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स्थानीय समिति

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 23-May-2024

X बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य

"यदि संपूर्ण परिवाद को पढ़ा जाए तो यह निष्कर्षित है कि यह PoSH की धारा 9(1) के अंतर्गत समय-सीमा अवधि के भीतर थी”।

न्यायमूर्ति कौशिक चंदा

स्रोत: कलकत्ता उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में न्यायमूर्ति कौशिक चंदा की पीठ ने महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध और प्रतितोष) अधिनियम, 2013 (PoSH) के अंतर्गत समय-सीमा अवधि से संबंधित एक याचिका अनुज्ञात की।

  • कलकत्ता उच्च न्यायालय ने X बनाम पश्चिम बंगाल राज्य एवं अन्य के मामले में यह टिप्पणी दी।

सिद्ध नाथ पाठक और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • याची, एक विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर, ने स्थानीय समिति, 24-परगना (उत्तर) के समक्ष PoSH के तहत प्रत्यर्थी संख्या 7 के विरुद्ध परिवाद दर्ज किया।
  • याची ने अपने परिवाद में सितंबर 2019 से अप्रैल 2023 की अवधि में लैंगिक उत्पीड़न की घटनाओं और उसके बाद अप्रैल 2023 से 21 दिसंबर, 2023 की अवधि में हुए उत्पीड़न तथा अहितकर व्यवहार को अभिकथित किया।
  • 05 मार्च 2024 के एक आदेश द्वारा, स्थानीय समिति ने याची के परिवाद को समय-सीमा अवधि के आधार पर खारिज कर दिया।
    • समिति ने पाया कि अभिकथित लैंगिक उत्पीड़न की आखिरी घटना 30 अप्रैल 2023 के भीतर हुई थी किंतु परिवाद PoSH अधिनियम की धारा 9(1) के तहत समय-सीमा अवधि के बाद, 26 दिसंबर 2023 को दर्ज की गई थी।
    • समिति ने याची की विलंब की माफी की अर्जी भी खारिज कर दी।
  • स्थानीय समिति के आदेश से व्यथित होकर, याची ने कलकत्ता HC के समक्ष एक रिट याचिका दायर की।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने पाया कि स्थानीय समिति अप्रैल 2023 और 21 दिसंबर 2023 के बीच हुई अभिकथित घटनाओं को 2013 के अधिनियम की धारा 3(2) के दायरे में "लैंगिक उत्पीड़न" के रूप में मानने में विफल रही।
  • न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि परिवाद में किये अभिकथनों से पता चलता है कि अप्रैल 2023 और दिसंबर 2023 के बीच कथित तौर पर उत्पीड़न तथा अहितकर व्यवहार की परिस्थितियों का सितंबर 2019 एवं अप्रैल 2023 की अवधि के बीच याची के साथ हुए अभिकथित लैंगिक उत्पीड़न के साथ संबंध है।
  • न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि यदि संपूर्ण परिवाद को पढ़ा जाए तो यह निष्कर्षित है कि यह PoSH की धारा 9(1) के अंतर्गत सीमा अवधि के भीतर थी।
  • न्यायालय ने स्थानीय समिति द्वारा पारित 5 मार्च 2024 के आदेश को रद्द कर दिया और स्थानीय समिति को याची के परिवाद के संबंध में शुरू की गई कार्यवाही का समापन PoSH के उपबंधों के अनुसार गुणागुण के आधार पर करने का निर्देश दिया।

PoSH के अंतर्गत लैंगिक उत्पीड़न क्या है?

  • PoSH की धारा 2(n):
    "लैंगिक उत्पीड़न" के अंतर्गत निम्नलिखित कोई एक अथवा अधिक अवांछनीय कार्य अथवा व्यवहार (चाहे प्रत्यक्ष रूप से हो अथवा विवक्षित रूप से) शामिल हैं, अर्थात्-
    • शारीरिक संपर्क और अग्रगमन; अथवा
    • लैंगिक अनुकूलता की मांग अथवा अनुरोध करना; अथवा
    • लैंगिक अत्युक्त टिप्पणियाँ करना; अथवा
    • अश्लील साहित्य दिखाना; अथवा
    • लैंगिक प्रकृति का कोई अन्य अवांछनीय शारीरिक, मौखिक या अमौखिक आचरण;
  • PoSH की धारा 3(2):
    अन्य परिस्थितियों में निम्नलिखित परिस्थितियाँ, यदि वे लैंगिक उत्पीड़न के किसी कार्य अथवा आचरण के संबंध में होती हैं या विद्यमान हैं या उससे संबद्ध हैं, लैंगिक उत्पीड़न की कोटि में आ सकेंगी-
    • उसके नियोजन में अधिमानी उपचार का विवक्षित या सुस्पष्ट वचन देना; या
    • उसके नियोजन में अहितकर व्यवहार की विवक्षित या सुस्पष्ट धमकी देना; या
    • उसकी वर्तमान या भावी नियोजन की प्रास्थिति के बारे में विवक्षित या सुस्पष्ट धमकी देना; या
    • उसके कार्य में हस्तक्षेप करना या उसके लिये अभित्रासमय या संतापकारी या प्रतिकूल कार्य वातावरण सृजित करना; या
    • उसके स्वास्थ्य या सुरक्षा को प्रभावित करने की संभावना वाला अपमानजनक व्यवहार करना।

PoSH के अंतर्गत स्थानीय समिति क्या है?

