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सांविधानिक विधि

लिविंग विल

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 03-Jun-2024

लिविंग विल

हम सभी अपने जीवन जीने में अत्यधिक व्यस्त हैं और इससे हमें जीवन के अंत के मुद्दे पर विचार करने के लिये बिल्कुल भी समय नहीं मिलता, जोकि अपरिहार्य है तथा जिसके लिये हमें कुछ समय पहले से तैयारी शुरू कर देनी चाहिये”।

न्यायमूर्ति एम. एस. सोनक

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?    

गोवा में बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एम. एस. सोनक, भारतीय चिकित्सा संघ (IMA), गोवा शाखा द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान 'लिविंग विल' पंजीकृत करने वाले राज्य के प्रथम व्यक्ति बन गए।

इस समाचार की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • यह कार्य भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा वर्ष 2018 में निष्क्रिय इच्छामृत्यु एवं अग्रिम निर्देशों को मान्यता दिये जाने के बाद किया गया है, जिसके अधीन वर्ष 2023 में दिशा-निर्देशों को सरल बनाया गया।
  • गोवा ने इन नियमों को लागू किया, जिसके अधीन वसीयत को नोटरी या राजपत्रित अधिकारी द्वारा सत्यापित करना तथा राज्य राजस्व विभाग कार्यालय द्वारा संग्रहीत करना अनिवार्य कर दिया गया, जिससे अन्य राज्यों के लिये अनुकरणीय उदाहरण स्थापित हुआ।

इच्छामृत्यु क्या है?

परिचय:

  • इच्छामृत्यु शब्द ग्रीक शब्दों "यू" और "थानोटोस" से लिया गया है, जिसका शाब्दिक अर्थ है अच्छी मृत्यु तथा इसे दया मृत्यु के रूप में वर्णित किया जाता है।
  • इच्छामृत्यु शब्द का प्रयोग फ्राँसिस बेकन ने 17वीं शताब्दी में एक आसान, पीड़ारहित एवं सुखद मृत्यु के लिये किया था, क्योंकि रोगी की शारीरिक पीड़ा को कम करना चिकित्सक का कर्त्तव्य एवं उत्तरदायित्व है।

सक्रिय बनाम निष्क्रिय इच्छामृत्यु:

सक्रिय इच्छामृत्यु

निष्क्रिय इच्छामृत्यु

इसे "सकारात्मक" अथवा "आक्रामक" इच्छामृत्यु के नाम से भी जाना जाता है।

इसे "नकारात्मक" अथवा "गैर-आक्रामक" इच्छामृत्यु भी कहा जाता है।

इसमें प्रत्यक्ष हस्तक्षेप द्वारा किसी व्यक्ति की जानबूझ कर मृत्यु कारित करने के लिये सकारात्मक कार्य या सकारात्मक कार्रवाई शामिल है।

इसमें जीवन रक्षक उपायों को हटा लेना अथवा जीवन के लिये आवश्यक चिकित्सा उपचार को रोकना शामिल है।

