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आपराधिक कानून

नाराज़ी याचिका पर मजिस्ट्रेट ले सकते हैं संज्ञान

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 01-Sep-2023

जुनैद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

नाराज़ी याचिका को शिकायत मामले के रूप में मानने के लिये मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा चुना गया रास्ता बिल्कुल न्यायसंगत, कानूनी और उचित था।

उच्चतम न्यायालय

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

जुनैद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि अंतिम रिपोर्ट प्राप्त होने पर, मजिस्ट्रेट को नाराज़ी याचिका को शिकायत मामले के रूप में मानने का विवेकाधिकार है।

पृष्ठभूमि

  • वर्तमान मामले में अपीलकर्त्ता (जुनैद) ने प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज कराई थी। इसमें आरोप लगाया कि पुरानी दुश्मनी के चलते आरोपियों ने धारदार हथियारों से लैस होकर उस पर और उसके परिवार पर हमला किया और गाली-गलौज भी की।
  • जांच पूरी करने के बाद, अन्वेषण अधिकारी (Investigating Officer (IO) ने अंतिम पुलिस रिपोर्ट प्रस्तुत की।
  • अंतिम पुलिस रिपोर्ट से व्यथित होकर, अपीलकर्त्ता ने संबंधित मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM) के समक्ष एक नाराज़ी याचिका दायर की।
  • संबंधित मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM) ने अन्वेषण अधिकारी (Investigating Officer (IO) की अंतिम रिपोर्ट को खारिज़ कर दिया और निर्देश दिया कि नाराज़ी याचिका को शिकायत मामले के रूप में दर्ज किया जाए।
  • मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973 (CrPC) की धारा 200 और 202 का सहारा लेते हुए और शिकायतकर्त्ता एवं अन्य गवाहों के बयान दर्ज करने के बाद आरोपी प्रतिवादियों को समन जारी किया।
  • उक्त आदेश से व्यथित होकर, प्रतिवादी-अभियुक्त ने उच्च न्यायालय (HC) के समक्ष दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973 (CrPC) की धारा 482 के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अनुमति दे दी।
  • इसलिये, अपीलकर्त्ता (ज़ुनैद) द्वारा उच्चतम न्यायालय में वर्तमान अपील उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेशों से उत्पन्न हुई है। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ

  • न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और दीपांकर दत्ता की पीठ ने राकेश और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य (2014) मामले पर ध्यान दिया जिसमें यह माना गया था -
  • इसमें कोई संदेह नहीं है कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 173 के तहत पुलिस रिपोर्ट प्राप्त होने पर, मजिस्ट्रेट तीन विकल्पों का उपयोग कर सकता है:
    • सबसे पहले, वह यह निर्णय ले सकता है कि आगे बढ़ने के लिये कोई पर्याप्त आधार नहीं है और कार्रवाई छोड़ सकता है।
    • दूसरा, वह पुलिस रिपोर्ट और जारी प्रक्रिया के आधार पर दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 190(1)(B) के तहत अपराध का संज्ञान ले सकता है; और
    • तीसरा, वह मूल शिकायत के आधार पर दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 190(1)(A) के तहत अपराध का संज्ञान ले सकता है और धारा 200 के तहत शिकायतकर्त्ता और उसके गवाहों की शपथ पर जांच करने के लिये आगे बढ़ सकता है।
    • इसलिये, उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील की अनुमति देते हुए कहा कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM) द्वारा अन्वेषण अधिकारी (Investigating Officer (IO) की अंतिम रिपोर्ट को खारिज करना और मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के तहत दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 200 और 202 का सहारा लेना सही, उचित, न्यायोचित, कानूनी कदम था

पुलिस रिपोर्ट

  • पुलिस रिपोर्ट मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही शुरू करने के लिये दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के तहत की गई जांच के निष्कर्षों पर रिपोर्ट करने के लिये बनाया गया एक आधिकारिक रिकॉर्ड होता है।
  • इसे दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPc) की धारा 2(R) के तहत एक पुलिस अधिकारी द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPc) की धारा 173 की उपधारा (2) के तहत मजिस्ट्रेट को भेजी गई रिपोर्ट के रूप में परिभाषित किया गया है।

CrPc की धारा 173 :- अन्वेषण के समाप्त हो जाने पर पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट -

(2) (i) जैसे ही वह पूरा होता है, वैसे ही पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी, पुलिस रिपोर्ट पर उस अपराध का संज्ञान करने के लिये सशक्त मजिस्ट्रेट को राज्य सरकार द्वारा विहित प्ररूप में एक रिपोर्ट भेजेगा, जिसमें निम्नलिखित बातें कथित होंगी–

(क) पक्षकारों के नाम;

(ख) इत्तिला का स्वरूप;

(ग) मामले की परिस्थितियों से परिचित प्रतीत होने वाले व्यक्तियों के नाम;

(घ) क्या कोई अपराध किया गया प्रतीत होता है और यदि किया गया प्रतीत होता है, तो किसके द्वारा;

(ङ) क्या अभियुक्त गिरफ्तार कर लिया गया है;

(च) क्या वह अपने बंधपत्र पर छोड़ दिया गया है और यदि छोड़ दिया गया है तो वह बंधपत्र प्रतिभुओं सहित है या प्रतिभुओं रहित;

