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सिविल कानून

उच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियाँ

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 15-Apr-2024

विनीता जामवाल बनाम कर्नल (सेवानिवृत्त) विजय सिंह

“उच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति, किसी भी साक्षी को वापस बुलाने एवं स्पष्टीकरण प्राप्त करने के लिये CPC के आदेश XVIII नियम 17 के अधीन न्यायालय को प्रदत्त स्पष्ट शक्ति से प्रभावित नहीं होती है।”

न्यायमूर्ति जावेद इकबाल वानी

स्रोत: जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने माना है कि  CPC की धारा 151 के अधीन उच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति किसी भी साक्षी को वापस बुलाने एवं स्पष्टीकरण प्राप्त करने के लिये सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश XVIII नियम 17 के अधीन न्यायालय को प्रदत्त स्पष्ट शक्ति से प्रभावित नहीं होती है।

  • उपरोक्त टिप्पणी विनीता जामवाल बनाम कर्नल (सेवानिवृत्त) विजय सिंह के मामले में दी गई थी।

विनीता जामवाल बनाम कर्नल (सेवानिवृत्त) विजय सिंह, मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में ज़मीन पर कब्ज़े के लिये याचिकाकर्त्ता कर्नल (सेवानिवृत्त) दलबीर सिंह (मृतक) के विरुद्ध कर्नल (सेवानिवृत्त) विजय सिंह (प्रतिवादी) द्वारा दायर अनिवार्य निषेधाज्ञा का मुकदमा शामिल था।
  • विचारण न्यायालय ने मुद्दे तय किये तथा पक्षों को अपने-अपने साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिये कहा, जिसके बाद दोनों पक्षों ने अपने-अपने साक्षियों के हलफनामे दाखिल किये।
  • साक्ष्य के आदान-प्रदान के शुरुआती दौर के बाद, कर्नल दलबीर सिंह के विधिक उत्तराधिकारियों, विनीता जामवाल एवं पूर्णिमा पठानिया को रिकॉर्ड पर लाया गया। विचारण न्यायालय ने याचिकाकर्त्ताओं को नए साक्षियों के साथ नए हलफनामे दाखिल करने की अनुमति दी
  • इसके बाद याचिकाकर्त्ताओं ने साक्षी प्रस्तुत किये तथा अपना मुख्य परीक्षण पूरा किया
  • हालाँकि, नए साक्षियों को अनुमति देने के आदेश को चुनौती देने वाली उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित याचिका के कारण वादी कर्नल विजय सिंह ने उनसे प्रतिपरीक्षा नहीं की
  • उच्च न्यायालय द्वारा वादी की याचिका खारिज करने के बाद, उसने विचारण न्यायालय के समक्ष एक आवेदन दायर कर प्रतिवादियों के साक्षियों से प्रतिपरीक्षा करने की अनुमति मांगी।
  • विचारण न्यायालय ने आवेदन की अनुमति दे दी, जिसके बाद याचिकाकर्त्ताओं ने इस आदेश को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय में चुनौती दी।
  • उच्च न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति जावेद इकबाल वानी ने कहा कि CPC के आदेश XVIII नियम 17 के अधीन कठोरता, आगे की जाँच या प्रतिपरीक्षा या उत्पादन के लिये साक्ष्य को फिर से परिक्षण करने के लिये,आवश्यक आदेश पारित करने के लिये, उच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति को प्रभावित नहीं करेगी। नए साक्ष्य न्यायालय को विचारण के किसी भी चरण में साक्ष्य बंद होने के बाद भी शक्ति का प्रयोग करने के लिये अधिकृत करते हैं।

इसमें कौन-से प्रासंगिक विधिक प्रावधान शामिल हैं?

CPC की धारा 151

परिचय:

  • यह धारा, न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियों के संरक्षण से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि, इस संहिता में कुछ भी ऐसे आदेश देने के लिये न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति को सीमित या अन्यथा प्रभावित करने वाला नहीं माना जाएगा, जो न्याय के लिये या न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिये आवश्यक हो सकता है।
  • यह धारा पक्षकारों को कोई ठोस अधिकार प्रदान नहीं करती है, बल्कि इसका उद्देश्य प्रक्रिया के नियमों से उत्पन्न होने वाली कठिनाइयों को दूर करना है।

निर्णयज विधि:

  • राम चंद बनाम कन्हैयालाल (1966) में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि CPC की धारा 151 के अधीन अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिये भी किया जा सकता है।

CPC का आदेश XVIII, नियम 17

  • CPCका आदेश XVIII मुकदमे की सुनवाई एवं साक्षियों की परीक्षा से संबंधित है।
  • CPC के आदेश XVIII का नियम 17 न्यायालय द्वारा साक्षियों को वापस बुलाने एवं उनकी जाँच करने से संबंधित है।
  • नियम 17 में कहा गया है कि न्यायालय मुकदमे के किसी भी चरण में किसी भी साक्षी को वापस बुला सकती है, जिसकी जाँच की जा चुकी है और (उस समय लागू साक्ष्य विधि के अधीन) उससे ऐसे प्रश्न पूछ सकती है जो न्यायालय उचित समझे।