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आपराधिक कानून

किशोर न्यायालय की कार्य पद्धति

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 19-Jun-2024

XYZ बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य

क्लर्क द्वारा न्यायालय के आदेश की कथित अवहेलना के उपरांत किशोर न्यायालय के संचालन की जाँच के निर्देश दिये गए”।

न्यायमूर्ति ए. एस. गडकरी और न्यायमूर्ति नीला गोखले

स्रोत: बॉम्बे उच्च  न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में XYZ बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य के मामले में, बॉम्बे उच्च न्यायालय ने किशोर न्यायालय के क्लर्क सुधीर पवार द्वारा न्यायालय के आदेश के बावजूद आरोप-पत्र स्वीकार करने से इनकार करने पर संज्ञान लिया। इस अवज्ञा के कारण, न्यायालय ने न्याय में बाधा डालने के लिये पवार की आलोचना की तथा पीठासीन अधिकारी श्रीमती सीमा घुटे की लापरवाही के विषय में चिंता जताई।

  • न्यायालय ने पवार के कार्यों की जाँच करने तथा भिवंडी किशोर न्यायालय के समग्र कामकाज का मूल्यांकन करने के लिये तत्काल अवमानना ​​कार्यवाही के स्थान पर, ठाणे के प्रधान ज़िला न्यायाधीश द्वारा विस्तृत जाँच का विकल्प चुना।

XYZ बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • जाँच एजेंसी को 12 दिसंबर, 2023 के न्यायालय के आदेश द्वारा अपनी जाँच पूरी करने के उपरांत आरोप-पत्र दायर करने के लिये अधिकृत किया गया था।
  • हालाँकि, जब जाँच अधिकारी (IO) ने भिवंडी के किशोर न्यायालय में आरोप-पत्र दाखिल करने का प्रयास किया, तो क्लर्क सुधीर पवार ने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया, क्योंकि संबंधित किशोर उपस्थित नहीं था।
  • 8 अप्रैल, 2024 को न्यायालय के आदेश के बावजूद, जिसमें किशोर की उपस्थिति के बिना आरोप पत्र दाखिल करने की स्पष्ट अनुमति दी गई थी, सुधीर पवार ने आरोप-पत्र स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
  • इसके परिणामस्वरूप अभियोजक ने 11 जून, 2024 को न्यायालय को सूचित किया कि उच्च न्यायालय के दो आदेशों के बावजूद, जाँच अधिकारी को अभी भी बाधा का सामना करना पड़ रहा है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने भिवंडी किशोर न्यायालय के क्लर्क सुधीर पवार द्वारा न्यायालय के आदेशों की घोर अवहेलना करने के लिये कड़ी आलोचना की तथा इसे आपराधिक न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप माना।
  • न्यायालय ने पीठासीन अधिकारी श्रीमती सीमा घुटे द्वारा अपने न्यायालय पर नियंत्रण की स्पष्ट कमी पर भी चिंता व्यक्त की तथा सुझाव दिया कि प्रधान ज़िला न्यायाधीश द्वारा उनकी भूमिका की जाँच की जानी चाहिये।
  • अवमानना ​​कार्यवाही तुरंत प्रारंभ करने के स्थान पर, न्यायालय ने ठाणे के प्रधान ज़िला न्यायाधीश द्वारा विस्तृत जाँच का आदेश दिया।
    • यह विस्तृत जाँच, पवार के आचरण का मूल्यांकन करेगी और भिवंडी स्थित किशोर न्यायालय के समग्र कामकाज का आकलन करेगी।
  • संबंधित पुलिस अधिकारी ने न्यायालय के निर्देश पर मामले का विवरण देते हुए 12 जून, 2024 एक शपथ-पत्र प्रस्तुत किया।
    • प्रधान ज़िला न्यायाधीश को एक सप्ताह के भीतर जाँच पूरी कर उच्च न्यायालय को एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया।
  • जाँच लंबित रहने तक, प्रधान ज़िला न्यायाधीश को यह अधिकार दिया गया कि यदि आवश्यक हो तो वे पवार को निलंबित कर सकते हैं तथा गहन जाँच के लिये अन्य उचित विधिक कार्यवाही कर सकते हैं।

 किशोर न्याय प्रणाली क्या है?

  • किशोर न्याय प्रणाली उन बालकों से संबंधित है जो विधि का उल्लंघन करते हैं तथा जिन्हें देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता होती है।
  • भारत में 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति को किशोर माना जाता है।
  • अल्पवयस्क वह व्यक्ति है जो पूर्ण विधिक उत्तरदायित्व की आयु प्राप्त नहीं कर पाया है तथा किशोर वह अल्पवयस्क है जिसने कोई अपराध किया है तथा जिसे देखरेख एवं संरक्षण की आवश्यकता है।
  • भारत में 7 वर्ष से कम आयु के किसी भी बच्चे को किसी भी अपराध के लिये दोषी नहीं ठहराया जा सकता है, क्योंकि डोली इनकैपैक्स सिद्धांत का अर्थ है अपराध करने का इरादा करने में असमर्थ होना।

किशोर न्याय प्रणाली का उद्देश्य क्या है?

