Drishti IAS द्वारा संचालित Drishti Judiciary में आपका स्वागत है










होम / करेंट अफेयर्स

आपराधिक कानून

पॉक्सो के तहत अभिचालन के रूप में साधारण स्पर्श को शामिल न करना

    «    »
 07-Nov-2023

फोटो कंटेंट:

शांतनु बनाम राज्य

"पॉक्सो अधिनियम की धारा 3 (c) के तहत स्पर्श के एक साधारण कृत्य को अभिचालन नहीं माना जा सकता है।"

जस्टिस अमित बंसल

 स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, शांतनु बनाम राज्य के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना कि लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) की धारा 3 (C) के प्रावधानों के तहत प्रवेशन यौन हमले के अपराध के लिये, एक साधारण स्पर्श का कृत्य अभिचालन नहीं माना जा सकता।

शांतनु बनाम राज्य मामले की पृष्ठभूमि:

  • 5 अगस्त 2016 को, जब छह वर्षीय पीड़िता ट्यूशन के लिये गई थी, अपीलकर्त्ता, जो उसके ट्यूशन शिक्षक का भाई है, ने अपनी उंगली से उसके गुदा को छुआ, और इससे उसे गंभीर दर्द हुआ। पीड़िता ने अपनी माँ को ट्यूशन में हुई घटना और उससे होने वाले दर्द के बारे में बताया।
  • अपीलकर्त्ता को भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 376 और पॉक्सो की धारा 6 के तहत दंडनीय अपराधों के लिये ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराया गया था।
  • इसके बाद, दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष एक अपील दायर की गई।
  • अपील आंशिक रूप से स्वीकार की गई थी, और आक्षेपित निर्णय को इस हद तक संशोधित किया गया है कि अपीलकर्त्ता को पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 के बजाय पॉक्सो अधिनियम की धारा 10 के तहत दोषी ठहराया जाता है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ:

  • न्यायमूर्ति अमित बंसल ने कहा कि स्पर्श के एक साधारण कृत्य को पॉक्सो अधिनियम की धारा 3 (c) के तहत अभिचालन नहीं माना जा सकता है। यह ध्यान रखना प्रासंगिक है कि पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 के तहत, स्पर्श एक अलग अपराध है।
  • न्यायालय ने यह भी कहा कि पॉक्सो अधिनियम की धारा 3 (C) से पता चलता है कि किसी कृत्य को प्रवेशन यौन हमला मानने के लिये, आरोपी को बच्चे (चाहे लड़का हो या लड़की) के शरीर के किसी भी हिस्से में अभिचालन करना होगा ताकि प्रवेश हो सके। वर्तमान मामले में ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह दर्शाता हो कि पीड़िता के शरीर के किसी भी हिस्से पर कोई अभिचालन किया गया था ताकि प्रवेश कराया जा सके।

इसमें शामिल प्रासंगिक कानूनी प्रावधान:

पॉक्सो अधिनियम की धारा 3(C):

  •  इस धारा में कहा गया है कि एक व्यक्ति को प्रवेशन यौन संबंध बनाने वाला माना जाता है यदि वह बच्चे (चाहे लड़का हो या लड़की) के शरीर के किसी भाग के साथ ऐसा अभिचालन करता है जिससे वह बच्चे (चाहे लड़का हो या लड़की) की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा या शरीर के किसी भाग में प्रवेश कर सके या बच्चे (चाहे लड़का हो या लड़की) से उसके साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करवाता है; या

 पॉक्सो अधिनियम की धारा 7:

  • इस अधिनियम की धारा 7 कहती है कि जो कोई, लैंगिक आशय से बच्चे (चाहे लड़का हो या लड़की) की योनि, लिंग, गुदा या स्तनों को स्पर्श करता है या बच्चे (चाहे लड़का हो या लड़की) से ऐसे व्यक्ति या किसी अन्य व्यक्ति की योनि, लिंग, गुदा या स्तन का स्पर्श कराता है या लैंगिक आशय से ऐसा कोई अन्य कार्य करता है जिसमें प्रवेशन किये बिना शारीरिक संपर्क अंतर्ग्रस्त होता है, लैंगिक हमला करता है, यह कहा जाता है।

पॉक्सो अधिनियम की धारा 6:

इस अधिनियम की धारा 6 गंभीर प्रवेशन यौन हमले के लिये सज़ा से संबंधित है। यह कहती है कि-

(1) जो कोई गंभीर प्रवेशन यौन हमला करता है, उसे कठोर कारावास से दंडित किया जायेगा, जिसकी अवधि बीस वर्ष से कम नहीं होगी, लेकिन जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है, जिसका अर्थ उस व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवन के लिये कारावास होगा और जुर्माना या मौत की सज़ा भी हो सकती है।

(2) उप-धारा (1) के तहत लगाया गया जुर्माना न्यायसंगत और उचित होगा और पीड़ित को ऐसे पीड़ित के चिकित्सा खर्च और पुनर्वास को पूरा करने के लिये भुगतान किया जायेगा।

  • इस अधिनियम की धारा 6 गंभीर प्रवेशन यौन हमले को परिभाषित करती है।

पॉक्सो अधिनियम की धारा 10:

  • धारा 10 गंभीर लैंगिक हमले के लिये सज़ा से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि जो कोई भी गंभीर लैंगिक हमला करेगा, उसे किसी भी अवधि के लिये कारावास की सज़ा दी जायेगी, जो पाँच साल से कम नहीं होगी, लेकिन जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है, और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
  • इस अधिनियम की धारा 9 गंभीर लैंगिक हमले को परिभाषित करती है।