  • धारा 6: स्थानीय समिति का गठन और उसकी अधिकारिता-
    • गठन: प्रत्येक ज़िला अधिकारी ऐसे स्थापनों से जहाँ आंतरिक समिति गठित नहीं की गई हैं या यदि परिवाद स्वयं नियोजक के विरुद्ध है, वहाँ लैगिक उत्पीड़न के परिवाद ग्रहण करने के लिये ज़िले में एक "स्थानीय समिति" का गठन करेगा।
    • नोडल अधिकारी: ज़िला अधिकारी 7 दिन की अवधि के भीतर परिवाद ग्रहण करने और परिवाद को संबद्ध स्थानीय समिति को अग्रेषित करने के लिये ग्रामीण/शहरी क्षेत्रों में नोडल अधिकारी को पदाभिहित करेगा।
    • अधिकारिता: स्थानीय समिति की अधिकारिता का विस्तार ज़िले के उन क्षेत्रों पर होगा, जहाँ वह गठित की गई है।
  • धारा 7: स्थानीय समिति की संरचना, सेवाधृति और अन्य शर्तें-
    • संरचना:
      • अध्यक्ष: ज़िला अधिकारी द्वारा नामनिर्दिष्ट प्रख्यात महिला सामाजिक कार्यकर्त्ता
      • 1 सदस्य: ज़िला अधिकारी द्वारा नामनिर्दिष्ट ब्लॉक/ताल्लुका में कार्यरत महिला
      • 2 सदस्य: महिलाओं के हित के लिये प्रतिबद्ध गैर सरकारी संगठनों/व्यक्तियों में से नामनिर्दिष्ट (अधिमानतः एक विधि ज्ञान से सुपरिचित और दूसरा SC/ST/OBC/अल्पसंख्यक)
      • पदेन सदस्य: सामाजिक कल्याण/महिला एवं बाल विकास से संबंधित अधिकारी
    • कार्यकाल: समिति का अध्यक्ष और प्रत्येक सदस्य, ज़िला अधिकारी द्वारा विनिर्दिष्ट की गई 3 वर्ष की अवधि के लिये पद धारण करेगा।
    • निष्कासन: यदि अध्यक्ष/सदस्य उपबंधो का उल्लंघन करते हैं, दोषी पाए जाते हैं, अनुशासनात्मक कार्यवाही में दोषी पाए जाते हैं या अपने पद का दुरुपयोग करते हैं तो उन्हें उनके पद से हटाया जा सकता है।
    • शुल्क/भत्ते: अध्यक्ष और नामांकित सदस्य निर्धारित कार्यवाही के संचालन के लिये शुल्क/भत्ते के हकदार हैं।
    • वर्ष 2016 का संशोधन:
    • वर्ष 2016 में संशोधन के माध्यम से प्रतिस्थापन से पूर्व, “स्थानीय समिति” पद को “स्थानीय परिवाद समिति” के रूप में जाना जाता था।

PoSH के अंतर्गत समय-सीमा अवधि क्या है?

  • धारा 9(1):
    • कोई व्यथित महिला, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का लिखित परिवाद, घटना की तिथि से तीन मास की अवधि के भीतर, आंतरिक समिति को, यदि इस प्रकार गठित की गई है या यदि इस प्रकार गठित नहीं की गई है तो स्थानीय समिति को कर सकेगी,
    • और शृंखलाबद्ध घटनाओं की दशा में अंतिम घटना की तारीख से तीन मास की अवधि के भीतर कर सकेगी।
  • उपबंध 1: परिवाद करने में सहायता-
    • जहाँ पारिवाद लिखित रूप में नहीं किया जा सकता है, पीठासीन अधिकारी अथवा आंतरिक समिति के किसी सदस्य अथवा अध्यक्ष अथवा स्थानीय समिति के किसी सदस्य, जिस प्रकार मामला हो, द्वारा लिखित में परिवाद करने के लिये महिला को सभी उचित सहायता प्रदान की जाएगी।
  • प्रावधान 2: समय-सीमा में विस्तार-
    • आंतरिक समिति अथवा, जिस भी प्रकार का मामला हो, स्थानीय समिति, लिखित रूप में दर्ज किये जाने वाले कारणों से, समय-सीमा को तीन मास की अवधि से अधिक नहीं बढ़ा सकती है, यदि वह संतुष्ट है कि परिस्थितियाँ ऐसी थीं, जिसने महिला को उक्त अवधि के भीतर परिवाद दर्ज करने से बाधित किया था।
  • धारा 9(2) के अंतर्गत विधिक वारिस अथवा अन्य द्वारा शिकायत:
    • जहाँ व्यथित महिला अपनी शारीरिक अथवा मानसिक असमर्थता अथवा मृत्यु के कारण अथवा अन्यथा परिवाद करने में असमर्थ है वहाँ उसका विधिक वारिस अथवा ऐसा कोई अन्य व्यक्ति जो विहित किया जाए, इस धारा के अधीन परिवाद कर सकेगा।