(छ) क्या वह धारा 170 के अधीन अभिरक्षा में भेजा जा चुका है।

(ज) जहाँ अन्वेषण भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 376, 376क, 376कख, 376ख, 376ग, 376घ, 376घक, 376घख या धारा 376ङ के अधीन अपराध से संबंधित है, क्या स्त्री की, चिकित्सीय परीक्षण की रिपोर्ट संलग्न की गई है।

(ii) वह अधिकारी अपने द्वारा की गई कार्यवाही की संसूचना, उस व्यक्ति को, यदि कोई हो, जिसने अपराध किये जाने के संबंध में सर्वप्रथम इत्तिला दी उस रीति से देगा, जो राज्य सरकार द्वारा विहित की जाए।

नाराज़ी याचिका (Protest Petition)

  • दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPc) नाराज़ी याचिका के लिये कोई विशिष्ट परिभाषा प्रदान नहीं करती है लेकिन यह आपराधिक कानून का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
  • जब पुलिस किसी मामले की जांच करती है तो जांच पूरी होने के बाद दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPc) की धारा 173(2) के तहत पुलिस रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को सौंपी जाती है।
  • यदि पीड़ित या शिकायतकर्त्ता पुलिस रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं है, तो वह संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष अपना असंतोष बताते हुए नाराज़ी याचिका दायर कर सकता है और आगे की जांच के लिये प्रार्थना कर सकता है। साथ ही पीड़ित व्यक्ति दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPc) की धारा 200 और 202 के तहत आगे की कार्यवाही के लिये भी प्रार्थना कर सकता है।
    • दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 202 मजिस्ट्रेट की ओर से प्रक्रिया के मुद्दे (अभियुक्त के खिलाफ) को स्थगित करने पर केंद्रित है।
  • यदि नाराज़ी याचिका स्वीकार कर ली जाती है, तो मजिस्ट्रेट दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPc) की धारा 190 के तहत मामले का संज्ञान लेता है और आरोपी व्यक्ति को नोटिस जारी करता है।

भारतीय दंड संहिता, 1860

प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) धारा 147, 148, 149, 307, 323, 324, 504 से संबंधित है जो इस प्रकार हैं:

  • भारतीय दंड संहिता की धारा 147 — बल्वा करने के लिये दंड – जो कोई बल्वा करने का दोषी होगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 148 — घातक आयुध से सज्जित होकर बल्वा करना – जो कोई घातक आयुध से, या किसी ऐसी चीज से जिससे आक्रामक आयुध के रूप में उपयोग किये जाने पर मृत्यु कारित होनी संभाव्य हो, सज्जित होते हुए बल्वा करने का दोषी होगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 149 — विधिविरुद्ध जमाव का हर सदस्य, सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने में किये गए अपराध का दोषी – यदि विधिविरुद्ध जमाव के किसी सदस्य द्वारा उस जमाव के सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने में अपराध किया जाता है, या कोई ऐसा अपराध किया जाता है, जिसका किया जाना उस जमाव के सदस्य उस उद्देश्य को अग्रसर करने में संभाव्य जानते थे, तो हर व्यक्ति, जो उस अपराध के किये जाने के समय उस जमाव का सदस्य है, उस अपराध का दोषी होगा।
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 307 — हत्या करने का प्रयत्न – जो कोई किसी कार्य को ऐसे आशय या ज्ञान से और ऐसी परिस्थितियों में करेगा कि यदि वह उस कार्य द्वारा मृत्यु कारित कर देता है तो वह हत्या का दोषी होता, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा और यदि ऐसे कार्य द्वारा किसी व्यक्ति को उपहति कारित हो जाए, तो वह अपराधी या तो आजीवन कारावास से या ऐसे दंड से दंडनीय होगा, जैसा एतस्मिन पूर्व वर्णित है।
    • आजीवन सिद्धदोष द्वारा प्रयत्न – जबकि इस धारा में वर्णित अपराध करने वाला कोई व्यक्ति आजीवन कारावास के दंडादेश के अधीन हो, तब यदि उपहति कारित हुई हो, तो वह मृत्यु से दंडित किया जा सकेगा।
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 323 — स्वेच्छया उपहति कारित करने के लिये दंड – उस दशा के सिवाय, जिसके लिये धारा 334 में उपबंध है, जो कोई स्वेच्छया उपहति कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हज़ार रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 324 — खतरनाक आयुधों या साधनों द्वारा स्वेच्छया उपहति कारित करना – उस दशा के सिवाय जिसके लिये धारा 334 में उपबंध है, जो कोई असन, वेधन या काटने के किसी उपकरण द्वारा या किसी ऐसे उपकरण द्वारा जो यदि आक्रामक आयुध के तौर पर उपयोग में लाया जाए, तो उससे मृत्यु कारित होना संभाव्य है या अग्नि या किसी तप्त पदार्थ द्वारा, या किसी विष या किसी संक्षारक पदार्थ द्वारा या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा या किसी ऐसे पदार्थ द्वारा, जिसका श्वास में जाना या निगलना या रक्त में पहुँचना मानव शरीर के लिये हानिकारक है, या किसी जीवजंतु द्वारा स्वेच्छया उपहति कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 504 — लोकशांति भंग कराने को प्रकोपित करने के आशय से साशय अपमान — जो कोई किसी व्यक्ति को साशय अपमानित करेगा और तद्द्वारा उस व्यक्ति को इस आशय से, या यह संभाव्य जानते हुए, प्रकोपित करेगा कि ऐसे प्रकोपन से वह लोक शांति भंग या कोई अन्य अपराध कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।