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आपराधिक कानून

खाद्य पदार्थों में मिलावट

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 22-Dec-2023

माणिक हीरू झंगियानी बनाम मध्य प्रदेश राज्य

“जहाँ किसी अपराध पर खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम, 1954 (PFA) के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा व खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 दोनों के तहत दंडात्मक प्रावधान लागू होंगे, वहाँ FSSA के प्रावधान, PFA पर लागू होंगे।”

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और संजय करोल

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और संजय करोल ने कहा है कि जहाँ किसी अपराध पर खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम, 1954 (PFA) के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा व खाद्य सुरक्षा व मानक अधिनियम, 2006 दोनों के तहत दंडात्मक प्रावधान लागू होंगे, वहाँ FSSA के प्रावधान, PFA पर लागू होंगे।

  • उच्चतम न्यायालय ने यह फैसला माणिक हीरू झंगियानी बनाम मध्य प्रदेश राज्य के मामले में दिया।

माणिक हीरू झंगियानी बनाम मध्य प्रदेश राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • अपीलकर्त्ता, प्रासंगिक समय पर, मेसर्स भारती रिटेल लिमिटेड का निदेशक था।
  • एक कंपनी जो 'ईज़ी डे' (Easy Day) के नाम से रिटेल स्टोर संचालित करने का व्यवसाय करती है, उसके आउटलेट पूरे देश में हैं।
  • खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम, 1954 (PFA) के तहत नियुक्त एक खाद्य निरीक्षक ने इंदौर में एक दुकान का दौरा किया और दुकान से कुछ बिस्किट पैकेट खरीदे। वे नमूने राज्य खाद्य प्रयोगशाला में भेजे गए और उसकी रिपोर्ट प्राप्त हुई।
  • 5 अगस्त, 2011 को PFA निरस्त कर दिया गया। इसे खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 (FSSA) की धारा 97 की उपधारा (1) के तहत अधिसूचित किया गया था।
  • हालाँकि, इस अधिनियम की धारा 97 की उप-धारा (4) में प्रावधान है कि PFA के निरसन के बावजूद, PFA के तहत किये गए अपराध का संज्ञान FSSA के शुरू होने की तिथि से तीन वर्ष के भीतर लिया जा सकता है।
  • खाद्य निरीक्षक ने 12 अगस्त, 2011 को चार्ज-शीट दायर की। अपीलकर्त्ता के खिलाफ PFA के तहत अपराध का संज्ञान लिया गया।
  • अपीलकर्त्ता ने कार्यवाही को रद्द करने के लिये उच्च न्यायालय में अपील की। उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए उसकी याचिका खारिज़ कर दी कि FSSA की धारा 97 की उप-धारा (4) के मद्देनजर, PFA के तहत अपराध के लिये संज्ञान लिया जा सकता है। यह मामला उच्चतम न्यायालय तक पहुँचा।
  • न्यायालय ने कहा कि कथित अपराध PFA की धारा 16(1)(a) के तहत दंडनीय है, जिसमें छह महीने से कम की अवधि के लिये कारावास का प्रावधान है और FSSA के तहत संबंधित प्रावधान (धारा 52) में सज़ा का प्रावधान है। यह सज़ा ज़ुर्माने के संदर्भ में थी न कि कारावास के।
  • न्यायालय ने कहा कि यद्यपि PFA को 5 अगस्त, 2011 से निरस्त कर दिया गया था, FSSA की धारा 3 जो 'मिथ्या छाप वाले भोजन' (Misbranded Food) को परिभाषित करती है, 28 मई, 2008 को लागू हुई।
  • इस प्रकार, अपराधी को या तो PFA की धारा 16 के तहत कारावास की सज़ा दी जा सकती थी या FSSA के तहत उसे ज़ुर्माना भरने का निर्देश दिया जा सकता था।
  • शीर्ष न्यायालय (Apex Court) ने अपीलकर्त्ताओं के खिलाफ लंबित आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया और स्पष्ट किया कि यह निर्णय FSSA के तहत अधिकारियों को कानून का पालन करते हुए धारा 52 के प्रावधानों की मदद लेने से नहीं रोकेगा।

न्यायालय की टिप्पणी क्या थी?

