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सांविधानिक विधि
विधि में पूर्वनिर्णय का महत्त्व
« »20-May-2024
करनैल सिंह बनाम हरियाणा राज्य एवं अन्य “इस न्यायालय की संविधान पीठ द्वारा निर्धारित विधि की अनदेखी करना तथा उसके बिल्कुल विपरीत दृष्टिकोण अपनाना एक भौतिक त्रुटि होगी, जो आदेश में स्पष्ट रूप से प्रकट होगी”। न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और संदीप मेहता |
स्रोत : उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि न्यायालय के निर्णय की अनदेखी करने से न्यायिक सुदृढ़ता क्षीण होगी।
- उच्चतम न्यायालय ने यह टिप्पणी करनैल सिंह बनाम हरियाणा राज्य एवं अन्य के मामले में दी।
करनैल सिंह बनाम हरियाणा राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- हरियाणा राज्य ने 11 फरवरी 1992 की एक राजपत्र अधिसूचना द्वारा हरियाणा ग्राम सामान्य भूमि (विनियमन) अधिनियम, 1961 की धारा 2 (g) में उप-खंड (6) सम्मिलित किया, जिसे 14 जनवरी 1992 को राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई।
- समीक्षा याचिकाकर्त्ता ने, अन्य भूस्वामियों के साथ, इस संशोधन को चुनौती देते हुए पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष कई रिट याचिकाएँ दायर कीं।
- उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने रिट याचिका को स्वीकार कर लिया।
- हरियाणा राज्य ने एक सिविल अपील में पूर्ण पीठ के निर्णय को उच्चतम न्यायालय के समक्ष चुनौती दी।
- उच्चतम न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 31A के कारण मामले को पुनर्विचार के लिये वापस उच्च न्यायालय में भेज दिया।
- उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने, 13 मार्च 2003 के निर्णय के अंतर्गत, याचिकाओं को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया तथा राजस्व अधिकारियों द्वारा की गई उत्परिवर्तन प्रविष्टियों के संबंध में कुछ निर्देश जारी किये।
- पूर्ण पीठ के निर्णय से व्यथित होकर, हरियाणा राज्य ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष सिविल अपील दायर की, जिसे उच्चतम न्यायालय के 7 अप्रैल 2022 के निर्णय द्वारा अनुमति दी गई।
- समीक्षा याचिकाकर्त्ता ने सुप्रीम कोर्ट के 7 अप्रैल 2022 के निर्णय के विरुद्ध वर्तमान समीक्षा याचिका दायर की।
- समीक्षा याचिकाकर्त्ता ने प्रस्तुत किया कि सुप्रीम कोर्ट का समीक्षाधीन निर्णय (JUR), संविधान पीठ के निर्णयों द्वारा निर्धारित विधि के विपरीत था।
- याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि JUR ने समेकन योजना के तहत भूमि के अधिकार और अधिकारों के संशोधन के संबंध में संविधान पीठ के निर्णयों द्वारा निर्धारित पूर्वनिर्णयों पर उचित प्रकार से विचार नहीं किया।
- JUR ने वर्षों से स्थापित उन पूर्वनिर्णयों को अनदेखा कर दिया जो दशकों से इस क्षेत्र में प्रयुक्त होते थे।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- SC ने अभिनिर्णीत किया की “इस न्यायालय की संविधान पीठ द्वारा निर्धारित विधियों की अनदेखी करना और उसके बिल्कुल विपरीत दृष्टिकोण रखना अपने आप में एक भौतिक त्रुटि होगी, जो आदेश में स्पष्ट रूप से प्रकट होगी”।
- न्यायालय ने समीक्षा याचिका स्वीकार कर ली।
भारत के संविधान, 1950 के अंतर्गत पूर्वनिर्णय का सिद्धांत क्या है?
- परिचय:
- पूर्वनिर्णय को अंग्रेज़ी विधिशास्त्र से भारतीय संविधान में अंगीकृत किया गया है।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 141 पूर्वनिर्णय के सिद्धांत से संबंधित है।
- अनुच्छेद 141 में कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घोषित विधि भारत के भौगोलिक क्षेत्र के अंतर्गत सभी न्यायालयों पर बाध्यकारी होगी।
- पूर्वनिर्णय का सिद्धांत न्यायालय के पूर्व निर्णयों को उनकी सुस्पष्ट सीमाओं के अंतर्गत पालन करने का सिद्धांत है।
- निर्णय का वह भाग जो निर्णयाधार (ratio decidendi) का गठन करता है, बाध्यकारी प्रभाव रखता है, न कि निर्णय का वह भाग जो निर्णय की इतरोक्ति (obiter dictum) होता है।
- निर्णय के तर्क को अनुपात निर्णय\निर्णयाधार कहा जाता है। विधि का यह सिद्धांत न केवल उस विशेष मामले पर लागू होता है, बल्कि उसके बाद के सभी समान मामलों पर भी लागू होता है।
- इतरोक्ति (Obiter dictum) एक विशेष मामले में मात्र न्यायिक राय है और इसका कोई सामान्य अनुप्रयोग नहीं है।
- बीर सिंह बनाम भारत संघ (2019) में, यह माना गया कि एक पूर्व निर्णीत मामला एक पूर्वनिर्णय है तथा विधि का एक समान मुद्दा उठने पर सभी संभावित मामलों के लिये एक बाध्यकारी पूर्वनिर्णय के रूप में कार्य करेगा।
- पूर्वनिर्णय के संबंध के संबंध में सामान्य सिद्धांत:
- उच्च न्यायालयों के निर्णय उनके अधीनस्थ न्यायालयों पर लागू होते हैं तथा वे उनका पालन करने के लिये बाध्य होते हैं।
- SC अपने स्वयं के निर्णयों से बाध्य नहीं है तथा यदि आवश्यक हो तो उन्हें उनसे अलग होने की स्वतंत्रता है।
- एक उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय दूसरे पर बाध्यकारी पूर्वनिर्णय नहीं होता है।
- उच्च न्यायालय या अन्य अधीनस्थ न्यायालयों के पास उच्चतम न्यायालय के निर्णयों को खारिज करने की शक्ति नहीं है।
- प्रक्रियात्मक अनियमितता एवं सारहीनता, किसी निर्णय की बाध्यकारी प्रकृति को अमान्य नहीं करती है।
- उच्चतम न्यायालय के एकपक्षीय निर्णय भी प्रकृति में बाध्यकारी होते हैं तथा इन्हें पूर्वनिर्णय के तौर पर प्रयोग किया जा सकता है।
- कम कोरम वाली वाली पीठ, बड़े कोरम के निर्णयों से असहमत नहीं हो सकती।
- प्रक्रियात्मक अनियमितता एवं सारहीनता किसी निर्णय की बाध्यकारी प्रकृति को अमान्य नहीं करती हैं।