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पश्चातवर्ती चरण में दस्तावेज़ी साक्ष्य की स्वीकार्यता

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 17-Jul-2024

बुधुवा उराँव बनाम घूरा उराँव

“न्यायालय विलंब के लिये पर्याप्त कारण बताए जाने पर आवश्यक दस्तावेज़ी साक्ष्य को विलंब से प्रस्तुत करने की अनुमति दे सकती हैं।”

न्यायमूर्ति सुभाष चंद

स्रोत: झारखंड उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

झारखंड उच्च न्यायालय ने बुधुवा उराँव बनाम घुरा उराँव के मामले में अधीनस्थ न्यायालय के निर्णय को पलट दिया, जिसमें लिखित बयानों के प्रारंभिक दाखिल होने के बाद दस्तावेज़ी साक्ष्य प्रस्तुत करने की अनुमति दी गई थी। यह निर्णय स्पष्ट करता है कि यदि न्यायपूर्ण निर्णय के लिये यह महत्त्वपूर्ण है तथा विलंब उचित है तो न्यायालयों के पास विलंबित साक्ष्य को स्वीकार करने का विवेकाधिकार है।

  • उच्च न्यायालय का निर्णय सिविल प्रक्रिया की लचीली व्याख्या का पक्षधर है, जो प्रक्रियागत समयसीमा के बावजूद महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ी साक्ष्य को विलंब से प्रस्तुत करने की अनुमति देता है।

बुधुवा उराँव बनाम घुरा उराँव की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • घुरा उराँव ने बुधवा उराँव तथा अन्य के विरुद्ध वाद संस्थित किया, जिसमें कुछ विलेखों एवं म्यूटेशन आदेशों को रद्द करने की मांग की गई।
  • बुधवा उराँव (प्रतिवादी) ने एक लिखित बयान दायर किया, लेकिन बाद में वादी के साक्ष्य चरण के दौरान अतिरिक्त दस्तावेज़ प्रस्तुत करने की मांग की।
  • 21 सितंबर 2016 को सिविल जज (जूनियर डिवीज़न)-I, गुमला ने इन अतिरिक्त दस्तावेज़ी को प्रस्तुत करने के प्रतिवादी के आवेदन को खारिज कर दिया।
  • बुधवा उराँव ने इस आदेश को चुनौती देते हुए झारखंड उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • ट्रायल कोर्ट ने प्रतिवादी के आवेदन को केवल इसलिये खारिज करके गलती की क्योंकि पहले दस्तावेज़ प्रस्तुत न करने का कोई कारण नहीं बताया गया था।
  • दस्तावेज़ी साक्ष्य को बाद में स्वीकार किया जा सकता है यदि:
    • इसे पहले प्रस्तुत करने के प्रयास में उचित सावधानी बरती गई थी।
    • ये दस्तावेज़ पक्षों के मध्य मुद्दों पर निर्णय लेने के लिये आवश्यक हैं।
  • यह छूट सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश XVIII नियम 17A के विलोपन के बाद भी जारी रहती है।
  • निष्पक्षता बनाए रखने के लिये, यदि नए दस्तावेज़ स्वीकार किये जाते हैं, तो वादी को खंडन हेतु साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर दिया जाना चाहिये।
  • न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि प्रक्रियात्मक नियमों को उन मामलों के न्यायोचित समाधान में बाधा नहीं डालनी चाहिये, जब पक्षों के पास दस्तावेज़ प्रस्तुत करने में विलंब के लिये वैध कारण हों।

दस्तावेज़ी साक्ष्य क्या है?

