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व्यवहार विधि

मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 9(1) के तहत अंतरिम संरक्षण

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 05-Oct-2023

AMR JV बनाम उड़ीसा स्टील एक्सप्रेसवे प्राइवेट लिमिटेड

"ऐसा पक्ष जो न्यायालय के तत्काल हस्तक्षेप की मांग करता है, उसे क़ानून की किसी भी बेड़ी से नहीं बांधा जा सकता है।"

न्यायाधीश मौसमी भट्टाचार्य

स्रोत: कलकत्ता उच्च न्यायालय (एपी/863/2022)

चर्चा में क्यों?

न्यायाधीश मौसमी भट्टाचार्य ने कहा कि जो पक्ष न्यायालय के तत्काल हस्तक्षेप की मांग करता है, उसे क़ानून की किसी भी बेड़ी से नहीं बांधा जा सकता है।

  • कलकत्ता उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी एएमआर जेवी बनाम उड़ीसा स्टील एक्सप्रेसवे प्राइवेट लिमिटेड के मामले में दी।

एएमआर जेवी बनाम उड़ीसा स्टील एक्सप्रेसवे प्राइवेट लिमिटेड मामले की पृष्ठभूमि

  • याचिकाकर्त्ता का आवेदन मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (Arbitration & Conciliation Act, 1996 (A&C) की धारा 9(1) के तहत अंतरिम संरक्षण और मध्यस्थ की नियुक्ति के लिये प्रस्तुत किया गया था।
  • याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि प्रतिवादी के साथ एक अनुबंध किया गया था, जिसमें उन्होंने अपना दायित्व निभाया, हालाँकि प्रतिवादी ने अनुबंध की शर्तों का मौलिक उल्लंघन किया।
  • और प्रतिवादी के कृत्य के कारण याचिकाकर्त्ता को नुकसान का सामना करना पड़ा।
  • इसमें पहले से ही एक मध्यस्थता कार्यवाही चल रही थी जिसमें प्रतिवादी को लगभग 322 करोड़ रुपये का पंचाट दिया गया था।
  • याचिकाकर्त्ता ने प्रतिवादियों के खिलाफ शेष राशि के दावे के लिये यह आवेदन प्रस्तुत किया, जिसकी राशि लगभग 76 करोड़ रुपये थी और इसलिये प्रतिवादी पर उस राशि को वापस लेने के लिये अंतरिम रोक लगाने की प्रार्थना की, जो उसे पूर्व मध्यस्थ कार्यवाही में की गई थी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

  • कलकत्ता उच्च न्यायालय ने कहा, कि यदि न्यायालय याचिकाकर्त्ता के लिये जानबूझकर विलंब करता है, तो प्रतिवादी निर्वासित हो सकता है और संरक्षित करने के आशय से जा सकता है।
  • यह मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 9(1) के तहत समय पर, प्रभावी और केंद्रित अंतरिम अनुतोष के संपूर्ण उद्देश्य के प्रति प्रतिषेधित होगा।

मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 9(1) के तहत अंतरिम संरक्षण

  • परिचय:
    • धारा 9 न्यायालय को मध्यस्थ कार्यवाही के दौरान या मध्यस्थ पंचाट प्रस्तुत करने के बाद किसी भी समय इसे लागू करने से पहले अंतरिम अनुतोष देने का अधिकार प्रदान करता है।
  • उद्देश्य:
    • यह सुनिश्चित करना है कि मध्यस्थता प्रक्रिया की प्रभावशीलता कम न हो, और मध्यस्थता का उद्देश्य विफल न हो।
    • धारा 9 के तहत, एक पक्ष अपने अधिकारों या संपत्तियों की सुरक्षा के लिये निषेधाज्ञा, संपत्ति के संरक्षण, या किसी अन्य आवश्यक आदेश जैसे अंतरिम उपायों की मांग के लिये न्यायालय से संपर्क कर सकता है।
    • न्यायालय के पास विवाद की तात्कालिकता और प्रकृति को ध्यान में रखते हुए ऐसे अंतरिम उपाय करने का अधिकार है।
    • यह प्रावधान न केवल मध्यस्थता प्रक्रिया की प्रभावकारिता को बढ़ाता है बल्कि उन पक्षों के लिये एक सुरक्षा कवच भी प्रदान करता है, जिन्हें तत्काल अनुतोष नहीं मिलने पर अपूरणीय क्षति का सामना करना पड़ सकता है।
  • परिसीमन:
    • जहाँ मध्यस्थता कार्यवाही शुरू होने से पहले एक न्यायालय सुरक्षा के किसी अंतरिम उपाय के लिये एक आदेश पारित करता है तो मध्यस्थता कार्यवाही ऐसे आदेश की तारीख से नब्बे दिनों की अवधि के भीतर या न्यायालय द्वारा निर्धारित अतिरिक्त समय के भीतर शुरू की जाएगी।

इस मामले में शामिल कानूनी प्रावधान

न्यायालय द्वारा अंतरिम उपाय, यदि-कोई पक्षकार, माध्यस्थम् कार्यवाहियों के पूर्व या उनके दौरान या माध्यस्थम् पंचाट किये जाने के पश्चात् किसी समय किंतु इससे पूर्व कि वह धारा 36 के अनुसार प्रवृत्त किया जाता है, तब किसी न्यायालय को-

(i) माध्यस्थम् कार्यवाहियों के प्रयोजनों के लिये किसी अप्राप्तवय या विकृतचित्त व्यक्ति के लिये संरक्षक की नियुक्ति के लिये; या

(ii) निम्नलिखित विषयों में से किसी के संबंध में संरक्षण के किसी अंतरिम अध्युपाय के लिये, अर्थात्:-

(क) किसी माल का, जो माध्यस्थम् करार की विषय-वस्तु है, परिरक्षण, अंतरिम अभिरक्षा या विक्रय;

(ख) माध्यस्थम् में विवादग्रस्त रकम सुरक्षित करने;

(ग) किसी संपत्ति या वस्तु का, जो माध्यस्थम् में विषय-वस्तु या विवाद है या जिसके बारे में कोई प्रश्न उसमें उद्भूत हो सकता है, निरोध, परिरक्षण या निरीक्षण और पूर्वोक्त प्रयोजनों में से किसी के लिये किसी पक्षकार के कब्ज़े में किसी भूमि पर या भवन में किसी व्यक्ति को प्रवेश करने देने के लिये प्राधिकृत करने, या कोई ऐसा नमूना लेने हेतु या कोई ऐसा संप्रेक्षण या प्रयोग कराए जाने के लिये जो पूर्ण जानकारी या साक्ष्य प्राप्त करने के प्रयोजन के लिये आवश्यक या समीचीन हो, प्राधिकृत करने;

(घ) अंतरिम व्यादेश या किसी प्रापक की नियुक्ति करने;

(ङ) संरक्षण का ऐसा अन्य अंतरिम उपाय करने के लिये जो न्यायालय को न्यायोचित और सुविधाजनक प्रतीत हो, आवेदन कर सकेगा,

और न्यायालय को आदेश करने की वही शक्तियाँ होंगी, जो अपने समक्ष किसी कार्यवाही के प्रयोजन के लिये और उसके संबंध में उसे हैं ।