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सिविल कानून

आवश्यक धार्मिक आचरण

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 27-Jun-2024

ज़ैनब अब्दुल कय्यूम चौधरी एवं अन्य बनाम चेंबूर ट्रॉम्बे एजुकेशन सोसाइटी के एन. जी. आचार्य एवं डी. के. मराठे कॉलेज व अन्य।

“ड्रेस कोड जारी करने के पीछे उद्देश्य यह है कि किसी छात्र की पोशाक से उसका धर्म उजागर न हो, जो यह सुनिश्चित करने की दिशा में एक कदम है कि छात्र ज्ञान एवं शिक्षा प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करें जो उनके व्यापक हित में है”।

न्यायमूर्ति राजेश एस. पाटिल, न्यायमूर्ति ए. एस. चंदुरकर

स्रोत: बॉम्बे उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति राजेश एस. पाटिल एवं न्यायमूर्ति ए. एस. चंदुरकर की पीठ ने नौ छात्राओं द्वारा ड्रेस कोड के विरुद्ध दायर रिट याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्हें ड्रेस कोड का पालन करने की आवश्यकता थी, जिसके अंतर्गत उन्हें हिजाब या नकाब पहनने से रोका गया था।

  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने जैनब अब्दुल कय्यूम चौधरी एवं अन्य बनाम चेंबूर ट्रॉम्बे एजुकेशन सोसाइटी के एन. जी. आचार्य एवं डी. के. मराठे कॉलेज व अन्य के मामले में रिट याचिका खारिज कर दी।

ज़ैनब अब्दुल कय्यूम चौधरी एवं अन्य बनाम चेंबूर ट्रॉम्बे एजुकेशन सोसाइटी के एन. जी. आचार्य एवं डी. के. मराठे कॉलेज व अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • प्रथम प्रतिवादी- चेंबूर ट्रॉम्बे एजुकेशन सोसाइटी द्वारा संचालित कॉलेज में स्नातक पाठ्यक्रमों के लिये दूसरे एवं तीसरे वर्ष की शिक्षा प्राप्त कर रहे नौ छात्रों ने छात्रों को जारी किये गए निर्देशों को चुनौती दी है, जिसमें उन्हें निर्धारित ड्रेस कोड का पालन करने की आवश्यकता बताई गई है।
  • इसके अतिरिक्त, ड्रेस कोड का पालन करने के मामले में निर्देश जारी करने वाले 1 मई 2024 के व्हाट्सएप संदेश के द्वारा मिले नोटिस को भी चुनौती दी गई है।
  • याचिकाकर्त्ता ओं का आरोप है कि ड्रेस कोड का निर्धारण जिसके परिणामस्वरूप उन्हें हिजाब या नकाब पहनने से रोका गया है, मनमाना एवं भेदभावपूर्ण है तथा यह भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 19 (1) (a) एवं अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • न्यायालय ने कहा कि इसी प्रकार का एक मामला कर्नाटक उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया गया था (रेशम बनाम कर्नाटक राज्य) जहाँ न्यायालय ने कहा था कि निर्धारित ड्रेस कोड का उद्देश्य संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता की सेवा के लिये छात्रों को एक समरूप वर्ग के रूप में मानना ​​था।
    • बॉम्बे उच्च न्यायालय ने कर्नाटक उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ द्वारा दिये गए पूर्व निर्णय से सहमति व्यक्त की।
  • बॉम्बे उच्च न्यायालय ने कहा कि ड्रेस कोड का विनियमन, संस्थान में अनुशासन बनाए रखने की दिशा में एक प्रयास है तथा यह अधिकार COI के अनुच्छेद 19(1)(g) एवं अनुच्छेद 26 से प्राप्त होता है।
  • इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने कहा कि ड्रेस कोड निर्धारित करने के पीछे उद्देश्य यह है कि छात्र का धर्म उजागर न हो।
  • यह देखा गया कि कॉलेज के प्रशासन एवं प्रबंधन को अनुच्छेद 19(1)(g) के अंतर्गत शैक्षणिक संस्थान के प्रशासन करने का मौलिक अधिकार है तथा उस अधिकार के प्रयोग में व इस उद्देश्य से कि शिक्षा को गंभीरता से आगे बढ़ाया जा सके, निर्देश जारी किये गए हैं।
  • हिजाब को आवश्यक धार्मिक प्रथा का भाग मानने के मुद्दे पर, न्यायालय ने माना कि कंज़-उल-इमान एवं सुमान अबू दाऊद के अंग्रेज़ी अनुवाद के आधार पर यह कथन कि हिजाब एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है, याचिकाकर्त्ताओं के इस तर्क को कायम रखने के लिये कोई तथ्य सामग्री प्रस्तुत नहीं की है कि हिजाब व नकाब पहनना एक आवश्यक धार्मिक आचरण है।