  • परिभाषा:
    • दस्तावेज़ शब्द को भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA) की धारा 2(d) के अधीन परिभाषित किया गया है।
      • किसी पदार्थ पर अक्षरों, अंकों या चिह्नों या किसी अन्य माध्यम से या उनमें से एक से अधिक माध्यमों से व्यक्त या वर्णित या अन्यथा दर्ज किया गया कोई मामला, जिसका उपयोग उस मामले को रिकॉर्ड करने के उद्देश्य से किया जाना है या किया जा सकता है तथा इसमें इलेक्ट्रॉनिक एवं डिजिटल रिकॉर्ड शामिल हैं।
    • BSA अध्याय 5 के अंतर्गत अधिनियम की धारा 56 से 73 तक दस्तावेज़ी साक्ष्य से संबंधित है।
  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के अंतर्गत स्थिति:
    • भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 (IEA) के अधीन, दस्तावेज़ में लेख, मानचित्र एवं कार्टून शामिल हैं। BSA ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को भी दस्तावेज़ माना जाएगा।
  • प्रकार:
    • दस्तावेज़ी साक्ष्य में प्राथमिक एवं द्वितीयक साक्ष्य निहित हैं।
      • प्राथमिक साक्ष्य में मूल दस्तावेज़ एवं उसके हिस्से, जैसे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड व वीडियो रिकॉर्डिंग शामिल हैं।
      • द्वितीयक साक्ष्य में वे दस्तावेज़ एवं मौखिक विवरण शामिल हैं जो मूल दस्तावेज़ की सामग्री को सिद्ध कर सकते हैं।
        • BSA द्वितीयक साक्ष्य का विस्तार करते हुए इसमें निम्नलिखित को शामिल करता है: (i) मौखिक एवं लिखित संस्वीकृति, तथा (ii) उस व्यक्ति की गवाही जिसने दस्तावेज़ की जाँच की है और जो दस्तावेज़ों की जाँच करने में कुशल है।
  • सिद्धांत:
    • यह सिद्धांत वॉक्स ऑडिटा पेरिट, लिट्रेरा स्क्रिप्टा मैनेट के सिद्धांत से आता है जिसका अर्थ है कि बोले गए शब्द गायब हो जाते हैं जबकि केवल लिखित शब्द ही रहते हैं।
    • इसका मतलब यह है कि जब न्यायालय के सामने साक्ष्य होते हैं, तो एक मौखिक साक्ष्य होता है, तथा दूसरा दस्तावेज़ी साक्ष्य होता है, दस्तावेज़ी साक्ष्य को सर्वोच्चता दी जाएगी।
  • साक्ष्य के रूप में इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड की स्वीकार्यता:
    • दस्तावेज़ी साक्ष्य में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड में मौजूद जानकारी शामिल होती है जिसे कंप्यूटर द्वारा उत्पादित ऑप्टिकल या चुंबकीय मीडिया में मुद्रित या संग्रहीत किया गया हो।
    • ऐसी जानकारी को कंप्यूटर के संयोजन या विभिन्न कंप्यूटरों द्वारा संग्रहीत या संसाधित किया जा सकता है।
  • दस्तावेज़ी साक्ष्य को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है (BSA के अनुसार):
    • विभिन्न मामलों में दस्तावेज़ी साक्ष्य सिद्ध करने से संबंधित सामान्य नियमों को धारा 56 से 73 के अंतर्गत प्रावधानित है।
    • दूसरा सार्वजनिक दस्तावेज़ है, जिसे धारा 74 से 77 के अंतर्गत प्रावधानित है तथा
    • अंत में, धारा 78 से 93 है जो दस्तावेज़ी के संबंध में अनुमानों से संबंधित है।

महत्त्वपूर्ण विधिक प्रावधान क्या हैं?

