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आपराधिक कानून

अभियुक्त की किशोरता

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 16-Jan-2024

श्रीशैल बनाम कर्नाटक राज्य

एक बालक, चाहे अपराधी हो या नहीं, एक बालक है और उसके साथ एक बालक के रूप में व्यवहार किया जाना चाहिये।

न्यायमूर्ति सी. एम. जोशी

स्रोत: कर्नाटक उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, श्रीशैल बनाम कर्नाटक राज्य के मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने माना है कि एक बालक, चाहे अपराधी हो या नहीं, एक बालक है और उसके साथ एक बालक के रूप में व्यवहार किया जाना चाहिये।

  • न्यायालय ने किसी अभियुक्त की किशोरता सुनिश्चित करने के लिये दिशानिर्देश भी जारी किये।

श्रीशैल बनाम कर्नाटक राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में, किशोर अभियुक्त ने पीड़ित अवयस्क लड़की के घर में घुसकर उसके परिवार की अनुपस्थिति में उसके साथ यौन संबंध बनाA थे।
  • किशोर अभियुक्त द्वारा पीड़िता पर किये गA अपराध की जानकारी होने पर पीड़िता के माता-पिता ने शिकायत दर्ज कराई।
  • विशेष न्यायालय ने किशोर को लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) की धारा 6 के प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया।
  • इसके बाद उच्च न्यायालय में अपील दायर की गई।
  • न्यायालय ने अपील की अनुमति दी क्योंकि किशोर अभियुक्त 3 वर्ष और 3 महीने से अधिक समय से हिरासत में था, जबकि किशोर न्याय (बालकों की देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 (JJ अधिनियम) के तहत विशेष घरों में अधिकतम हिरासत की अनुमति 3 वर्ष थी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति सी. एम. जोशी ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि किसी आपराधिक मामले में अपराध चरण के दौरान पहली बार पेश किये जाने पर मजिस्ट्रेट या विशेष न्यायलय को अभियुक्त से कुछ प्रारंभिक पूछताछ करनी होती है। ये पूछताछ केवल औपचारिकताएँ नहीं होती हैं, बल्कि किसी अभियुक्त के किशोर होने, मानसिक रूप से स्वस्थ होने और कानून की आवश्यकताओं को पूरा करने का पता लगाने में इनका प्रमुख महत्त्व होता है। एक बालक, चाहे अपराधी हो या नहीं, एक बालक है और उसके साथ एक बालक की तरह ही व्यवहार किया जाना चाहिये।
  • न्यायालय ने किसी अभियुक्त की किशोरता सुनिश्चित करने के लिये निम्नलिखित दिशानिर्देश भी जारी किये।
    • विशेष न्यायालय के संबंधित मजिस्ट्रेट/पीठासीन अधिकारी को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि अभियुक्त अवयस्क नहीं है।
    • जब भी 18 से 22 वर्ष की उम्र के किसी अभियुक्त को पेश किया जाता है, तो जाँच अधिकारी (IO) या अभियुक्त को उसकी उम्र का दस्तावेज़ी सबूत पेश करने का निर्देश दिया जा सकता है।
    • अभियुक्त की पहली पेशी के समय, उम्र से संबंधित मौखिक पूछताछ, पुलिस द्वारा दुर्व्यवहार के अलावा, अभियुक्त के परिवार के सदस्यों को सूचना, गिरफ्तारी का कारण, गिरफ्तारी का स्थान, और बीमारियाँ, यदि कोई हों, को रिमांड के क्रम में दर्ज किया जाएगा।
    • अभियुक्त की किशोरावस्था का शीघ्र पता लगाना बालक को सुधारने में बहुत महत्त्वपूर्ण होगा।

इसमें कौन-से प्रासंगिक कानूनी प्रावधान शामिल हैं?

POCSO अधिनियम, 2012:

  • यह अधिनियम वर्ष 2012 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के तहत पारित किया गया था।
    • यह बालकों को यौन उत्पीड़न, लैंगिक उत्पीड़न और अश्लील साहित्य सहित अपराधों से बचाने के लिये बनाया गया एक व्यापक कानून है।
  • यह एक लिंग-तटस्थ अधिनियम है और बालक के कल्याण को सर्वोपरि महत्त्व का विषय मानता है।
    • यह ऐसे अपराधों और संबंधित मामलों तथा घटनाओं की सुनवाई के लिये विशेष न्यायालयों की स्थापना का प्रावधान करता है।
  • POCSO संशोधन अधिनियम, 2019 द्वारा इस अधिनियम में प्रवेशन यौन उत्पीड़न और गंभीर प्रवेशन यौन उत्पीड़न के अपराधों के लिये सज़ा के रूप में मृत्युदंड की शुरुआत की गई थी।
  • POCSO अधिनियम की धारा 2(1)(d) के तहत, 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति को बालक माना जाता है।
  • धारा 6 गंभीर प्रवेशन यौन हमले के लिये सज़ा से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-
    (1) जो कोई, गंभीर प्रवेशन लैंगिक हमला करेगा वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि बीस वर्ष से कम नहीं होगी, किंतु जो आजीवन कारावास, जिसका अभिप्राय उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिये कारावास होगा, तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और ज़ुर्माने का भी दाई होगा या मृत्यु से भी दंडित किया जाएगा।
    (2) उपधारा (1) के अधीन अधिरोपित ज़ुर्माना न्यायोचित व युक्तियुक्त होगा तथा उसका संदाय, पीड़ित के चिकित्सा व्ययों की पूर्ति और पुनर्वास के लिये ऐसे पीड़ित को किया जाएगा।

किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015:

  • किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015, 15 जनवरी, 2016 को लागू हुआ।
    • इसने किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2000 को निरस्त कर दिया।
  • यह अधिनियम 11 दिसंबर, 1992 को भारत द्वारा अनुसमर्थित बालकों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के उद्देश्यों को प्राप्त करना चाहता है।
    • यह कानून का उल्लंघन करने वाले बालकों के मामलों में 58+ प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों को निर्दिष्ट करता है।
  • यह मौजूदा अधिनियम में चुनौतियों का समाधान करना चाहता है जैसे दत्तक ग्रहण की प्रक्रियाओं में देरी, मामलों की उच्च लंबितता, संस्थानों की जवाबदेही इत्यादि।
  • यह अधिनियम कानून का उल्लंघन करने वाले 16-18 आयु वर्ग के बालकों को संबोधित करने का प्रयास करता है, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में उनके द्वारा किये गए अपराधों की बढ़ती घटनाओं की सूचना मिली है।
  • किशोर न्याय (देखरेख एवं संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2021 के अनुसार, बालकों के खिलाफ अपराध जो JJ अधिनियम, 2015 के अध्याय "बालकों के खिलाफ अन्य अपराध" में उल्लिखित हैं और जो तीन से सात वर्ष के बीच कारावास की अनुमति देते हैं, उन्हें गैर-संज्ञेय माना जाएगा।
  • इस अधिनियम की धारा (35) के अनुसार, किशोर का अर्थ अठारह वर्ष से कम आयु का बालक है।