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सांविधानिक विधि
बोन ऑसिफिकेशन टेस्ट की वैधता
« »23-Nov-2023
पवन कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2021): "बोन ऑसिफिकेशन टेस्ट पर आधारित चिकित्सकीय राय पूरी तरह सटीक नहीं है।" न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और सुधांशु धूलिया। |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और सुधांशु धूलिया ने धारा 302/34 भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) के तहत हत्या और हत्या जैसे इरादे के लिये दोषी ठहराए गए अभियुक्त की किशोरावस्था को देखते हुए उसे हमले एवं हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई।
- उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय पवन कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2021) मामले में दिया।
पवन कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- इस मामले में चार अभियुक्त थे, आरोपी (A1), A2, A3 और A4।
- मुकदमे के दौरान A4 की मृत्यु हो गई और उसका मामला समाप्त हो गया तथा शेष तीन को दोषी ठहराया गया।
- उक्त दोषसिद्धि को इलाहाबाद उच्च न्यायालय (लखनऊ खंडपीठ) द्वारा बरकरार रखा गया है।
- इस बीच, जहाँ तक A1 व A2 का सवाल है, जो क्रमशः वर्तमान अपीलकर्ता (A3) के पिता और भाई हैं, उन्हें राज्य की छूट नीति के तहत 19 वर्ष से अधिक समय तक जेल में रहने के बाद समय से पूर्व रिहा कर दिया गया था।
- परिणामस्वरूप, उन्होंने इस न्यायालय के समक्ष कोई याचिका दायर नहीं की।
- A3 ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष कथित अपराध के समय किशोर होने का दावा किया है, उसकी याचिका ट्रायल कोर्ट और उच्च न्यायालय ने खारिज़ कर दी थी क्योंकि ज़िला अस्पताल, बाराबंकी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी की देखरेख में एक बोन ऑसिफिकेशन टेस्ट आयोजित किया गया था, जहाँ अपीलकर्ता की उम्र लगभग 19 वर्ष दर्ज की गई थी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि "यह भी ध्यान में रखना चाहिये कि 'बोन ऑसिफिकेशन टेस्ट' पर आधारित चिकित्सकीय राय पूरी तरह सटीक नहीं है।"
- उच्चतम न्यायालय ने किशोरावस्था के प्रश्न पर अपील को यह कहते हुए आंशिक रूप से स्वीकार किया कि यदि किशोरावस्था निर्धारित नहीं हो पाती है तो उसकी उम्र को 1 वर्ष कम किया जा सकता है।
बोन ऑसिफिकेशन टेस्ट क्या है?
- बोन ऑसिफिकेशन या अस्थिजनन, अस्थि निर्माण की प्रक्रिया है। अस्थि आयु की गणना ऑसिफिकेशन टेस्ट के माध्यम से की जाती है, जो जन्म और पच्चीस वर्ष की आयु के बीच मानव शरीर में जोड़ों के संलयन पर आधारित अनुमान है, हालाँकि यह वैयक्तिक आधार पर थोड़ा भिन्न होता है।
- किसी विशेष मामले में घटना की तिथि पर अभियुक्त या पीड़ित की आयु का पता लगाने के लिये बोन ऑसिफिकेशन टेस्ट किया जाता है। यह परीक्षण किशोरों से जुड़े मामलों में प्रासंगिक हो जाता है क्योंकि इसमें उन बच्चों के संबंध में विशेष प्रावधान बनाए गए हैं जो कानून का उल्लंघन कर रहे हैं और साथ ही ऐसे बच्चे जिन्हें सुरक्षा एवं देखभाल की आवश्यकता है ये प्रावधान हैं: किशोर न्याय अधिनियम (बच्चों की देखभाल और संरक्षण अधिनियम), 2015 तथा 'जेजे अधिनियम 2015'।
- प्रासंगिक मामला: विनोद कटारा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2022): बोन ऑसिफिकेशन टेस्ट कोई सटीक विज्ञान नहीं है जो हमें व्यक्ति की सटीक उम्र बता सके।