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आपराधिक कानून
पैरोल का अनुदान
« »10-May-2024
सोनू सोनकर बनाम उपराज्यपाल, दिल्ली एवं अन्य "एक दोषी अपने लिव-इन पार्टनर के साथ वैवाहिक संबंध बनाए रखने के आधार पर पैरोल पाने का अधिकारी नहीं है, जब उसके पास पहले से ही विधिक रूप से विवाहित पत्नी और उस विवाह से पैदा हुए बच्चे हों”। न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा |
स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना है कि दोषी, अपने लिव-इन पार्टनर के साथ संतान पैदा करने या वैवाहिक संबंध बनाए रखने के आधार पर पैरोल पाने का अधिकारी नहीं है, जब उसके पास पहले से ही विधिक रूप से विवाहित पत्नी एवं उस विवाह से पैदा हुए बच्चे हैं।
- उपरोक्त टिप्पणी सोनू सोनकर बनाम उपराज्यपाल, दिल्ली एवं अन्य के मामले में की गई थी।
सोनू सोनकर बनाम उपराज्यपाल, दिल्ली एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में, याचिकाकर्त्ता, जो वर्तमान में दिल्ली की तिहाड़ कारावास में बंद है, को विद्वान विचारण न्यायालय द्वारा पारित 15 नवंबर 2011 के निर्णय के अंतर्गत भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 302/34 के अधीन दोषी ठहराया गया था तथा कठोर आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई और 5,000 रुपए का ज़ुर्माना अदा करने के को भी कहा गया।
- याचिकाकर्त्ता लगभग 02 वर्ष और 09 महीने की छूट को छोड़कर, लगभग 16 वर्ष 10 महीने तक न्यायिक अभिरक्षा में रहा है।
- उसका विवाह 10 जनवरी 2021 को सुश्री T से हुआ था तथा उनके विवाह को तीन वर्ष पूरे हो गए हैं।
- याचिकाकर्त्ता अपनी पत्नी सुश्री T के साथ विवाह संपन्न नहीं कर पाया है, क्योंकि याचिकाकर्त्ता न्यायिक अभिरक्षा में था।
- सुश्री T ने 02 जनवरी 2024 को कारावास अधिकारियों के समक्ष इसी आधार पर वर्तमान याचिकाकर्त्ता की पैरोल पर रिहाई के लिये आवेदन किया था।
- प्रतिवादी द्वारा दिनांक 05 मार्च 2024 को पारित आदेश, जिसके आधार पर याचिकाकर्त्ता की ओर से पैरोल की मांग करने वाला आवेदन खारिज कर दिया गया।
- इसके बाद, याचिकाकर्त्ता द्वारा 05 मार्च 2024 के आदेश को रद्द करने के लिये दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट याचिका दायर की गई थी।
- प्रतिवादी की ओर से तर्क दिया गया कि वर्तमान याचिका असत्य एवं तुच्छ आधार पर दायर की गई है, क्योंकि सुश्री T याचिकाकर्त्ता की पत्नी नहीं हैं। आगे कहा गया है कि स्थिति रिपोर्ट के अनुसार, याचिकाकर्त्ता पहले से ही एक सुश्री A से विवाहित है तथा उसके तीन बच्चे हैं।
- याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने इसे वर्तमान याचिकाकर्त्ता को पैरोल देने के लिये उपयुक्त मामला नहीं पाया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति स्वर्ण कांत शर्मा ने कहा कि दोषी अपने लिव-इन पार्टनर के साथ संतान पैदा करने या वैवाहिक संबंध बनाए रखने के आधार पर पैरोल पाने का अधिकारी नहीं है, जब उसके पास पहले से ही विधिक रूप से विवाहित पत्नी और उस विवाह से पैदा हुए बच्चे हैं।
- यह भी देखा गया कि बच्चा पैदा करने या लिव-इन पार्टनर के साथ वैवाहिक संबंध बनाए रखने के आधार पर पैरोल देना, जहाँ दोषी की पहले से ही विधिक रूप से विवाहित पत्नी है और उस विवाह से पैदा हुए बच्चे हैं, एक हानिकारक मिसाल कायम करेगा।
- आगे कहा गया कि भारत में विधि और दिल्ली कारागार नियम, 2018 वैवाहिक संबंधों को बनाए रखने के आधार पर पैरोल देने की अनुमति नहीं देते हैं, वह भी लिव-इन पार्टनर के साथ।
पैरोल के संबंध में विधिक प्रावधान क्या हैं?
भारत में पैरोल प्रणाली:
परिचय |
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उद्देश्य |
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प्रकार |
अभिरक्षा में पैरोल:
नियमित पैरोल:
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पैरोल विधि |
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पैरोल के लिये आवश्यक अर्हताएँ |
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प्रक्रिया |
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एक अधिकार के रूप में पैरोल
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पैरोल में कटौती |
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पैरोल और CrPC |
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निर्णयज विधियाँ:
- हरियाणा राज्य एवं अन्य बनाम मोहिंदर सिंह (2000) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने पैरोल और प्रावकाश के मध्य अंतर स्पष्ट किया, जो इस प्रकार हैं:
- पैरोल और प्रावकाश दोनों सशर्त रिहाई के रूप हैं।
- अल्पावधि अभिरक्षा में पैरोल दी जा सकती है, जबकि लंबी अवधि की अभिरक्षा में प्रावकाश की अनुमति है।
- पैरोल एक महीने तक चलती है, जबकि प्रावकाश अधिकतम 14 दिनों तक चलती है।
- पैरोल कई बार दी जा सकती है, जबकि प्रावकाश की एक सीमा होती है।
- भारत के चुनाव आयोग बनाम मुख्तार अंसारी (2017) के मामले में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने घोषणा की कि अभिरक्षा पैरोल का उपयोग ज़मानत के विकल्प के रूप में नहीं किया जा सकता है तथा इसे लंबे समय तक या दैनिक यात्राओं के लिये नहीं बढ़ाया जा सकता है।