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सांविधानिक विधि
सरकार के साथ व्यापार करने का बोलीदाता का मौलिक अधिकार
« »13-Oct-2023
मैसर्स जय हनुमान कंस्ट्रक्शन जगदीश सरन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 9 अन्य "कोई भी बोलीदाता सरकार के साथ व्यापार करने के मौलिक अधिकार का दावा नहीं कर सकता।" जस्टिस महेश चंद्र त्रिपाठी, जस्टिस प्रशांत कुमार |
स्रोतः इलाहाबाद उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
- न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और प्रशांत कुमार ने कहा कि यदि राज्य या उसकी कोई संस्था निविदा कार्यवाही में निष्पक्षता से कार्य करती है तो न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप बहुत प्रतिबंधात्मक है क्योंकि कोई भी बोलीदाता सरकार के साथ व्यापार करने के मौलिक अधिकार का दावा नहीं कर सकता है।
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी मैसर्स जय हनुमान कंस्ट्रक्शन जगदीश सरन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 9 अन्य के मामले में दी।
- मैसर्स जय हनुमान कंस्ट्रक्शन जगदीश सरन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 9 अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- जनपद मीरजापुर में स्टेट हाईवे के विस्तार एवं सौन्दर्यीकरण हेतु निविदा आमंत्रण जारी किया गया।
- कार्य पूरा करने की निर्धारित समय अवधि 18 महीने थी।
- याचिकाकर्त्ता का मामला यह है कि उन्होंने प्रहरी वेबसाइट के माध्यम से अपनी तकनीकी बोली सफलतापूर्वक प्रस्तुत की, जिसमें तकनीकी शीट डाउनलोड की गई और बाद में ई-टेंडर प्लेटफॉर्म पर अपलोड की गई।
- प्रहरी वेबसाइट पर पोस्ट किये गये परिणाम से संकेत मिलता है कि याचिकाकर्त्ता की तकनीकी बोली को हर पहलू में "अनुक्रियात्मक" माना गया था।
- उन्होंने आरोप लगाया कि वेबसाइट से कई दस्तावेज़ हटा दिये गये और इसलिये उनकी वित्तीय बोली "गैर-अनुक्रियात्मक" हो गई, और उन्होंने इस कृत्य को भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 14 के तहत मनमाना बताया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि सरकार, या उसके उपक्रम को निविदा की शर्तें तय करने में खुली छूट होगी।
- और कहा कि न्यायालय निविदा संबंधी मामलों में तभी हस्तक्षेप करेगा जब यह मनमाना, भेदभावपूर्ण, दुर्भावनापूर्ण या पूर्वाग्रह से प्रेरित हो।
भारत के संविधान, 1950 का अनुच्छेद 14 क्या है?
- अनुच्छेद 14 एक मौलिक अधिकार है जो कानून के समक्ष समानता और कानूनों के समान संरक्षण के सिद्धांत का प्रतीक है।
- इसमें कहा गया है कि राज्य भारत के क्षेत्र के भीतर किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या कानूनों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।
- अनुच्छेद 14 का सार समान लोगों के साथ समान और असमान लोगों के साथ असमान व्यवहार करने में निहित है, यह सुनिश्चित करना कि कानून बिना किसी भेदभाव के सभी व्यक्तियों पर समान रूप से लागू हो।
- उचित वर्गीकरण की अवधारणा को मान्यता दी गई है, जिससे राज्य को वैध उद्देश्यों के लिये व्यक्तियों को वर्गीकृत करने की अनुमति मिलती है, जब तक कि ऐसा वर्गीकरण मनमाना या अनुचित न हो।
इस मामले में शामिल ऐतिहासिक फैसले क्या हैं?
- नेशनल हाई स्पीड रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम मोंटेकार्लो लिमिटेड और अन्य (1994):
- माननीय उच्चतम न्यायालय (SC) ने माना है कि "न्यायालय को निविदा मामलों में शक्तियों का प्रयोग करने में बेहद सावधान रहना चाहिये"।
- टाटा सेल्यूलर बनाम भारत संघ (1994):
- उच्चतम न्यायालय (SC) ने कहा कि न्यायालय सरकार के निविदा संबंधी मामलों में तभी हस्तक्षेप करेगी जब उसे प्रक्रिया में पक्षपात या मनमानी दिखेगी।
- एन.जी. प्रोजेक्ट्स लिमिटेड बनाम विनोद कुमार जैन एवं अन्य (2022):
- उच्चतम न्यायालय (SC) ने कहा कि "अगर न्यायालय को लगता है कि पूरी तरह से मनमानी हुई है या निविदा दुर्भावनापूर्ण तरीके से दी गई है, तब भी न्यायालय को टेंडर देने में हस्तक्षेप करने से बचना चाहिये, बल्कि अनुबंध के निष्पादन पर रोक लगाने के बजाय गलत तरीके से बहिष्करण के लिये हर्जाना मांगने हेतु पार्टियों पर दबाव डालना चाहिये।"
- निविदा में निषेधाज्ञा या हस्तक्षेप से राज्य पर अतिरिक्त लागत का भार पड़ता है और यह सार्वजनिक हित के विरुद्ध भी है।