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सांविधानिक विधि
अभिभावकता का मौलिक अधिकार
« »25-Dec-2023
कुन्दन सिंह बनाम एन.सी.टी. दिल्ली राज्य सरकार "प्रजनन और अभिभावकता बनने का अधिकार एक दोषी का मौलिक अधिकार है और यह भारत के संविधान 1950, के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित है।" न्यायमूर्ति स्वर्णा कांता शर्मा |
स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कुन्दन सिंह बनाम एन.सी.टी. दिल्ली राज्य सरकार के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना है कि दोषी को अभिभावकता बनने और प्रजनन करने का मौलिक अधिकार है।
कुन्दन सिंह बनाम एन.सी.टी. दिल्ली राज्य सरकार मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- याचिकाकर्त्ता वर्तमान में तिहाड़ जेल, नई दिल्ली में बंद है और आजीवन कारावास की सज़ा काट रहा है।
- याचिकाकर्त्ता को भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) के प्रावधानों के तहत दंडनीय अपराधों के लिये दोषी ठहराया गया था और संबंधित ट्रायल कोर्ट द्वारा उसे आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई थी।
- याचिकाकर्त्ता परिहार की अवधि को छोड़कर पहले ही 14 वर्ष से अधिक समय जेल में बिता चुका है।
- याचिकाकर्त्ता द्वारा इस आधार पर पैरोल पर रिहाई की मांग करते हुए एक याचिका दायर की गई थी कि उसके विवाह को पिछले तीन वर्ष हो गए हैं और अब तक उसका कोई बच्चा नहीं है। वह कुछ चिकित्सीय परीक्षण कराना चाहता था क्योंकि वह और उसकी पत्नी IVF प्रक्रिया के माध्यम से बच्चा पैदा करना चाहते थे।
- उच्च न्यायालय ने चार हफ्ते की पैरोल की स्वीकृति दी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति स्वर्णा कांता शर्मा ने कहा कि यद्यपि किसी दोषी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मानवाधिकार को राज्य की सुरक्षा के पक्ष में और कानून का शासन स्थापित करने के लिये आत्मसमर्पण करना पड़ता है, किसी मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों में दोषी को जीवन के मौलिक अधिकार की सुरक्षा से वंचित नहीं किया जा सकता है, जिसमें बच्चा पैदा करने का अधिकार भी शामिल होगा।
- न्यायालय ने यह भी कहा कि प्रजनन और अभिभावकता बनने का अधिकार एक दोषी का मौलिक अधिकार है और यह भारत के संविधान 1950, के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित है।
- न्यायालय ने आगे कहा कि प्रजनन का अधिकार संपूर्ण नहीं है और इसके लिये प्रासंगिक परीक्षण की आवश्यकता है। दोषी की अभिभावकीय स्थिति और उम्र जैसे कारकों को ध्यान में रखकर, व्यक्तिगत अधिकारों तथा व्यापक सामाजिक विचारों के बीच नाज़ुक संतुलन को बनाए रखने के लिये एक निष्पक्ष एवं उचित दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है।
भारत के संविधान, 1950 का अनुच्छेद 21 क्या है?
परिचय:
- इस अनुच्छेद में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।
- यह मौलिक अधिकार प्रत्येक व्यक्ति, नागरिकों और विदेशियों के लिये समान रूप से उपलब्ध है।
- भारत के उच्चतम न्यायालय ने इस अधिकार को मौलिक अधिकारों का हृदय बताया है।
- यह अधिकार राज्य के विरुद्ध ही प्रदान किया गया है।
- अनुच्छेद 21 दो अधिकार सुरक्षित करता है:
- जीवन का अधिकार
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
निर्णयज विधि:
- फ्राँसिस कोरली मुलिन बनाम प्रशासक (1981) मामले में न्यायमूर्ति पी. भगवती ने कहा कि COI का अनुच्छेद 21 एक लोकतांत्रिक समाज में सर्वोच्च महत्त्व के संवैधानिक मूल्य का प्रतीक है।
- खड़क सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1963) मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जीवन शब्द का तात्पर्य मात्र पशु अस्तित्व से कहीं अधिक है।
- इसके अभाव के विरुद्ध निषेध उन सभी अंगों और क्षमताओं तक फैला हुआ है जिनके द्वारा जीवन का आनंद लिया जाता है।
- यह प्रावधान समान रूप से दोषी के बख्तरबंद पैर को काटकर या एक आँख निकालकर, या शरीर के किसी अन्य अंग को नष्ट करके शरीर के क्षत-विक्षत होने पर रोक लगाता है जिसके माध्यम से आत्मा बाहरी दुनिया के साथ संचार करती है।