  • जब मिसब्रांडिंग के परिणामों की बात आती है, तो इसे दोनों अधिनियमों के तहत प्रदान किया गया है और मिसब्रांडिंग के दंडात्मक परिणामों के संबंध में अधिनियमों में असंगतता है।
  • इस प्रकार, ऐसे मामले में जहाँ FSSA की धारा 52 के लागू होने के बाद, यदि किसी के द्वारा मिसब्रांडिंग का कार्य किया जाता है, जो PFA की धारा 16 के तहत दंडनीय अपराध है और जो FSSA की धारा 52 के तहत दंडनीय है, FSSA की धारा 52, PFA के प्रावधानों को समाप्त कर देगी।

खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम, 1954 (PFA) क्या है?

  • यह अधिनियम भोजन में मिलावट/संदूषण से सुरक्षा प्रदान करता है जिससे उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है।
  • यह अधिनियम उन धोखाधड़ी से भी संबंधित है जो डीलरों द्वारा सस्ते या मिलावटी खाद्य पदार्थों की आपूर्ति करके की जा सकती हैं।

खाद्य सुरक्षा व खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 (FSSA) क्या है?

  • भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India- FSSAI) भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) के प्रशासन के तहत एक वैधानिक निकाय है।
  • यह खाद्य पदार्थों के निर्माण, भंडारण, वितरण, बिक्री एवं आयात को नियंत्रित करता है, साथ ही खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये मानक भी स्थापित करता है।

इसमें क्या विधिक प्रावधान शामिल हैं?

  • भारतीय दंड संहिता, (Indian Penal Code- IPC) 1860 की धारा 272: बिक्री के लिये इच्छित खाद्य या पेय पदार्थों में मिलावट।
    • कोई भी व्यक्ति जो भोजन या पेय में मिलावट का अपराध करता है, उसे छह महीने तक की कैद या ज़ुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
  • IPC की धारा 273: दूषित भोजन या पेय पदार्थों की बिक्री।
    • जो कोई भी किसी ऐसी वस्तु को बेचता है, या पेश करता है या बिक्री के लिये रखता है, जो दूषित हो गई है या हो गई है, या खाने या पीने के लिये अयोग्य स्थिति में है, यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखता है कि वह भोजन के रूप में दूषित पदार्थ है या शराब पीता है, तो उसे छह महीने तक की कैद या एक हज़ार रुपए तक का ज़ुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा।
  • निर्णयज विधि:
    • पार्ले बेवरेजेज़ प्रा. लिमिटेड बनाम ठाकोर कचराजी (1987):
      • गुजरात उच्च न्यायालय ने निर्धारित किया कि:
        • IPC की धारा 272 और धारा 273 PFA अधिनियम, 1954 के प्रावधानों के अनुरूप कानून नहीं हैं क्योंकि इस अधिनियम की धारा 16 सख्त सज़ा का प्रावधान करती है जबकि IPC की धारा 272 के तहत सज़ा अधिक कठोर नहीं है। इसके अलावा, धारा 272 के तहत अपराध हेतु, आपराधिक मनःस्थिति एक प्रमुख तत्त्व है जिसे PFA अधिनियम के तहत नज़रअंदाज किया जा सकता है।
        • IPC के प्रावधान PFA अधिनियम के प्रावधानों के प्रतिकूल या असंगत नहीं हैं, इसलिये PFA अधिनियम की धारा 25 के तहत निरसन का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है।
        • PFA अधिनियम और IPC की धारा 272 या धारा 273 दोनों मिलावट के अपराध के लिये लागू हैं, लेकिन यह देखा जाना चाहिये कि अपराधी को दो बार दंडित नहीं किया जाता है।