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आपराधिक कानून

विचारण में विलंब के कारण कारावास

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 12-Jun-2024

अंकुर चौधरी बनाम मध्य प्रदेश राज्य

"विचारण में विलंब के कारण कारावास अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है, जो NDPS अधिनियम द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के बावजूद ज़मानत पर विचार करने की अनुमति देता है।"

न्यायमूर्ति जे. के. माहेश्वरी एवं के. वी. विश्वनाथन

स्रोत:  उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उच्चतम न्यायालय द्वारा अंकुर चौधरी बनाम मध्य प्रदेश राज्य के मामले में धारा 37 के कठोर मानदंडों को पूरा नहीं करने के बावजूद स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम 1985 (NDPS) के अधीन ज़मानत दिये जाने के मामले ने ध्यान आकर्षित किया है।

  • इसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि विचारण में अनावश्यक विलंब के कारण लंबे समय तक कारावास में रखना संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत मौलिक अधिकार का उल्लंघन है, इस प्रकार ऐसे मामलों में सशर्त स्वतंत्रता को सांविधिक प्रतिबंधों से ऊपर माना गया है।

राजीव बंसल एवं अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • राजीव बंसल (आरोपी) NDPS अधिनियम, 1985 की धारा 22 एवं 29 के साथ धारा 8 के अधीन आरोपों के कारण दो वर्ष से अधिक समय से अभिरक्षा में है।
  • आरोपियों ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत पाँच साक्षियों ने उनके आरोपों का समर्थन नहीं किया।
    • हालाँकि अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि ज़मानत नहीं दी जा सकती क्योंकि विवेचना अधिकारी से साक्षी के रूप में पूछताछ नहीं की गई थी।
  • न्यायालय ने साक्ष्य की समीक्षा की तथा पाया कि साक्षी अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं करते।
    • उन्होंने विवेचना अधिकारी को साक्षी मानने के विचार को भी खारिज कर दिया।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • न्यायालय ने यह मानते हुए ज़मानत स्वीकृत की कि विचारण में अनावश्यक विलंब के कारण लंबे समय तक कारावास संविधान के अनुच्छेद 21 के सार के विपरीत है, जो जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है।
  • न्यायालय ने कहा कि NDPS अधिनियम, 1985 की धारा 37, अनुचित तरीके से विचारण में विलंब होने पर ज़मानत देने से नहीं रोकती है।
    • अगर बिना किसी उचित कारण के विचारण में बहुत ज़्यादा समय लग जाता है, तो यह स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
    • ज़मानत की अनुमति विशेष शर्तों के अधीन दी जाती है, जैसे- नियमित रूप से विचारण में उपस्थित होना। इन शर्तों का पालन न करने पर ट्रायल कोर्ट द्वारा तय किये गए परिणाम हो सकते हैं।

NDPS अधिनियम क्या है?

  • स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ, 1985 अधिनियम (NDPS) 1985 में अधिनियमित एक भारतीय विधि है।
  • इसका उद्देश्य स्वापक औषधियों एवं मन:प्रभावी पदार्थों से संबंधित विधियों को समेकित और संशोधित करना तथा उनसे संबंधित संचालन के नियंत्रण एवं विनियमन के लिये कड़े प्रावधान करना है।
  • इस अधिनियम का उद्देश्य मादक दवाओं और मन:प्रभावी पदार्थों की अवैध तस्करी एवं दुरुपयोग से निपटना है।
  • यह ऐसे पदार्थों के कब्ज़े, बिक्री, निर्माण, खेती एवं परिवहन से संबंधित विभिन्न अपराधों, दण्ड और विवेचना तथा परीक्षण के लिये प्रक्रियाओं की रूपरेखा तैयार करता है।
  • NDPS अधिनियम में इसके प्रावधानों के कार्यान्वयन तथा नशे के अभ्यस्त लोगों के पुनर्वास के लिये उत्तरदायी प्राधिकरणों की स्थापना का भी प्रावधान है।

NDPS अधिनियम के अंतर्गत धारा 37 क्या है?

  • धारा 37 संज्ञेय एवं गैर-ज़मानती अपराधों से संबंधित है।
  • अपराधों की संज्ञेयता:
    • NDPS अधिनियम के अधीन दण्डनीय प्रत्येक अपराध संज्ञेय है, जिसका अर्थ है कि पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकती है और जाँच शुरू कर सकती है।
  • गैर-ज़मानती अपराध:
    • विशिष्ट धाराओं (जैसे- धारा 19, 24 एवं 27A) के अधीन अपराध या वाणिज्यिक मात्रा से जुड़े अपराध गैर-ज़मानती माने जाते हैं।
    • ऐसे अपराधों के आरोपी किसी भी व्यक्ति को ज़मानत या अपने स्वयं के बाॅण्ड पर रिहा नहीं किया जाएगा, जब तक कि कुछ शर्तें पूरी न हों।
  • ज़मानत देने की शर्तें:
    • लोक अभियोजक को ज़मानत आवेदन का विरोध करने का अवसर दिया जाना चाहिये।
    • यदि लोक अभियोजक ज़मानत आवेदन का विरोध करता है, तो न्यायालय को यह विश्वास करने के लिये संतुष्ट होना चाहिये कि आरोपी के अपराध का दोषी न होने तथा ज़मानत पर रहते हुए उसके द्वारा कोई अपराध करने की संभावना नहीं होने के विषय में विश्वास करने के लिये उचित आधार हैं।
  • ज़मानत पर अतिरिक्त सीमाएँ:
    • उपधारा (1) के खंड (ख) में निर्दिष्ट सीमाएँ दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 या ज़मानत देने के संबंध में किसी अन्य विधि के अधीन किसी भी सीमा के अतिरिक्त हैं।

क्या विचारण में विलंब के कारण लंबे समय तक कारावास भारतीय संविधान के अंतर्गत मौलिक अधिकार का उल्लंघन है?

  • विचारण के पूरा होने में विलंब के कारण लंबे समय तक कारावास वास्तव में भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन हो सकता है।
  • अनुच्छेद 21 जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है, जिसमें कहा गया है कि विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही किसी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित किया जाएगा।
  • त्वरित विचारण के बिना लंबे समय तक कारावास में रखने से अभियुक्त को अनावश्यक कठिनाई, व्यक्तिगत स्वतंत्रता की हानि तथा यहाँ तक ​​कि मनोवैज्ञानिक आघात भी हो सकता है।
  • उच्चतम न्यायालय ने लगातार माना है कि विचारण में विलंब के कारण लंबे समय तक कारावास की सज़ा अनुच्छेद 21 के अंतर्गत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।

इस मामले में कौन-से महत्त्वपूर्ण निर्णय दिये गए?

  • मोहम्मद मुस्लिम बनाम राज्य (NCT दिल्ली), (2023) तथा रबी प्रकाश बनाम ओडिशा राज्य (2023)
    • उच्चतम न्यायालय ने NDPS अधिनियम के अधीन अपराधों से संबंधित ज़मानत आवेदनों पर विचार किया।
    • न्यायालय ने स्थापित किया कि जब किसी अभियुक्त को लंबे समय तक कारावास का सामना करना पड़ता है, तो सशर्त स्वतंत्रता अधिनियम की धारा 37 में उल्लिखित सांविधिक प्रतिबंधों को पीछे छोड़ सकती है।
    • इससे तात्पर्य यह है कि यदि किसी विचारण में अनुचित विलंब होता है, तो यह स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम 1985 (NDPS) की धारा 37 के कड़े प्रावधानों के बावजूद, अभियुक्त को ज़मानत देने के लिये एक वैध आधार के रूप में काम कर सकता है।