उदाहरण: घातक इंजेक्शन देना

उदाहरण: एंटीबायोटिक्स न देना या रोगी को जीवन रक्षक प्रणाली से हटाना

  • विधि आयोग की 241वीं रिपोर्ट:
    • विधि आयोग ने अपनी 241वीं रिपोर्ट, जिसका शीर्षक था निष्क्रिय इच्छामृत्यु- एक पुनर्विचार, में निष्क्रिय इच्छामृत्यु पर विधान बनाने का प्रस्ताव रखा।
    • इसने असाध्य रोगियों के चिकित्सा उपचार (रोगियों एवं चिकित्सा व्यवसायियों का संरक्षण) विधेयक, 2006 पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की।
    • परंतु स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय इस अधिनियम के पक्ष में नहीं था।
  • इच्छामृत्यु की वैश्विक स्थिति:
    • o   क्रूज़न बनाम मिसौरी स्वास्थ्य विभाग निदेशक (1990):
      • इस मामले में, अमेरिकी उच्चतम न्यायालय ने जीवनदायी चिकित्सा उपचार का प्रतिषेध करने का संवैधानिक अधिकार स्थापित किया, जिससे निष्क्रिय इच्छामृत्यु का मार्ग प्रशस्त हुआ।
    • रॉड्रिग्ज बनाम ब्रिटिश कोलंबिया (अटॉर्नी जनरल) (1993):
      • कनाडा के उच्चतम न्यायालय ने आशय के आधार पर सक्रिय एवं निष्क्रिय इच्छामृत्यु के मध्य अंतर स्पष्ट किया तथा निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति की पुष्टि की, जबकि सक्रिय इच्छामृत्यु को अनुचित घोषित किया।
    • वैको बनाम क्विल (1997):
      • अमेरिकी उच्चतम न्यायालय ने सक्रिय एवं निष्क्रिय इच्छामृत्यु के मध्य अंतर की पुष्टि करते हुए कहा कि अवांछित चिकित्सा उपचार (निष्क्रिय इच्छामृत्यु) का प्रतिषेध करने का अधिकार स्वीकार्य है, जबकि सहायता प्राप्त आत्महत्या (सक्रिय इच्छामृत्यु) को संविधान द्वारा संरक्षण नहीं दिया गया है।

एक लिविंग विल क्या है?

  • परिचय:
    • लिविंग विल, जिसे अग्रिम निर्देश के रूप में भी जाना जाता है, एक विधिक दस्तावेज़ है जो व्यक्तियों को जीवन के अंतिम समय में चिकित्सा उपचार के संबंध में अपनी इच्छाएँ व्यक्त करने की अनुमति देता है।
    • इसमें निर्देश दिये गए हैं कि कुछ परिस्थितियों में, जैसे कि घातक बीमारी अथवा अनवरत निष्क्रिय अवस्था में, जीवन-रक्षक उपायों को रोक अथवा हटा लिया जाए।
  • लिविंग विल का महत्त्व:
    • स्वायत्तता का संरक्षण: लिविंग विल, व्यक्ति को अपनी चिकित्सा देखभाल पर स्वायत्तता बनाए रखने तथा जीवन के अंतिम चरण के समय अपने व्यक्तिगत मूल्यों एवं प्राथमिकताओं का सम्मान सुनिश्चित करने का अधिकार देती है।
    • अनावश्यक पीड़ा से बचाव: अपनी इच्छाओं को स्पष्ट कर, व्यक्ति दीर्घकालिक पीड़ा से बच सकता है तथा मृत्यु की प्रक्रिया में गरिमा बनाए रख सकते हैं।
    • प्रियजनों पर बोझ कम करना: एक लिविंग विल, स्पष्ट मार्गदर्शन से संभावित संघर्षों को समाप्त कर यह सुनिश्चित करती है कि व्यक्ति की इच्छाओं का पालन किया जाए जिससे परिवार के सदस्यों पर भावनात्मक बोझ कम हो सकता है।

भारत में इच्छामृत्यु एवं लिविंग विल पर ऐतिहासिक निर्णयज विधियाँ कौन-सी हैं?