  • युवा अपराधियों का पुनर्वास करना और उन्हें दूसरा अवसर देना।
  • इस संरक्षण का मुख्य कारण यह है कि बच्चों का मस्तिष्क पूरी तरह विकसित नहीं होता है, तथा उन्हें गलत और सही का पूरा ज्ञान नहीं होता है।
  • जब माता-पिता द्वारा पालन-पोषण खराब हो, घर में दुर्व्यवहार हो, घर में हिंसा हो, एकल अभिभावक हों जो अपने बच्चों को लंबे समय तक बिना देखरेख के छोड़ देते हों।
  • समाचार, फिल्में, वेब सीरीज़, सोशल मीडिया का प्रभाव और शिक्षा की कमी भी ऐसे कारण हैं जिनके कारण बच्चे आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो जाते हैं।

किशोर न्यायालय की शक्ति और कार्य क्या है?

  • किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 8 बोर्ड की शक्तियों, कार्यों और ज़िम्मेदारियों से संबंधित है।
    • बोर्ड की शक्तियाँ:
      • किसी भी ज़िले के लिये गठित बोर्ड के पास इस अधिनियम के अंतर्गत बालकों से संबंधित सभी कार्यवाहियों को अनन्य रूप से निपटाने की शक्ति होगी।
      • इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन बोर्ड को प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग उच्च न्यायालय और बाल न्यायालय द्वारा भी किया जा सकेगा, जब कार्यवाही धारा 19 के अधीन अपील, पुनरीक्षण या अन्यथा उनके समक्ष आती है।
    • बोर्ड के कार्य:
      • प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में बालक और उसके माता-पिता या अभिभावक की सूचित भागीदारी सुनिश्चित करना;
      • यह सुनिश्चित करना कि बालक को पकड़ने, पूछताछ, देखरेख एवं पुनर्वास की पूरी प्रक्रिया के दौरान बालक के अधिकारों की रक्षा की जाए;
      • विधिक सेवा संस्थाओं के माध्यम से बालकों के लिये विधिक सहायता की उपलब्धता सुनिश्चित करना;
      • जहाँ भी आवश्यक हो, बोर्ड बालक को, यदि वह कार्यवाही में प्रयुक्त भाषा को समझने में असफल रहता है, एक दुभाषिया या अनुवादक उपलब्ध कराएगा, जिसके पास ऐसी योग्यताएँ, अनुभव हो तथा निर्धारित शुल्क का भुगतान किया जाए;
      • परिवीक्षा अधिकारी, अथवा यदि परिवीक्षा अधिकारी उपलब्ध न हो तो बाल कल्याण अधिकारी या सामाजिक कार्यकर्त्ता को, मामले की सामाजिक जाँच करने तथा बोर्ड के समक्ष प्रथम प्रस्तुति की तिथि से पंद्रह दिनों की अवधि के भीतर सामाजिक जाँच रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश देना, ताकि उन परिस्थितियों का पता लगाया जा सके जिनमें कथित अपराध किया गया था;
      • धारा 14 में निर्दिष्ट जाँच प्रक्रिया के अनुसार विधि का उल्लंघन करने वाले बालकों के मामलों का न्यायनिर्णयन और निपटान करना;
      • विधि का उल्लंघन करने वाले कथित बालक से संबंधित मामलों को समिति को हस्तांतरित करना, जिसे किसी भी स्तर पर देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता बताई गई है, जिससे यह मान्यता मिलती है कि विधि का उल्लंघन करने वाला बालक एक देखभाल की आवश्यकता वाला बालक भी हो सकता है अतः इसमें समिति तथा बोर्ड दोनों को शामिल करने की आवश्यकता है;
      • मामले का निपटारा करना और अंतिम आदेश पारित करना जिसमें बालक के पुनर्वास के लिये एक व्यक्तिगत देखभाल योजना शामिल है, जिसमें आवश्यकतानुसार परिवीक्षा अधिकारी या ज़िला बाल संरक्षण इकाई या किसी गैर-सरकारी संगठन के सदस्य द्वारा अनुवर्ती कार्रवाई भी शामिल है;
      • विधि से संघर्षरत बालकों की देखरेख के संबंध में योग्य व्यक्तियों की घोषणा के लिये जाँच का संचालन करना;
      • विधि-संघर्षरत बालकों के लिये आवासीय सुविधाओं का प्रत्येक माह कम-से-कम एक निरीक्षण दौरा करना तथा ज़िला बाल संरक्षण इकाई और राज्य सरकार को सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार के लिये  कार्रवाई की सिफारिश करना;
      • इस अधिनियम या किसी अन्य वर्तमान विधि के अधीन विधि का उल्लंघन करने वाले किसी भी बालक के विरुद्ध किये गए अपराधों के लिये इस संबंध में की गई शिकायत पर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने के लिये पुलिस को आदेश देना;
      • इस अधिनियम या किसी अन्य वर्तमान विधि के अंतर्गत देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता वाले किसी भी बालक के विरुद्ध किये गए अपराधों के लिये, इस संबंध में एक समिति द्वारा लिखित शिकायत पर, प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने के लिये पुलिस को आदेश देना;
      • वयस्कों के लिये बने जेलों का नियमित निरीक्षण करना, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या कोई बालक ऐसी जेलों में बंद है तथा उस बच्चे को पर्यवेक्षण गृह या सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित करने के लिये तत्काल उपाय करना, चाहे जैसा भी मामला हो; तथा
      • कोई अन्य कार्य जो निर्धारित किया जा सकता है।