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आपराधिक कानून
लिंग-विशिष्ट विधियाँ
« »29-Jul-2024
सुस्मिता पंडित बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य “यह अपराध लिंग-विशिष्ट है और इस अपराध के अधीन केवल पुरुष पर ही वाद संस्थित किया जा सकता है। IPC की धारा 354A की उपधारा (1), (2) और (3) में प्रयोग किये गए विशिष्ट शब्द "पुरुष" के परिणामस्वरूप कोई महिला आरोपी इस रिष्टिपूर्ण धारा के अधीन नहीं आएगी।” न्यायमूर्ति अजय कुमार गुप्ता |
स्रोत: कलकत्ता उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सुस्मिता पंडित बनाम पश्चिम बंगाल राज्य एवं अन्य के मामले में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने माना है कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354 A को लिंग-विशिष्ट धारा माना गया है, जो यौन उत्पीड़न के किसी कृत्य के विरुद्ध केवल पुरुष को अपराधी मानती है।
सुस्मिता पंडित बनाम पश्चिम बंगाल राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में प्रतिवादी ने याचिकाकर्त्ता (सुस्मिता पंडित) और समीर पंडित (याचिकाकर्त्ता के जैविक पिता) के विरुद्ध प्रतिवादी की माँ के साथ छेड़छाड़ करके उसे प्रताड़ित करने की शिकायत दर्ज कराई।
- शिकायत में यह भी कहा गया कि याचिकाकर्त्ता अन्य लोगों के साथ मिलकर प्रतिवादी की माँ को प्रताड़ित करती थी और हमेशा उसे उकसाती थी।
- भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 354 A, धारा 506 और धारा 34 के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की गई तथा ट्रायल कोर्ट में आरोप-पत्र दायर किया गया।
- याचिकाकर्त्ता ने कार्यवाही रद्द करने के लिये कलकत्ता उच्च न्यायालय के समक्ष एक पुनरीक्षण आवेदन दायर किया और तर्क दिया कि:
- याचिकाकर्त्ता पर धारा 354A के अधीन आरोप नहीं लगाया जा सकता क्योंकि यह एक लिंग-विशिष्ट धारा है।
- आरोप-पत्र बिना किसी उचित जाँच के दायर किया गया और याचिकाकर्त्ता का वर्तमान शिकायत से कोई लेना-देना नहीं है।
- यह विधिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पाया कि भारतीय दण्ड संहिता के अधीन की गयी शिकायत में सभी आरोप समीर पंडित के विरुद्ध थे और याचिकाकर्त्ता के विरुद्ध एक भी शिकायत दर्ज नहीं की गई थी।
- साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत उच्च न्यायालय ने यह भी पाया कि वर्तमान मामले में याचिकाकर्त्ता की किसी भी तरह की संलिप्तता का कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं होता है।
- उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के अधीन उच्च न्यायालय विधिक प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने एवं न्याय के लक्ष्य को सुरक्षित करने के लिये अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग कर सकता है।
- कलकत्ता उच्च न्यायालय ने यह भी माना कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354 A महिलाओं पर लागू नहीं होती है, बल्कि यह केवल पुरुषों पर लागू होती है, क्योंकि महिलाओं पर इस प्रकार का वाद संस्थित करना अनुचित है।
- इसलिये, याचिकाकर्त्ता की दलीलों को कलकत्ता उच्च न्यायालय ने स्वीकार कर लिया और कार्यवाही रद्द कर दी।
भारत में लिंग-विशिष्ट विधियाँ क्या हैं?
- दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम, 1961:
- यह अधिनियम दहेज़ लेने या देने पर प्रतिबंध लगाता है।
- यह अधिनियम महिलाओं को विवाह के संबंध होने वाली सभी दुर्घटनाओं से बचाता है।
- इस अधिनियम की धारा 2 (a) में कहा गया है कि "पीड़ित व्यक्ति" का तात्पर्य ऐसी किसी महिला से है जो प्रतिवादी के साथ घरेलू संबंध में है या रही है और जो यह आरोप लगाती है कि प्रतिवादी ने उसके साथ घरेलू हिंसा की है।
- सती (निवारण) अधिनियम, 1987:
- यह अधिनियम महिलाओं के विरुद्ध की जाने वाली सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाता है।
- 'सती' का अर्थ है किसी स्त्री को जीवित जला देना या दफना देना—
- किसी विधवा को उसके मृत पति या किसी अन्य संबंधी के शव के साथ या पति या ऐसे संबंधी से संबद्ध किसी वस्तु, चीज़ या सामान के साथ; या
- किसी भी महिला को उसके किसी भी रिश्तेदार के शव के साथ, भले ही ऐसा जलाना या दफनाना विधवा या महिला की ओर से स्वैच्छिक हो या अन्यथा हो।
- कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध व निवारण) अधिनियम, 2013:
- यह अधिनियम कार्यस्थल पर महिला की गरिमा को ठेस पहुँचाने वाले किसी भी कार्य पर रोक लगाता है।
- “पीड़ित महिला” का अर्थ है—
- कार्यस्थल के संबंध में, किसी भी आयुवर्ग की कोई महिला, चाहे वह कार्यरत हो या नहीं, जो यह आरोप लगाती है कि प्रतिवादी द्वारा उसके साथ यौन उत्पीड़न किया गया है।
- निवास स्थान या घर के संबंध में, किसी भी आयु की कोई महिला जो ऐसे निवास स्थान या घर में नियोजित है।
- स्त्री अशिष्ट रूपण (प्रतिषेध) अधिनियम, 1986
- यह अधिनियम महिलाओं के किसी भी प्रकार के अभद्र चित्रण पर प्रतिबंध लगाता है।
- अधिनियम की धारा 2 (c) में कहा गया है कि "महिलाओं का अशिष्ट चित्रण" का अर्थ है किसी महिला की आकृति, उसके रूप या शरीर या उसके किसी भाग का किसी भी प्रकार से चित्रण, जिससे महिलाओं के लिये अभद्र, या अपमानजनक या उनका अपमान करने वाला प्रभाव पड़े, या सार्वजनिक नैतिकता या आचार-विचार को भ्रष्ट करने या चोट पहुँचाने की संभावना हो।