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दंड विधि

आपराधिक षड्यंत्र के आवश्यक घटक

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 13-Nov-2023

सजीव बनाम केरल राज्य

"यदि समझौते के अनुसरण में, षड्यंत्रकर्त्ता व्यक्तिगत रूप से अपराध करते हैं, तो वे सभी ऐसे अपराधों के लिये उत्तरदायी होंगे"।

न्यायमूर्ति संजय करोल और अभय एस ओका

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने सजीव बनाम केरल राज्य के मामले में आपराधिक षड्यंत्र का मामला साबित करने के लिये आवश्यक घटक निर्धारित किये हैं।

सजीव बनाम केरल राज्य मामले की पृष्ठभूमि

  • 04 अप्रैल 2003 को, A1, A3, A10 और A11 ने मिथाइल एल्कोहॉल को स्प्रिट के साथ मिलाकर A1 द्वारा संचालित आउटलेट के माध्यम से गैरकानूनी लाभ के लिये बेचने की साजिश रची।
  • इस षड्यंत्र को आगे बढ़ाते हुए, A10 और A11 ने A10 के स्वामित्व वाली मारुति कार में बायोसोल लेबल वाले मिथाइल एल्कोहॉल वाले 21 डिब्बे A1 और A3 के निवास पर लाए।
  • इसके बाद, A2, A7, और A8 ने A2 के स्वामित्व वाली एम्बेसडर कार में A1 और A3 के निवास में स्पिरिट लायी गयी। A10 और A11 द्वारा भेजी गई मिथाइल एल्कोहॉल को A1 और A3 द्वारा इस स्पिरिट के साथ मिलाया गया और A1 के आउटलेट के माध्यम से बेचा गया। इस बिक्री में A4, A5, A6, A9 और A12 ने A1 की सहायता की।
  • इस षड्यंत्र के परिणामस्वरूप A4 और A12 सहित 7 निर्दोष लोगों की मौत हो गई, 11 लोग अंधे हो गये और 40 से अधिक लोग घायल हो गये।
  • ट्रायल कोर्ट ने आरोपी व्यक्तियों को भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 302, धारा 307, धारा 326 और धारा 120b के तहत दोषी ठहराया।
  • इसके बाद, केरल उच्च न्यायालय ने इन आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ ट्रायल कोर्ट के फैसले की पुष्टि की।
  • इसलिये, उच्चतम न्यायालय के समक्ष एक अपील दायर की गई।
  • उच्चतम न्यायालय ने केरल उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा।

  न्यायालय की टिप्पणियाँ

  • न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति अभय एस ओका की पीठ ने कहा कि जहाँ समझौते के अनुसरण में, षड्यंत्रकर्त्ता व्यक्तिगत रूप से अपराध करते हैं, वे सभी ऐसे अपराधों के लिये उत्तरदायी होंगे, भले ही उनमें से कुछ ने अपराध में सक्रिय रूप से भाग नहीं लिया हो।
  • न्यायालय ने पुलिस अधीक्षक बनाम नलिनी और अन्य के माध्यम से राज्य के ऐतिहासिक मामले (वर्ष 1999) का उल्लेख किया, जिसमें उच्चतम न्यायालय ने आपराधिक षड्यंत्र रचने की सामग्री का सारांश दिया जो इस प्रकार है:
    • षड्यंत्र तब होता है जब दो या दो से अधिक व्यक्ति किसी अवैध कार्य या विधिक कार्य को अवैध तरीकों से करने या करवाने के लिये सहमत होते हैं।
    • आपराधिक षड्यंत्र का अपराध सामान्य विधि का अपवाद है, जहाँ केवल इरादा ही अपराध नहीं बनता है। इसका उद्देश्य अपराध करना और समान इरादे वाले व्यक्तियों का साथ देना है।
    • षड्यंत्र अकेले में या गुप्त रूप से रचा जाता है। प्रत्यक्ष साक्ष्य द्वारा किसी षड्यंत्र को स्थापित करना शायद ही कभी संभव होता है। आमतौर पर, साजिश और उसके उद्देश्यों के अस्तित्व का अनुमान परिस्थितियों और अभियुक्त के आचरण से लगाया जाना चाहिये।
    • जहाँ समझौते के अनुसरण में, षड्यंत्रकर्त्ता व्यक्तिगत रूप से अपराध करते हैं या विधिक कार्य करने के लिये अवैध तरीके अपनाते हैं, जिसका षड्यंत्र के उद्देश्य से संबंध होता है, वे सभी ऐसे अपराधों के लिये उत्तरदायी होंगे, भले ही उनमें से कुछ लोगों ने उन अपराधों को अंजाम देने में सक्रिय रूप से भाग न लिया हो।

आपराधिक षड्यंत्र

परिचय:

  • धारा 120A आपराधिक षड्यंत्र को परिभाषित करती है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 120क के अनुसार, जब कि दो या अधिक व्यक्ति-

(1) कोई अवैध कार्य, अथवा

(2) कोई ऐसा कार्य, जो अवैध नहीं है, अवैध साधनों द्वारा, करने या करवाने को सहमत होते हैं, तब ऐसी सहमति आपराधिक षड्यंत्र कहलाती है :

  • परंतु किसी अपराध को करने की सहमति के सिवाय कोई सहमति आपराधिक षड्यंत्र तब तक न होगी, जब तक कि सहमति के अलावा कोई कार्य उसके अनुसरण में उस सहमति के एक या अधिक पक्षकारों द्वारा नहीं कर दिया जाता।
  • स्पष्टीकरण-यह तत्वहीन है कि अवैध कार्य ऐसी सहमति का चरम उद्देश्य है या उस उद्देश्य का आनुषंगिक मात्र है ।

धारा 120b आपराधिक षड्यंत्र के दंड से संबंधित है। यह कहती है कि-

भारतीय दंड संहिता की धारा 120b के अनुसार,

1. जो कोई मॄत्यु, आजीवन कारावास या दो वर्ष या उससे अधिक अवधि के कठिन कारावास से दंडनीय अपराध करने के आपराधिक षड्यंत्र में शरीक होगा, यदि ऐसे षड्यंत्र के दंड के लिये इस संहिता में कोई अभिव्यक्त उपबंध नहीं है, तो वह उसी प्रकार दंडित किया जायेगा, मानो उसने ऐसे अपराध का दुष्प्रेरण किया था।

2. जो कोई पूर्वोक्त रूप से दंडनीय अपराध को करने के आपराधिक षड्यंत्र से भिन्न किसी आपराधिक षड्यंत्र में शरीक होगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से अधिक की नहीं होगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जायेगा।

निर्णयज विधि:

याकूब अब्दुल रजाक मेमन बनाम महाराष्ट्र राज्य (वर्ष 2013) में, उच्चतम न्यायालय ने दोहराया कि षड्यंत्र स्थापित करने के लिये, पार्टियों के बीच एक समझौता स्थापित करना आवश्यक है।

मोहम्मद नौशाद बनाम एनसीटी दिल्ली राज्य (वर्ष 2023) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि आपराधिक षड्यंत्र का अपराध संयुक्त उत्तरदायित्व का है, सभी षड्यंत्रकर्त्ता उन प्रत्येक अपराध के लिये उत्तरदायी हैं जो षड्यंत्र के परिणामस्वरूप किए गये हैं।