Drishti IAS द्वारा संचालित Drishti Judiciary में आपका स्वागत है










होम / करेंट अफेयर्स

सांविधानिक विधि

EVM निर्णय

    «    »
 29-Apr-2024

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम भारत निर्वाचन आयोग एवं अन्य

“केवल इस संदेह के आधार पर कि EVM के माध्यम से डाले गए वोटों एवं VVPAT द्वारा डाले गए वोटों की संख्या में अंतर हो सकता है, जिससे 100% VVPAT पर्चियों के सत्यापन की मांग को बढ़ावा मिल सकता है, वर्तमान रिट याचिकाओं के संदर्भ में सुनवाई योग्य मानने हेतु पर्याप्त आधार नहीं है।”

न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम भारत निर्वाचन आयोग एवं अन्य के मामले में यह माना कि “केवल इस संदेह के आधार पर कि EVM के माध्यम से डाले गए वोटों एवं VVPAT द्वारा डाले गए वोटों की संख्या में अंतर हो सकता है, जिससे 100% VVPAT पर्चियों के सत्यापन की मांग को बढ़ावा मिल सकता है, वर्तमान रिट याचिकाओं के संदर्भ में सुनवाई योग्य मानने हेतु पर्याप्त आधार नहीं है”।

माया गोपीनाथन बनाम अनूप S.B. मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • यह मामला भारत के चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVMs) के उपयोग को चुनौती देने वाली याचिकाओं से संबंधित है।
  • याचिकाकर्त्ताओं ने भारत निर्वाचन आयोग (ECI) की ओर से किसी आशय या दुर्भावना का आरोप नहीं लगाया है, या यह दावा नहीं किया है कि किसी उम्मीदवार या दल के पक्ष में EVM में धांधली की गई है।
    • हालाँकि उन्होंने तर्क दिया कि EVM में हेरफेर की संभावना के कारण मतदाताओं में संदेह होने के साथ विश्वास की कमी होती है।
  • याचिकाकर्त्ताओं ने वैकल्पिक रूप से तर्क दिया कि
    • कागज़ी मतपत्र प्रणाली की ओर लौटा जाए
    • मतदाताओं को वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) पर्ची के माध्यम से अपने वोट को सत्यापित करने तथा गिनती के लिये इसे मतपेटी में जमा करने की अनुमति देना, या
    • इलेक्ट्रॉनिक गिनती के अलावा VVPAT पर्चियों की भी 100% गिनती करना।
    • मतदाताओं को यह जानने का मौलिक अधिकार मिलना चाहिये कि उनका वोट सही ढंग से पंजीकृत हुआ है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ:

  • न्यायालय ने कहा कि वोटों की गलत गणना की किसी भी संभावना को रोकने के लिये तथा मतदाताओं को यह जानने की अनुमति देने के लिये कि उनके वोट को रिकॉर्ड किया गया है, EVM और VVPAT के रूप में जाँच तथा संतुलन की एक कड़ी प्रणाली है। यह प्रणाली पहले की पेपर बैलेट प्रणाली की तुलना में अधिक संतोषजनक है।
  • न्यायालय ने कहा कि केवल संदेह पर आधारित रिट याचिकाओं पर विचार नहीं किया जाना चाहिये। किसी रिट याचिका पर सुनवाई के लिये विश्वसनीय साक्ष्य होना चाहिये।
  • रेस ज्यूडिकाटा का सिद्धांत रिट याचिकाओं पर भी लागू होता है। जब तक पहले से उठाए गए पर्याप्त नए आधार प्रस्तुत नहीं किये जाते, तब तक न्यायालय किसी याचिका को प्रारंभिक स्तर पर ही खारिज कर सकती है, यदि मुद्दे पर पहले ही निर्णय हो चुका है।
  • EVM की प्रभावकारिता पर संदेह के विशिष्ट मुद्दे पर, न्यायालय ने कहा कि इस मामले को पहले भी उठाया गया है और अब इसे निश्चित रूप से समाप्त करने की आवश्यकता है। कागज़ी मतपत्रों की ओर लौटने जैसे प्रतिगामी कदम तब तक नहीं अपनाए जा सकते जब तक कि EVM के विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य पेश नहीं किये जाते।
  • न्यायालय ने संतुलित परिप्रेक्ष्य बनाए रखने, प्रणाली के किसी भी हिस्से पर आँख मूंदकर अविश्वास करने से बचने के साथ प्रणाली की विश्वसनीयता सुनिश्चित करते हुए सार्थक सुधार की अनुमति देने के क्रम में साक्ष्य एवं कारणों द्वारा निर्देशित एक महत्त्वपूर्ण लेकिन रचनात्मक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया।

