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वाणिज्यिक विधि

मध्यस्थ अधिकरण का अधिदेश बढ़ाना

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 31-May-2024

मेसर्स पावर मेक प्रोजेक्ट्स लिमिटेड बनाम मेसर्स दूसान पावर सिस्टम्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड

“धारा 29A (4) में प्रयुक्त अभिव्यक्ति "निर्दिष्ट अवधि की समाप्ति से पूर्व अथवा बाद में" के कारण, अधिकरण अपने अधिदेश की समाप्ति के बाद भी इसे बढ़ाने के लिये सशक्त है”।

न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह

स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों?    

न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह की पीठ द्वारा तय किया गया मामला मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 (A&C Act) की धारा 29 A (4) और (5) से संबंधित है।

  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी मेसर्स पावर मेक प्रोजेक्ट्स लिमिटेड बनाम मेसर्स दूसान पावर सिस्टम्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के मामले में की।

मेसर्स पावर मेक प्रोजेक्ट्स लिमिटेड बनाम मेसर्स दूसान पावर सिस्टम्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • याचिकाकर्त्ता मेसर्स पावर मेक प्रोजेक्ट्स लिमिटेड और प्रतिवादी ने 12 मई 2016 को "मुख्य संयंत्र पैकेज का शेष कार्य, BARH STPP-1 (3x660 MW) की यूनिट 1,2,3 के बॉयलर कार्यों के लिये उप-अनुबंध" शीर्षक से एक समझौता किया।
  • समझौते के अधीन कार्यों के संबंध में दोनों पक्षों के मध्य विवाद उत्पन्न हो गया तथा याचिकाकर्त्ता ने भारतीय मध्यस्थता परिषद के तत्त्वावधान में 10 मई 2022 को 'मध्यस्थता के लिये अनुरोध' के माध्यम से मध्यस्थता कार्यवाही प्रारंभ की।
  • तीन सदस्यीय मध्यस्थ अधिकरण ने 6 जुलाई 2022 को निर्देश दिया।
  • चूँकि मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम की धारा 29A के अनुसार मध्यस्थता कार्यवाही एक वर्ष के भीतर पूरी नहीं हुई, अतः दोनों पक्षों ने 10 अक्टूबर 2023 को छह महीने के समयावधि विस्तार पर सहमति व्यक्त की।
  • मध्यस्थ अधिकरण का कार्यकाल 4 फरवरी 2024 को समाप्त हो गया, जबकि कार्यवाही प्रतिपरीक्षा के चरण में थी।
  • मध्यस्थ अधिकरण ने कहा कि उसका कार्यकाल समाप्त हो चुका है तथा वह उचित आदेश प्राप्त होने के उपरांत कार्यवाही पुनः प्रारंभ करेगा।
  • बाद में, याचिकाकर्त्ता ने A&C अधिनियम की धारा 29A (4) और (5) के अधीन दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष वर्तमान याचिका दायर की, जिसमें मध्यस्थ अधिकरण के कार्यकाल में 12 महीने का अवधि विस्तार माँगा गया।

  न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने अन्य उच्च न्यायालयों के विभिन्न निर्णयों पर विचार किया कि क्या मध्यस्थ अधिकरण का अधिदेश धारा 29A (5) के अधीन उसकी अवधि समाप्त होने के बाद भी बढ़ाया जा सकता है।
  • न्यायालय ने कहा कि धारा 29A (4) में प्रयुक्त अभिव्यक्ति "निर्दिष्ट अवधि की समाप्ति से पूर्व अथवा बाद में" के कारण, अधिकरण अपने अधिदेश की समाप्ति के बाद भी इसे बढ़ाने के लिये सशक्त है।
  • तद्नुसार, न्यायालय ने मध्यस्थता कार्यवाही को पूरा करने के लिये मध्यस्थ अधिकरण के कार्यकाल को दिसंबर 2024 तक बढ़ा दिया।

मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 29A क्या है?

  • घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता पंचाटों के लिये समय-सीमा (उपधारा 1)
    • अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता के अलावा अन्य मामलों में पंचाट मध्यस्थ अधिकरण द्वारा धारा 23 की उपधारा (4) के अधीन अभिवचन पूरा होने की तिथि से बारह महीने की अवधि के भीतर किया जाएगा।
    • अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता: अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता में निर्णय यथासंभव शीघ्रता से किया जाना चाहिये तथा धारा 23 की उपधारा (4) के अधीन अभिवचनों के पूरा होने की तिथि से बारह महीने के भीतर मामले को निपटाने का प्रयास किया जाना चाहिये।
  • समय पर पंचाट के लिये अतिरिक्त शुल्क (उपधारा 2):
    • यदि पंचाट, मध्यस्थ अधिकरण द्वारा निर्देश दिये जाने की तिथि से छह माह के भीतर दिया जाता है, तो मध्यस्थ अधिकरण, पक्षकारों की सहमति के अनुसार अतिरिक्त शुल्क प्राप्त करने का अधिकारी होगा।
  • सहमति से समय विस्तार (उपधारा 3):
    • पक्षकार आपसी सहमति से, निर्णय देने की अवधि को छह माह से अधिक की अवधि के लिये बढ़ा सकते हैं।
  • अधिदेश की समाप्ति एवं न्यायालय विस्तार (उपधारा 4):
    • यदि पंचाट उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट अवधि या उपधारा (3) के अधीन विस्तारित अवधि के भीतर नहीं किया जाता है, तो मध्यस्थ/मध्यस्थों का अधिदेश समाप्त हो जाएगा, जब तक कि न्यायालय विनिर्दिष्ट अवधि की समाप्ति से पूर्व अथवा बाद में अवधि को विस्तारित नहीं कर देता।
    • शुल्क में कमी:
      • यदि देरी मध्यस्थ न्यायाधिकरण के कारण हुई है, तो न्यायालय प्रत्येक माह की देरी के लिये मध्यस्थों के शुल्क में पाँच प्रतिशत तक की कटौती का आदेश दे सकता है।
    • लंबित आवेदन:
      • यदि उपधारा (5) के अंतर्गत कोई आवेदन लंबित है, तो मध्यस्थ का अधिदेश आवेदन के निपटारे तक जारी रहेगा।
    • मध्यस्थों के लिये अवसर:
      • शुल्क में किसी भी कटौती से पहले मध्यस्थों को सुनवाई का अवसर दिया जाएगा।
  • न्यायालय द्वारा अवधि का विस्तार (उपधारा 5):
    • न्यायालय किसी पक्षकार द्वारा पर्याप्त कारण बताकर आवेदन करने पर, उपधारा (4) में निर्दिष्ट अवधि को बढ़ा सकता है तथा नियम व शर्तें लगा सकता है।
  • मध्यस्थों का प्रतिस्थापन (उपधारा 6):
    • अवधि बढ़ाते समय न्यायालय एक या सभी मध्यस्थों को प्रतिस्थापित कर सकता है। मध्यस्थता कार्यवाही वर्तमान चरण से जारी रहेगी तथा नए मध्यस्थ पहले से ही उपस्थित साक्ष्य एवं सामग्री पर विचार करेंगे।
  • मध्यस्थ अधिकरण की निरंतरता (उपधारा 7):
    • इस धारा के अंतर्गत पुनर्गठित मध्यस्थ अधिकरण को, पहले से नियुक्त अधिकरण से जारी माना जाएगा।
  • लागत अध्यारोपित करना (उपधारा 8):
    • न्यायालय इस धारा के अंतर्गत किसी भी पक्षकार पर वास्तविक अथवा अनुकरणीय लागत अध्यारोपित कर सकता है।
  • आवेदनों का शीघ्र निपटान (उपधारा 9):
    • उपधारा (5) के अंतर्गत दायर आवेदनों का निपटारा न्यायालय द्वारा यथासंभव शीघ्रता से किया जाएगा तथा मामले को विपक्षी पक्ष को अधिसूचना प्रेषित करने की तिथि से साठ दिन के भीतर निपटाने का प्रयास किया जाएगा।