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सांविधानिक विधि

एक चीज़ में झूठ, हर चीज़ में झूठ

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 21-Aug-2023

टी. जी. कृष्णमूर्ति एवं अन्य बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य।

एक चीज में झूठ, हर चीज में झूठ (Falsus in Uno, Falsus in Omnibus)को नियंत्रित करने वाला सिद्धांत भारत में न्यायालयों पर लागू नहीं होता है। - न्यायमूर्ति एम. एम. सुंदरेश, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला

स्रोत: सुप्रीम कोर्ट

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति एम. एम. सुंदरेश और जे.बी. पारदीवाला की पीठ ने कहा कि "एक चीज में झूठ, हर चीज में झूठ (Falsus in Uno, Falsus in Omnibus)को नियंत्रित करने वाला सिद्धांत भारत में न्यायालयों पर लागू नहीं होता है।

  • उच्चतम न्यायालय ने यह टिप्पणी टी. जी. कृष्णमूर्ति बनाम कर्नाटक राज्य एवं अन्य के मामले में दी।

पृष्ठभूमि

  • ट्रायल कोर्ट और कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अपीलकर्त्ताओं को दो मृतकों की हत्या करने और गवाहों को घायल करने के लिये दोषी ठहराया।
    • उन पर भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code, 1860) की धारा 120b और 34 के साथ पठित धारा 302 और भारतीय दंड संहिता की धारा 34 के साथ पठित धारा 307 के तहत अपराध का आरोप लगाया गया था।
  • उच्च न्यायालय ने अन्य आरोपियों को यह कहते हुए बरी कर दिया कि अभियोजन पक्ष के गवाहों के साक्ष्य को मृतक संख्या 2 की मृत्यु के लिये लागू नहीं किया जा सकता है।
    • हालाँकि, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि ये घायल साक्षी प्रत्यक्षदर्शी हैं, केवल मृतक संख्या 1 की मृत्यु और साक्ष्यों को हुई क्षति के लिये सजा सुनाई गई थी।
  • वर्तमान अपील में अपीलकर्त्ता के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि उच्च न्यायालय का दृष्टिकोण (मृतक नंबर 2 की मृत्यु से संबंधित आरोप के लिये अभियोजन पक्ष के साक्षियों के साक्ष्य पर भरोसा नहीं किया जा सकता है) को अन्य अपराधों के लिये भी लागू किया जाना चाहिये था

न्यायालय की टिप्पणी

  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सत्य की खोज करते हुए, यह न्यायालय का दायित्व है कि वह सभी तथ्यों में से तार्किक तथ्य चुन ले।

Falsus in Uno, Falsus in Omnibus

इस लैटिन कहावत का अर्थ है एक चीज़ में झूठ, हर चीज़ में झूठ

  • एक सामान्य नियम के रूप में, कानून मानता है कि यदि एक ही कहानी के कुछ तथ्य झूठे हैं, तो पूरी कहानी झूठी है।
  • न्यायालय का यह फैसला साक्षियों के साक्ष्यों पर आधारित है।
    • इसलिये आमतौर पर यह माना जाता है कि जो साक्षी किसी मामले के बारे में झूठा साक्ष्य देता है, वह उसी मामले में किसी अन्य मामले के बारे में साक्ष्य देने के लिये विश्वसनीय नहीं है।
  • न्यायालय ने कई बार इस बात पर ज़ोर दिया है कि विशेष रूप से भारत में यह खतरनाक सिद्धांत है, यदि पूरे साक्ष्य को केवल इस आधार पर खारिज कर दिया जाए, क्योंकि साक्षी स्पष्ट रूप से किसी पहलू में झूठ बोल रहा था, तो यह डर है कि भारत में आपराधिक न्याय प्रशासन पूरी तरह से ठप्प हो जायेगा

 निर्णयन विधि

  • गंगाधर बोहरा बनाम उड़ीसा राज्य (2002):
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इस कहावत 'एक चीज़ में झूठ, हर चीज़ में झूठ’ को सामान्य स्वीकृति नहीं मिली है और न ही यह कहावत कानून के शासन का दर्ज़ा प्राप्त कर पाई है।
    • यह कहावत महज़ सावधानी बरतने का नियम है। इसका तात्पर्य यह है कि गवाही की उपेक्षा की जा सकती है, न कि इसकी अवहेलना की ही जानी चाहिये।
  • प्रेम सिंह बनाम हरियाणा राज्य (2009):
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यह अब कानून का एक सुस्थापित सिद्धांत है कि एक चीज़ में झूठ, हर चीज़ में झूठ के सिद्धांत का भारत में कोई अनुप्रयोग नहीं है
  • महेंद्रन बनाम तमिलनाडु राज्य (2019):
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि गवाहों को झूठा नहीं कहा जा सकता।