  • पी. रथिनम बनाम भारत संघ (1994)
    • उच्चतम न्यायालय ने भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 309 को निरस्त कर दिया, जो आत्महत्या के प्रयास को अपराध मानती थी, जिससे सम्मान के साथ मरने के अधिकार पर चर्चा का मार्ग प्रशस्त हो गया।
  • ज्ञान कौर बनाम पंजाब राज्य (1996)
    • उच्चतम न्यायालय ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 309 और 306 की वैधता को यथावत् रखा, परंतु इच्छामृत्यु को आत्महत्या से अलग कर दिया, जिससे निष्क्रिय इच्छामृत्यु की संभावना के लिये स्थान बना।
  • अरुणा रामचंद्र शानबाग बनाम भारत संघ (2011)
    • उच्चतम न्यायालय ने कुछ परिस्थितियों में निष्क्रिय इच्छामृत्यु की वैधता को मान्यता दी।
    • लगातार निष्क्रिय अवस्था या घातक बीमारी से पीड़ित रोगियों के लिये जीवन रक्षक उपचार को हटाने अथवा अस्वीकार करने के लिये दिशा-निर्देश प्रदान किये गए।
    • न्यायालय ने अग्रिम निर्देशों की आवश्यकता को स्वीकार किया, परंतु लिविंग विल के लिये विशिष्ट दिशा-निर्देश प्रदान नहीं किये।
  • कॉमन कॉज बनाम भारत संघ (2018)
    • उच्चतम न्यायालय ने निष्क्रिय इच्छामृत्यु की वैधता को यथावत् रखा तथा भारत में लिविंग विल के निष्पादन एवं कार्यान्वयन के लिये एक विस्तृत प्रक्रिया निर्धारित की।
    • निर्णय में संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित रोगी की स्वायत्तता, आत्मनिर्णय एवं मानव गरिमा के सिद्धांतों को मान्यता दी गई।
    • लिविंग विल के निष्पादन, निरस्तीकरण एवं कार्यान्वयन के लिये विस्तृत दिशा-निर्देश प्रदान किये गए, जिसमें विभिन्न प्राधिकरणों तथा मेडिकल बोर्डों को सम्मिलित किया गया।

लिविंग विल के कार्यान्वयन से संबंधित प्रक्रिया क्या है?

  • सत्यापन: स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को लिविंग विल पर कार्यवाही करने से पूर्व संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (JMFC) से लिविंग विल की प्रामाणिकता एवं वैधता का सत्यापन कर लेना चाहिये।
  • मेडिकल बोर्ड की समीक्षा: अनुभवी चिकित्सकों वाले एक मेडिकल बोर्ड को रोगी की स्थिति की समीक्षा करनी चाहिये तथा लिविंग विल की प्रयोज्यता को प्रामाणित करना चाहिये।
  • न्यायिक निरीक्षण: JMFC को रोगी से मिलना चाहिये, प्रासंगिक आयामों की जाँच करनी चाहिये तथा यदि वह इसकी वैधता एवं प्रयोज्यता से संतुष्ट हो तो लिविंग विल के कार्यान्वयन को अधिकृत करना चाहिये।
  • निरसन और नवीकरण: समय के साथ परिस्थितियों या प्राथमिकताओं में संभावित परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए, लिविंग विल के निरसन या नवीकरण के लिये प्रावधान किये जाने चाहिये।

लिविंग विल पर उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देश क्या हैं?

भारत के उच्चतम न्यायालय ने लिविंग विल की वैधता को मान्यता दी है तथा उनके निष्पादन और कार्यान्वयन के लिये दिशा-निर्देश प्रदान किये हैं:

  • पात्रता: केवल स्वस्थ मष्तिष्क वाले वयस्क ही स्वेच्छा एवं बिना किसी दबाव के अग्रिम निर्देश जारी कर सकते हैं।
  • विषय-वस्तु: अग्रिम निर्देश में स्पष्ट रूप से उन परिस्थितियों का उल्लेख होना चाहिये जिनमें चिकित्सा उपचार रोका या वापस लिया जा सकता है तथा यह स्पष्ट होना चाहिये।
  • निरसन: निष्पादक किसी भी समय निर्देश को निरस्त कर सकता है।
  • निष्पादन: दस्तावेज़ पर निष्पादक द्वारा दो साक्षियों की उपस्थिति में हस्ताक्षर किया जाना चाहिये तथा न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित किया जाना चाहिये।
  • संरक्षण: निर्देश की प्रतियाँ मजिस्ट्रेट, ज़िला न्यायालय एवं स्थानीय प्राधिकारियों द्वारा संरक्षित की जानी चाहिये।
  • कार्यान्वयन: यदि निष्पादक असाध्य रूप से बीमार हो जाता है अथवा अनवरत रूप से निष्क्रिय अवस्था में रहता है, तो एक मेडिकल बोर्ड निर्देश की समीक्षा करेगा एवं रोगी के परिवार के विचार करने के उपरांत इसके कार्यान्वयन पर निर्णय लेगा।