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पारिवारिक कानून
अंतरिम भरण-पोषण का आदेश
« »22-Mar-2024
एस. मेनका बनाम के.एस.के. नेपोलियन सोक्रेटीज़ “हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 के तहत पारित अंतरिम भरण-पोषण के आदेश, प्रकृति में अंतरिम हैं”। न्यायमूर्ति एम. सुंदर और गोविंदराजन थिलाकावाड़ी |
स्रोत: मद्रास उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, एस. मेनका बनाम के.एस.के. नेपोलियन सोक्रेटीज़ के मामले में मद्रास उच्च न्यायालय ने माना है कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 24 के तहत पारित अंतरिम भरण-पोषण के आदेश, प्रकृति में अंतरिम हैं और इनकी केवल समीक्षा की जा सकती है, अपील नहीं।
एस. मेनका बनाम के.एस.के. नेपोलियन सोक्रेटीज़ मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई करने के दौरान यह प्रश्न उठा कि क्या कुटुंब न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 19 के तहत वैधानिक अपीलें "अंतर्वर्ती आदेश नहीं होने" (कुटुंब न्यायालय अधिनियम 1984 की धारा 19 की उपधारा (1) के अनुसार) की अभिव्यक्ति के कारण पारित आदेश के विरुद्ध प्रभावी रखने योग्य हैं।
- यह प्रश्न एक अन्य प्रश्न से संबंधित था कि क्या HMA की धारा 28 के तहत एक वैधानिक अपील HMA की धारा 24 के तहत किये गए अंतरिम भरण-पोषण/लंबित भरण-पोषण के आदेश के विरुद्ध होगी।
- उच्च न्यायालय ने पक्षकारों को इसे वापस लेने की मांग करने और अंतरिम भरण-पोषण के आदेशों के विरुद्ध पहले से लंबित अपीलों के संबंध में पुनरीक्षण याचिका दायर करने की स्वतंत्रता दी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति एम. सुंदर और न्यायमूर्ति गोविंदराजन थिलाकावाडी की पीठ ने कहा कि HMA की धारा 24 के तहत पारित अंतरिम भरण-पोषण के आदेश केवल अंतरिम आदेश हैं तथा इस प्रकार ऐसे आदेशों के विरुद्ध अपील न तो HMA की धारा 28 के तहत और न ही कुटुंब न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 19 के तहत की जा सकती है।
- न्यायालय ने आगे कहा कि अंतरिम भरण-पोषण के आदेश के विरुद्ध पुनर्विलोकन भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 227 के तहत बनाए रखने योग्य है, भले ही यह नियमित सिविल न्यायालय या कुटुंब न्यायालय द्वारा किया गया हो।
इसमें कौन-से प्रासंगिक विधिक प्रावधान शामिल हैं?
HMA की धारा 24:
- यह धारा वाद लंबित रहने के दौरान भरण-पोषण और कार्यवाहियों के व्यय से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि -
- जहाँ कि इस अधिनियम के अधीन के होने वाली किसी कार्यवाही में न्यायालय को यह प्रतीत हो कि, यथास्थिति, पति या पत्नी की ऐसी कोई स्वतंत्र आय नहीं है जो उसके संभाल और कार्यवाही के आवश्यक व्ययों के लिये पर्याप्त हो वहाँ वह पति या पत्नी के आवेदन पर प्रत्यर्थी को यह आदेश दे सकेगा कि वह अर्ज़ीदार को कार्यवाही में होने वाले व्यय तथा कार्यवाही के दौरान में प्रतिमास ऐसी दशा संदत्त करे जो अर्ज़ीदार की अपनी आय तथा प्रत्यर्थी की आय को देखते हुए न्यायालय को युक्तियुक्त प्रतीत हो।
- परंतु कार्यवाही का व्यय और कार्यवाही के दौरान की ऐसी मासिक राशि के भुगतान के लिये, के आवेदन को, यथासंभव पत्नी या पति जैसी स्थिति हो पर नोटिस की तामील से साठ दिनों में निपटाएँगे।
HMA की धारा 28:
यह डिक्रियों और आदेशों की अपीलों से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि -
- (1) इस अधिनियम के अधीन किसी कार्यवाही में न्यायलय द्वारा दी गई सभी डिक्रियाँ, उपधारा (3) के उपबंधों के अधीन रहते हुए उसी प्रकार अपीलनीय होंगी जैसे न्यायालय द्वारा अपनी आरंभिक सिविल अधिकारिता के प्रयोग में दी गई डिक्री अपीलनीय होती है और ऐसी हर अपील उस न्यायालय में होगी, जिसमें उस न्यायालय द्वारा अपनी आरंभिक सिविल अधिकारिता के प्रयोग में किये गए विनिश्चयों की अपीलें सामान्यतः होती है।
- (2) धारा 25 या धारा 26 के अधीन किसी कार्यवाही में न्यायालय द्वारा किये गए आदेश, उपधारा
- (3) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, तभी अपीलनीय होंगे जब वे अंतरिम आदेश न हों और ऐसी हर अपील उस न्यायालय में होगी,जिसमें उस न्यायालय द्वारा अपनी आरंभिक सिविल अधिकारिता के प्रयोग में किये गए विनिश्चयों की अपीलें सामान्यतः होती है।
- (3) केवल खर्चे के विषय में कोई अपील इस धारा के अधीन नहीं होगी।
- (4) इस धारा के अधीन हर अपील डिक्री या आदेश की तारीख से नब्बे दिन की समयावधि के भीतर की जाएगी।
कुटुंब न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 19:
यह धारा अपील से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-
(1) अपील-(1) उपधारा (2) में जैसा उपबंधित है उसके सिवाय और सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 में या दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 में या किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, किसी कुटुंब न्यायालय के प्रत्येक निर्णय या आदेश की, जो अंतर्वर्ती आदेश नहीं है, अपील उच्च न्यायालय में तथ्यों और विधि, दोनों के संबंध में होगी।
(2) कुटुंब न्यायालय द्वारा पक्षकारों की सहमति से पारित 'किसी डिक्री या आदेश की या दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अध्याय 9 के अधीन पारित किसी आदेश की कोई अपील नहीं होगी :
परंतु इस उपधारा की कोई बात कुटुंब न्यायालय (संशोधन) अधिनियम, 1991 के प्रारंभ के पूर्व किसी उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित किसी अपील या दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अध्याय 9 के अधीन पारित किसी आदेश को लागू नहीं होगी।
(3) इस धारा के अधीन प्रत्येक अपील, किसी पारिवारिक न्यायालय के निर्णय या आदेश की तारीख से तीस दिन की अवधि के भीतर की जाएगी।
(4) उच्च न्यायालय, स्वप्रेरणा से या अन्यथा, ऐसी किसी कार्यवाही का, जिसमें उसकी अधिकारिता के भीतर स्थित कुटुंब न्यायालय ने दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अध्याय 9 के अधीन कोई आदेश पारित किया है, अभिलेख, उस आदेश को, जो अंतर्वर्ती आदेश न हो, तथ्यता, वैधता या औचित्य के बारे में और ऐसी कार्यवाही की नियमितता के बारे में अपना समाधान करने के प्रयोजन के लिये मंगा सकता है और उसकी परीक्षा कर सकता है।
(5)] जैसा ऊपर कहा गया है उसके सिवाय, किसी कुटुंब न्यायालय के किसी निर्णय, आदेश या डिक्री की किसी न्यायालय में कोई अपील या पुनरीक्षण नहीं होगा।