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आपराधिक कानून
मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा शिकायत की जाँच का निर्देश दे सकता है
« »20-Dec-2023
वुंडी शंकर विजया भास्करम बनाम आंध्र प्रदेश राज्य "मजिस्ट्रेट के पास पुलिस को शिकायत अग्रेषित करने का विवेकाधिकार है क्योंकि इससे विभिन्न संज्ञेय अपराधों का खुलासा होता है" न्यायमूर्ति डॉ. वी.आर.के. कृपा सागर |
स्रोत: आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, वुंडी शंकर विजया भास्करम बनाम आंध्र प्रदेश राज्य के मामले में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने माना है कि मजिस्ट्रेट के पास पुलिस को शिकायत अग्रेषित करने का विवेकाधिकार है क्योंकि इससे विभिन्न संज्ञेय अपराधों का खुलासा होता है, और पुलिस मामले की गहनता से जाँच कर सकती है।
वुंडी शंकर विजया भास्करम बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में, याचिकाकर्ता को पोलसनपल्ली गाँव में श्री रामलिंगेश्वर स्वामी मंदिर के एकल न्यासी के रूप में नियुक्त किया गया था।
- कुप्रबंधन, बेईमानी, समर्पण का अभाव, धन के दुरुपयोग के आरोप सामने आने पर, बंदोबस्ती उपायुक्त, काकीनाडा ने आपराधिक याचिकाकर्ता को उसके कर्तव्यों से मुक्त कर दिया।
- यह प्रतिवादी द्वारा संबंधित न्यायिक प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट, भीमाडोले के समक्ष दायर एक लिखित शिकायत का परिणाम था।
- संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत की गई शिकायत को उसके द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 156(3) के तहत जाँच के लिये भेजा गया था।
- याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि धारा 156(3) के तहत मजिस्ट्रेट के आदेश में पुलिस को शिकायत अग्रेषित करने के संक्षिप्त कारण शामिल होने चाहिये। लेकिन यहाँ दिया गया आदेश बिना किसी कारण के था।
- इसके बाद, याचिकाकर्ता द्वारा अपने विरुद्ध कार्यवाही को रद्द करने के लिये आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष एक आपराधिक याचिका दायर की गई थी।
- अपील को खारिज़ करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि आपराधिक कार्यवाही को रद्द नहीं किया जा सकता।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति डॉ. वी.आर.के. कृपा सागर ने कहा कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस को शिकायत अग्रेषित करके सही किया क्योंकि इससे विभिन्न संज्ञेय अपराधों का खुलासा हुआ और पुलिस मामले की गहन जाँच कर सकती है।
- शिकायत में विभिन्न संज्ञेय अपराधों का आरोप लगाया गया था, मजिस्ट्रेट ने CrPC की धारा 156(3) के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए पुलिस को मंदिर के न्यासी द्वारा रखे गए विशाल दस्तावेज़ों और रिकॉर्ड की जाँच करने के लिये कहा। शिकायत की गहनता से जाँच की गई और चार्जशीट भी दाखिल की गई।
- न्यायालय ने मेसर्स सुप्रीम भिवंडी वाडा मैनर इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड बनाम महाराष्ट्र राज्य (2021) के मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय पर भी भरोसा किया।
- इस मामले में, यह माना गया कि धारा 156(3) के तहत पुलिस को शिकायत अग्रेषित करने में मजिस्ट्रेट के आदेश को वास्तव में एक निर्देश के अलावा किसी अन्य विस्तार की आवश्यकता नहीं है।
CrPC की धारा 156 क्या है?
- परिचय:
- यह धारा संज्ञेय मामलों की जाँच करने के लिये पुलिस अधिकारी की शक्ति से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-
(1) किसी पुलिस स्टेशन का कोई भी प्रभारी अधिकारी, मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना, किसी भी संज्ञेय मामले की जाँच कर सकता है, ऐसे स्टेशन की सीमा के भीतर स्थानीय क्षेत्र पर अधिकार क्षेत्र रखने वाले न्यायालय को अध्याय XIII के प्रावधानों के तहत जाँच करने या मुकदमा चलाने की शक्ति होगी।
(2) ऐसे किसी भी मामले में किसी भी पुलिस अधिकारी की कार्यवाही पर किसी भी स्तर पर इस आधार पर सवाल नहीं उठाया जाएगा कि मामला ऐसा था जिसकी जाँच करने के लिये ऐसे अधिकारी को इस धारा के तहत अधिकार प्राप्त नहीं था।
(3) धारा 190 के तहत अधिकार प्राप्त कोई भी मजिस्ट्रेट उपरोक्तानुसार ऐसी जाँच का आदेश दे सकता है।
- यह धारा संज्ञेय मामलों की जाँच करने के लिये पुलिस अधिकारी की शक्ति से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-
- निर्णयज विधि:
- मोहम्मद यूसुफ बनाम श्रीमती अफाक जहाँ और अन्य (2006) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कोई भी न्यायिक मजिस्ट्रेट अपराध का नोटिस लेने से पहले संहिता की धारा 156(3) के तहत जाँच का आदेश दे सकता है।