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सांविधानिक विधि
उच्चतम न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 131 की व्याख्या
« »15-Jul-2024
पश्चिम बंगाल राज्य बनाम भारत संघ “हमारे विचार में, CBI एक अंग या निकाय है जो DSPE अधिनियम द्वारा अधिनियमित वैधानिक योजना के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा स्थापित और उसके अधीक्षण के अधीन है”। न्यायमूर्ति बी. आर. गवई |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पश्चिम बंगाल राज्य बनाम भारत संघ के मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना है कि वर्तमान मामले से निपटने के लिये उच्चतम न्यायालय को मूल क्षेत्राधिकार प्राप्त होगा और राज्य द्वारा दायर वाद संविधान के अनुच्छेद 131 के अंतर्गत स्वीकार्य है।
पश्चिम बंगाल राज्य बनाम भारत संघ मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में, राज्य (वादी) ने भारत संघ (प्रतिवादी) के विरुद्ध वाद दायर किया।
- वादी ने तर्क दिया कि उसकी सहमति का निरसन होने के उपरांत भी केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 के अंतर्गत प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करना जारी रखा।
- वादी ने प्रतिवादी के इस कृत्य को संवैधानिक अतिक्रमण बताया।
- प्रतिवादी ने वाद की स्थिरता पर प्रतिवाद किया।
- इसने तर्क दिया कि CBI को भारत सरकार के समकक्ष नहीं माना जा सकता।
- यह भी तर्क दिया गया कि इस मामले में एक विशेष अनुमति याचिका (SLP) भी लंबित है, अतः इस मामले को अनुच्छेद 131 के अंतर्गत जारी नहीं रखा जा सकता।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की एकल पीठ ने कहा कि यह तर्क कि CBI की तुलना भारत सरकार से नहीं की जा सकती, आधारहीन है।
- उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम की धारा 3 और धारा 5 का उल्लेख किया, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि CBI, सरकार की देख-रेख में काम करती है।
- आगे यह माना गया कि भले ही कोई वाद अनुच्छेद 136, अनुच्छेद 32 या अनुच्छेद 226 के अंतर्गत लंबित हो, उच्चतम न्यायालय को अनुच्छेद 131 के अंतर्गत किये गए आवेदनों को “इस संविधान के प्रावधानों के अधीन” के रूप में अनुच्छेद 131 के आधार पर स्वीकार करने का क्षेत्राधिकार है।
- उक्त प्रावधान के अनुसार उच्चतम न्यायालय को मूल क्षेत्राधिकार प्राप्त होगा।
- उच्चतम न्यायालय को ऐसे मामलों से निपटने का विशेष अधिकार प्राप्त है जहाँ विवाद का विषय, विधिक अधिकारों की सीमा पर निर्भर करता है।
पश्चिम बंगाल राज्य बनाम भारत संघ के मामले में "इस संविधान के प्रावधानों के अधीन" की व्याख्या:
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 131 क्या है?
- इसमें उच्चतम न्यायालय के मूल क्षेत्राधिकार से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख किया गया है:
- इस संविधान के प्रावधानों के अधीन, उच्चतम न्यायालय को, किसी अन्य न्यायालय के बहिष्करण के बिना, किसी भी विवाद में मूल क्षेत्राधिकार प्राप्त होगा-
- भारत सरकार और एक या एक से अधिक राज्यों के बीच
- एक तरफ भारत सरकार और किसी राज्य या राज्यों के बीच तथा दूसरी ओर एक या एक से अधिक अन्य राज्यों के बीच या
- दो या अधिक राज्यों के बीच, यदि विवाद में कोई प्रश्न (चाहे विधि का हो या तथ्य का) सम्मिलित हो, जिस पर विधिक अधिकार का अस्तित्व या सीमा निर्भर करती हो।
- परंतु उक्त क्षेत्राधिकार का विस्तार किसी संधि, करार, प्रसंविदा, वचनबद्धता, नामित या अन्य समरूप लिखत से उत्पन्न विवाद पर नहीं होगा, जो इस संविधान के प्रारंभ से पूर्व की गई थी या निष्पादित की गई थी तथा संविधान लागू होने के पश्चात् भी प्रवर्तन में बनी रहती है, या जो यह उपबंध करती है कि उक्त क्षेत्राधिकार का विस्तार ऐसे विवाद पर नहीं होगा।
- इस संविधान के प्रावधानों के अधीन, उच्चतम न्यायालय को, किसी अन्य न्यायालय के बहिष्करण के बिना, किसी भी विवाद में मूल क्षेत्राधिकार प्राप्त होगा-
निर्णयज विधियाँ:
- साउथ इंडिया कॉर्पोरेशन (P) लिमिटेड बनाम सचिव, राजस्व बोर्ड, त्रिवेंद्रम और अन्य (1963):
- यह मामला अनुच्छेद 372 (मौजूदा विधानों का लागू रहना और उनका अनुकूलन) पर आधारित था।
- न्यायालय ने कहा कि इन शब्दों की तर्कसंगत व्याख्या की जानी चाहिये जो संविधान निर्माताओं के आशय को प्रतिबिंबित करे।
- भारत संघ एवं अन्य बनाम तुलसीराम पटेल (1985):
- यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 309 (संघ या राज्य की सेवा करने वाले व्यक्तियों की भर्ती और सेवा की शर्तें) पर आधारित था, जिसमें कहा गया है कि किसी भी सक्षम व्यक्ति की भर्ती को विनियमित करने वाले नियम बनाने के लिये निर्देशित किया जा सकता है और सेवा की शर्तें ऐसे नियमों को "इस संविधान के प्रावधानों के अधीन" बनाया जाना चाहिये, यदि उन्हें वैध होना है।
- राजस्थान राज्य एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य (1977):
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 131 विधिक अधिकार के अस्तित्व या सीमा के आधार पर विवादों को सुलझाने के लिये एक मंच प्रदान करता है।