  • धारा 57 प्राथमिक साक्ष्य से संबंधित है।
    • इसमें कहा गया है कि प्राथमिक साक्ष्य का अर्थ है न्यायालय के निरीक्षण के लिये प्रस्तुत किया गया दस्तावेज़।
      • स्पष्टीकरण 1. - जहाँ कोई दस्तावेज़ कई भागों में निष्पादित किया जाता है, वहाँ प्रत्येक भाग दस्तावेज़ का प्राथमिक साक्ष्य होता है।
      • स्पष्टीकरण 2. - जहाँ कोई दस्तावेज़ प्रतिरूप में निष्पादित किया जाता है, तथा प्रत्येक प्रतिरूप केवल एक या कुछ पक्षकारों द्वारा निष्पादित किया जाता है, वहाँ प्रत्येक प्रतिरूप उसे निष्पादित करने वाले पक्षकारों के विरुद्ध प्राथमिक साक्ष्य होता है।
      • स्पष्टीकरण 3. - जहाँ बहुत से दस्तावेज़ एक ही समान प्रक्रिया द्वारा बनाए गए हैं, जैसे मुद्रण, लिथोग्राफी या फोटोग्राफी के मामले में, वहाँ प्रत्येक दस्तावेज़ बाकी दस्तावेज़ की अंतर्वस्तु का प्राथमिक साक्ष्य है; लेकिन, जहाँ वे सभी एक ही मूल दस्तावेज़ की प्रतिलिपियाँ हैं, वहाँ वे मूल दस्तावेज़ की अंतर्वस्तु का प्राथमिक साक्ष्य नहीं हैं। स्वीकृत तथ्यों को सिद्ध करना आवश्यक नहीं है। मौखिक साक्ष्य द्वारा तथ्यों का प्रमाण। मौखिक साक्ष्य प्रत्यक्ष होना चाहिये। दस्तावेज़ों की अंतर्वस्तु का प्रमाण। प्राथमिक साक्ष्य।
      • स्पष्टीकरण 4. जहाँ कोई इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड बनाया या संग्रहीत किया जाता है, और ऐसा भंडारण एक साथ या क्रमिक रूप से कई फाइलों में होता है, ऐसी प्रत्येक फाइल प्राथमिक साक्ष्य है।
      • स्पष्टीकरण 5. जहाँ कोई इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड उचित अभिरक्षा से प्रस्तुत किया जाता है, ऐसा इलेक्ट्रॉनिक एवं डिजिटल रिकॉर्ड प्राथमिक साक्ष्य है, जब तक कि वह विवादित न हो।
      • स्पष्टीकरण 6. जहाँ एक वीडियो रिकॉर्डिंग को एक साथ इलेक्ट्रॉनिक रूप में संग्रहीत किया जाता है तथा दूसरे को प्रेषित या प्रसारित या स्थानांतरित किया जाता है, संग्रहीत रिकॉर्डिंग में से प्रत्येक प्राथमिक साक्ष्य है।
      • स्पष्टीकरण 7. जहाँ एक इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड कंप्यूटर संसाधन में कई भंडारण स्थानों में संग्रहीत किया जाता है, अस्थायी फ़ाइलों सहित प्रत्येक ऐसा स्वचालित भंडारण प्राथमिक साक्ष्य है।
  • धारा 58 द्वितीयक साक्ष्य से संबंधित है।
    • इसमें निहित है: -
      (i) इसमें आगे दिये गए प्रावधानों के अंतर्गत दी गई प्रामाणित प्रतियाँ;
      (ii) मूल से यांत्रिक प्रक्रियाओं द्वारा बनाई गई प्रतियाँ जो स्वयं प्रतिलिपि की सटीकता सुनिश्चित करती हैं, तथा ऐसी प्रतियों के साथ तुलना की गई प्रतियाँ ;
      (iii) मूल से बनाई गई या उससे तुलना की गई प्रतियाँ;
      (iv) दस्तावेज़ों के प्रतिरूप, उन पक्षकारों के विरुद्ध जिन्होंने उन्हें निष्पादित नहीं किया;
      (v) किसी दस्तावेज़ की विषय-वस्तु का मौखिक विवरण, किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा दिया गया जिसने उसे स्वयं देखा हो;
      (vi) मौखिक संस्वीकृति;
      (vii) लिखित संस्वीकृति;
      (viii) ऐसे व्यक्ति का साक्ष्य जिसने किसी दस्तावेज़ की जाँच की है, जिसके मूल में अनेक विवरण या अन्य दस्तावेज़ हैं, जिनकी जाँच न्यायालय में सुविधाजनक रूप से नहीं की जा सकती है, तथा जो ऐसे दस्तावेज़ों की जाँच करने में कुशल है।
  • BSA की धारा 65 से 73 प्रामाणित किये जाने वाले दस्तावेज़ों से संबंधित है। इससे तात्पर्य यह है कि जब भी आप न्यायालय जाते हैं तो आपको अपने द्वारा प्रस्तुत किये गए दस्तावेज़ की वास्तविक प्रकृति को भी सिद्ध करना होता है। इसलिये न्यायालय में दस्तावेज़ को प्रस्तुत करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसे सिद्ध भी किया जाना चाहिये।
  • धारा 65 उस व्यक्ति के हस्ताक्षर एवं हस्तलेख के प्रमाण से संबंधित है, जिसने कथित तौर पर दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर या लिखित हस्ताक्षर किये हैं।
  • धारा 66 इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर के प्रमाण से संबंधित है। धारा 67 विधि द्वारा सत्यापित किये जाने के लिये आवश्यक दस्तावेज़ के निष्पादन के प्रमाण से संबंधित है।
  • धारा 68 ऐसे प्रमाण से संबंधित है जहाँ कोई सत्यापन करने वाला साक्षी नहीं मिला हो।
  • धारा 69 सत्यापित दस्तावेज़ के पक्षकार द्वारा निष्पादन की स्वीकृति से संबंधित है।
  • धारा 70 उस समय प्रमाण से संबंधित है जब सत्यापन करने वाला साक्षी निष्पादन से मना करता है।
  • धारा 71 उन दस्तावेज़ों के प्रमाण से संबंधित है जिन्हें सत्यापित करने की विधि द्वारा आवश्यकता नहीं है।
  • धारा 72 हस्ताक्षर, लेखन या मुहर की तुलना अन्य स्वीकृत या प्रामाणित दस्तावेज़ों से करने से संबंधित है।
  • धारा 73 डिजिटल हस्ताक्षर के सत्यापन के प्रमाण से संबंधित है।