धर्म की स्वतंत्रता क्या है?

  • धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से लेकर अनुच्छेद 28 के अंतर्गत आता है।
  • अनुच्छेद 25(1) में प्रावधान है कि सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता एवं स्वास्थ्य तथा इस भाग के अन्य प्रावधानों के अधीन रहते हुए, सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता तथा धर्म को स्वतंत्र रूप से मानने, आचरण करने एवं प्रचार करने का समान अधिकार है।
    • अनुच्छेद 25(2) में यह प्रावधान है कि इस अनुच्छेद का कोई प्रावधान किसी मौजूदा विधि के संचालन पर प्रभाव नहीं डालेगी या राज्य को कोई विधि निर्माण करने से नहीं रोकेगी—
      • किसी भी आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक या अन्य धर्मनिरपेक्ष गतिविधि को विनियमित या प्रतिबंधित करना जो धार्मिक आचरण से जुड़ी हो सकती है।
      • सामाजिक कल्याण एवं सुधार या हिंदुओं के सभी वर्गों एवं उपवर्गों के लिये सार्वजनिक चरित्र के हिंदू धार्मिक संस्थानों को खोलने के लिये प्रावधान करना।
      • स्पष्टीकरण I- कृपाण पहनना एवं ले जाना सिख धर्म के पालन में शामिल माना जाएगा।
      • स्पष्टीकरण II- खंड (2) के उप-खंड (b) में, हिंदुओं के संदर्भ को सिक्ख, जैन या बौद्ध धर्म को मानने वाले व्यक्तियों के संदर्भ में शामिल किया जाएगा तथा हिंदू धार्मिक संस्थानों के संदर्भ को तद्नुसार माना जाएगा।
  • अनुच्छेद 26 में प्रावधान है कि सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता एवं स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए, प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग को यह अधिकार होगा कि वह-
    • धार्मिक एवं धर्मार्थ उद्देश्यों के लिये संस्थाओं की स्थापना व रखरखाव करना,
    • धार्मिक मामलों में अपने स्वयं के मामलों का प्रबंधन करना,
    • चल एवं अचल संपत्ति का स्वामित्व व अधिग्रहण करना, और
    • ऐसी धरोहर की विधि के अनुसार प्रशासन करना।
  • अनुच्छेद 27 में प्रावधान है कि किसी भी व्यक्ति को कोई कर देने के लिये बाध्य नहीं किया जाएगा, जिसकी आय किसी विशेष धर्म या धार्मिक संप्रदाय के संवर्धन या रखरखाव के लिये व्यय के भुगतान हेतु विनियोजित की जाती है।
  • अनुच्छेद 28 कुछ शैक्षणिक संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक पूजा में उपस्थिति की स्वतंत्रता प्रदान करता है।
    • राज्य निधि से पूर्णतया संचालित किसी भी शैक्षणिक संस्थान में कोई धार्मिक शिक्षा प्रदान नहीं की जाएगी।
    • खंड (1) में कुछ भी ऐसी शैक्षणिक संस्था पर लागू नहीं होगा जो राज्य द्वारा प्रशासित है, लेकिन किसी ऐसे बंदोबस्ती या ट्रस्ट (न्यास) के अंतर्गत स्थापित की गई है, जिसके लिये यह आवश्यक है कि ऐसी संस्था में धार्मिक शिक्षा प्रदान की जाएगी।
    • राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त या राज्य निधि से सहायता प्राप्त करने वाली किसी शैक्षणिक संस्था में अध्ययनरत किसी व्यक्ति को ऐसी संस्था में दी जाने वाली किसी धार्मिक शिक्षा में भाग लेने या ऐसी संस्था में या उससे संलग्न किसी परिसर में आयोजित किसी धार्मिक पूजा में भाग लेने की आवश्यकता नहीं होगी, जब तक कि ऐसे व्यक्ति ने या यदि ऐसा व्यक्ति अवयस्क है तो उसके अभिभावक ने इसके लिये अपनी सहमति नहीं दे दी हो।

आवश्यक धार्मिक आचरण की अवधारणा क्या है?