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से संबंधित विधि:

  • EVM का इतिहास:
    • इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM ) का विचार पहली बार वर्ष 1977 में आया था तथा वर्ष 1979 में इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL) द्वारा इसका एक प्रोटोटाइप विकसित किया गया था।
    • राजनीतिक सहमति के बाद, वर्ष 1982 में केरल चुनाव में पायलट आधार पर EVM का प्रयोग किया गया था।
    • हालाँकि इसे ए.सी. जोस बनाम सिवन पिल्लई (1984) के मामले में चुनौती दी गई थी तथा उच्चतम न्यायालय ने निर्णय सुनाया था कि निर्वाचन आयोग विधियों से परे नहीं जा सकता है और विधिक प्रावधानों के बिना EVM का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
  • EVM उपयोग के लिये विधायी संशोधन:
    • उच्चतम न्यायालय के वर्ष 1984 के फैसले के बाद, सरकार ने EVM के उपयोग के लिये विधिक मंज़ूरी प्रदान करने हेतु धारा 61A जोड़कर वर्ष 1989 में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन किया।
    • इस संशोधन की संवैधानिक वैधता को अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम बनाम मुख्य चुनाव आयुक्त (2001) मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यथावत रखा गया था।
  • EVMs एवं VVPATs से संबंधित विधिक प्रावधान:
    • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 एवं चुनाव संचालन नियम, 1961 में EVMs के उपयोग से संबंधित कई प्रावधान शामिल किये गए, जैसे EVMs की विफलता के कारण नए सिरे से मतदान, EVMs से जुड़े बूथ कैप्चरिंग जैसे अपराध, EVMs डिज़ाइन के नियम, मतदान और गिनती की प्रक्रिया आदि।
    • VVPATs को शुरू करने के लिये वर्ष 2013 में भी संशोधन किये गए थे।
  • देश भर में EVM को अपनाना:
    • वर्ष 1989 के विधिक संशोधनों के बाद, EVM का उपयोग धीरे-धीरे भारत भर में लगातार होने वाले चुनावों में अधिक व्यापक रूप से किया जाने लगा- वर्ष 1998-99 में कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में, वर्ष 2000 के बाद से विशिष्ट राज्य चुनावों में और अंततः वर्ष 2004 के लोकसभा चुनावों के लिये सभी निर्वाचन क्षेत्रों में EVM का उपयोग देश भर में किया गया।
  • EVMs का तकनीकी विकास:
    • समय के साथ EVMs में तकनीकी उन्नयन हुआ है- वर्ष 2006 से पहले M1 EVMs थे, वर्ष 2006-2010 के बीच M2 मॉडल तैयार किये गए थे और वर्ष 2013 से बाद का नवीनतम संस्करण M3है।

इस मामले से संबंधित महत्त्वपूर्ण निर्णय क्या थे?

  • सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत निर्वाचन आयोग (2013)
    • उच्चतम न्यायालय ने माना कि EVMs में सटीकता सुनिश्चित करने तथा मतदाताओं का विश्वास बहाल करने के लिये स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों हेतु "पेपर ट्रेल" (VVPATs) एक अनिवार्य आवश्यकता है।
    • 1 मिलियन मतदान केंद्रों के विनियमन की तार्किक चुनौतियों के कारण ECI को पूरे भारत में क्रमिक/चरणबद्ध तरीके से VVPAT शुरू करने की अनुमति दी गई थी।
  • एन. चंद्रबाबू नायडू एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य (2019):
    • संबंधित दिशा-निर्देशों के अनुसार प्रति निर्वाचन क्षेत्र में 1 EVM के VVPAT सत्यापन के बजाय, उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया कि प्रति निर्वाचन क्षेत्र में 5 EVM के VVPAT का सत्यापन किया जाना चाहिये।
    • इसका उद्देश्य मतदाताओं के बीच अधिक संतुष्टि के साथ चुनाव परिणामों की पूर्ण सटीकता सुनिश्चित करना था।