-विच्छेद देने का कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन मानसिक क्रूरता के आधार पर विवाह-विच्छेद देने का प्रावधान है।
  • न्यायालय ने कहा कि प्रतिवादी/पति की आक्रामक प्रकृति, उसके विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 307 के अधीन अभियोजित करना तथा उसके बाद धारा 302 के अधीन अपने पिता की हत्या के लिये उसे दोषी ठहराए जाने के कारण, उसके साथ रहने के दौरान पत्नी एवं उसकी अप्राप्तवय पुत्री की सुरक्षा को लेकर लगातार भय बना रहेगा।
  • न्यायालय ने कहा कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 के अधीन पति को दोषी ठहराना एवं आजीवन कारावास की सज़ा देना, पत्नी के प्रति मानसिक क्रूरता है, जिसके कारण उसे अपने पति से विवाह-विच्छेद लेने का अधिकार है।
  • न्यायालय ने यह भी कहा कि वर्ष 2017 से प्रतिवादी/पति की गिरफ्तारी एवं कारावास, दो वर्ष से अधिक समय तक पत्नी के पारिस्थितिजन्य परित्याग के समतुल्य है, जो विवाह-विच्छेद देने का एक अतिरिक्त आधार है।
  • तद्नुसार, न्यायालय ने अपील को अनुमति दी, पत्नी की याचिका को खारिज करने वाले कुटुंब न्यायालय के निर्णय को खारिज कर दिया तथा 21 नवंबर 2011 को अपीलकर्त्ता/पत्नी एवं प्रतिवादी/पति के मध्य हुए विवाह को भंग कर दिया।

परित्याग के द्वारा विवाह-विच्छेद से संबंधित विधियाँ क्या है?

  • परिचय:
    • परित्याग HMA की धारा 13(1)(ib) के अंतर्गत विवाह-विच्छेद का आवेदन करने के लिये एक युक्तियुक्त आधार है।
    • यह विवाह के सार को नकारने को संदर्भित करता है, जो एक साथ रहना है। जब एक पति या पत्नी बिना किसी उचित कारण के और उनकी सहमति के बिना दूसरे को त्याग देते हैं, तो इसे परित्याग माना जाता है।
    • HMA में परित्याग की अवधारणा को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है, क्योंकि यह एक गतिशील एवं परिवर्तनशील अवधारणा है, जो समय और सामाजिक मानदंडों के साथ परिवर्तित होती रहती है।
  • परित्याग के तत्त्व:
    • फैक्टम डेसेरेन्डी: एक पति या पत्नी का दूसरे से वास्तविक पृथक्करण या शारीरिक रूप से पृथक होना।
    • एनिमस डेसेरेन्डी: दूसरे पति या पत्नी को छोड़ने या सदैव के लिये त्यागने का आशय।
    • उचित कारण का अभाव: परित्याग किसी उचित कारण या औचित्य के बिना होना चाहिये।
    • सहमति का अभाव: परित्याग, परित्यक्त पति या पत्नी की इच्छा के विरुद्ध या उसकी सहमति के बिना होना चाहिये।
    • दो वर्षों की निरंतर अवधि: परित्याग, विवाह-विच्छेद याचिका की प्रस्तुति से ठीक पहले कम-से-कम दो वर्षों की निरंतर अवधि के लिये जारी रहना चाहिये।
  • परित्याग के प्रकार:
    • वास्तविक परित्याग: जब एक पति या पत्नी दूसरे पति या पत्नी को स्थायी रूप से त्यागने के आशय से वैवाहिक घर को शारीरिक रूप से छोड़ देता है।
    • रचनात्मक परित्याग: जब एक पति या पत्नी का आचरण ऐसा हो कि दूसरे पति या पत्नी के लिये उनके साथ रहना असंभव हो जाए, जिससे दूसरे पति या पत्नी को वैवाहिक घर छोड़ने के लिये विवश होना पड़े।
  • परित्याग की समाप्ति:
    • सहजीवन की बहाली: यदि परित्यक्त पति या पत्नी आपसी सहमति एवं सुलह के आशय से परित्यक्त पति या पत्नी के साथ विवाह संस्थित करते हैं, तो परित्याग समाप्त हो जाता है।
    • वैवाहिक संभोग की बहाली: वैवाहिक संभोग सुलह एवं परित्याग को समाप्त करने के आशय के रूप में देखा जा सकता है, बशर्ते कि यह एक आकस्मिक कार्य न हो।
    • सुलह का प्रस्ताव: यदि परित्याग करने वाला पति या पत्नी वास्तव में सुलह करने एवं वैवाहिक जीवन में वापस लौटने का प्रस्ताव करता है तथा प्रस्ताव के साथ अनुचित शर्तें नहीं हैं, तो परित्याग को समाप्त किया जा सकता है।
  • परित्याग के लिये उचित कारण:
    • दूसरे पति या पत्नी द्वारा क्रूरता या दुर्व्यवहार।
    • दूसरे पति या पत्नी द्वारा व्यभिचार या अनैतिक आचरण।
    • बिना किसी औचित्य के साथ रहने या वैवाहिक दायित्वों को निभाने से मना करना।
    • बिना किसी वैध कारण के कामकाजी पति या पत्नी से नौकरी से त्याग-पत्र माँगना।

परित्याग के द्वारा विवाह-विच्छेद से संबंधित महत्त्वपूर्ण मामले क्या हैं?

  • सावित्री पांडे बनाम प्रेम चंद्र पांडे (2002):
    • इस मामले में, उच्चतम न्यायालय ने HMA के अंतर्गत विवाह-विच्छेद के लिये 'परित्याग' का अर्थ स्पष्ट किया।
    • न्यायालय ने कहा कि HMA के अंतर्गत विवाह-विच्छेद करने के उद्देश्य से परित्याग का अर्थ है, एक पति या पत्नी द्वारा दूसरे की सहमति के बिना एवं बिना किसी उचित कारण के पूर्ण ज्ञान में स्थायी रूप से परित्याग।
    • परित्याग अपने आप में एक पूर्ण कार्य नहीं है, यह आचरण का एक सतत् क्रम है, जिसे प्रत्येक मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों के अनुसार निर्धारित किया जाना चाहिये।
  • शिवशंकरन बनाम संथिमीनल (2022):
    • इस मामले में, उच्चतम न्यायालय कोर्ट ने विवाह भंग के परिणामों एवं महिलाओं द्वारा महसूस किये जाने वाले विनाशकारी प्रभावों पर चर्चा की।
    • न्यायालय ने कहा कि विवाह दो व्यक्तियों के मध्य एक साधारण सा मिलन से कहीं अधिक है। एक बार जब यह सौहार्दपूर्ण संबंध टूट जाता है, तो परिणाम बेहद विनाशकारी एवं कलंकपूर्ण हो सकते हैं।
    • इस तरह के विघटन का प्राथमिक प्रभाव विशेष रूप से महिलाओं द्वारा महसूस किया जाता है, जिन्हें सामाजिक समायोजन एवं समर्थन की उसी डिग्री की गारंटी प्राप्त करना मुश्किल हो सकता है, जो उन्हें विवाहित होने के दौरान प्राप्त थी।