  • आयुक्त, हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती, मद्रास बनाम श्री शिरुर मठ के लक्ष्मीन्द्र तीर्थ स्वामी (1954)
    • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि किसी धर्म का अनिवार्य भाग क्या है, यह मुख्य रूप से उस धर्म के सिद्धांतों के संदर्भ में ही पता लगाया जाना चाहिये।
    • यदि हिंदुओं के किसी धार्मिक संप्रदाय के सिद्धांत निर्धारित करते हैं:
      • दिन के विशेष समय पर मूर्ति को भोजन का प्रसाद चढ़ाया जाना चाहिये।
      • वर्ष के कुछ निश्चित समय पर निश्चित तरीके से आवधिक समारोह किये जाने चाहिये।
      • पवित्र ग्रंथों का दैनिक पाठ होना चाहिये या पवित्र अग्नि में आहुति देनी चाहिये।
      • ये सभी धर्म के अंग माने जाएंगे।
  • पुलिस आयुक्त एवं अन्य बनाम आचार्य जे. अवधूत (2004)
    • इस मामले में न्यायालय ने यह कसौटी निर्धारित की कि आवश्यक धार्मिक आचरण क्या होगा।
    • न्यायालय ने कहा कि धर्म का आवश्यक भाग” उस मूल आस्था से संबंधित है जिन पर धर्म आधारित है। आवश्यक आचरण का अर्थ है वह आचरण, जो धार्मिक आस्था का पालन करने के लिये मौलिक है।
      • धर्म की संरचना आवश्यक भागों या प्रथाओं की आधारशिला पर ही निर्मित होती है। जिसके बिना धर्म कोई धर्म नहीं रह जाता।
      • यह निर्धारित करने के लिये कि धर्म के लिये कोई रीति या प्रथा आवश्यक है या नहीं, यह पता लगाना होता है कि उस रीति या प्रथा के बिना धर्म की प्रकृति बदल जाएगी या नहीं।
      • यदि उस रीति या प्रथा को हटाने से उस धर्म के चरित्र या उसके विश्वास में कोई मौलिक परिवर्तन हो सकता है, तो ऐसे भाग को आवश्यक या अभिन्न अंग माना जा सकता है।
      • ऐसे भाग में कुछ जोड़ा या घटाया नहीं जा सकता।
      • क्योंकि यह उस धर्म का सार है तथा इसमें बदलाव से इसका मूल चरित्र बदल जाएगा। यह ऐसा स्थायी आवश्यक भाग है जिसे संविधान द्वारा संरक्षित किया गया है।

हिजाब प्रतिबंध पर अब तक क्या प्रगति हुई है?

  • रेशम बनाम कर्नाटक राज्य (2022)
    • 15 मार्च को कर्नाटक उच्च न्यायालय की 3 न्यायाधीशों की पीठ ने राज्य के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को यथावत् रखा।
    • न्यायालय ने माना कि हिजाब पहनना ‘आवश्यक धार्मिक प्रथा’ नहीं है।
    • इसके अतिरिक्त, यह माना गया कि प्रतिबंध भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं करेगा क्योंकि यह सार्वजनिक स्थानों पर अनुशासन बनाए रखने के लिये एक उचित प्रतिबंध है।
  • ऐशत शिफा बनाम कर्नाटक राज्य एवं अन्य (2022)
    • न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता एवं न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने इस मुद्दे पर विभाजित निर्णय दिया।
    • न्यायमूर्ति धूलिया ने प्रतिबंध को असंवैधानिक करार दिया, जबकि न्यायमूर्ति गुप्ता ने प्रतिबंध को यथावत् बनाए रखा।
    • इस मामले पर उच्चतम न्यायालय की बड़ी पीठ द्वारा निर्णय लिया जाना है।