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सिविल कानून
सिविल प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत वाद की अनुरक्षणशीलता
« »18-Jan-2024
अस्मा लतीफ एवं अन्य बनाम शब्बीर अहमद एवं अन्य "सिविल वाद में अंतरिम राहत देने से पहले, अनुरक्षणशीलता और वैधता की प्रथम दृष्टया संतुष्टि सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है।" न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, दीपांकर दत्ता और अरविंद कुमार |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने अस्मा लतीफ एवं अन्य बनाम शब्बीर अहमद एवं अन्य के मामले में सिविल कानून के विभिन्न पहलुओं की जाँच की। इसमें यह परिप्रेक्ष्य भी शामिल था कि, किसी सिविल वाद में अंतरिम राहत देने से पहले, अनुरक्षणशीलता और वैधता की प्रथम दृष्टया संतुष्टि सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है।
अस्मा लतीफ एवं अन्य बनाम शब्बीर अहमद एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- यह वाद अपीलकर्त्ताओं को उनकी परदादी द्वारा उपहार में दी गई संपत्ति से संबंधित था।
- अपने वाद के जवाब में, तीन प्रतिवादियों में से दो ने लिखित बयान दाखिल नहीं किया जिसके परिणामस्वरूप ट्रायल कोर्ट ने उनके खिलाफ निर्णय दिया।
- उच्चतम न्यायालय उस परिदृश्य से निपट रहा था जहाँ प्रतिवादी एक लिखित बयान प्रस्तुत करने में विफल रहता है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
उच्चतम न्यायालय ने वाद की अनुरक्षणशीलता पर सवाल तय किये बिना अंतरिम राहत नहीं देने के संबंध में निम्नलिखित निर्देश दिये:
- प्रथम दृष्टया संतुष्टि की रिकॉर्डिंग:
- जहाँ किसी सिविल न्यायालय के समक्ष किसी वाद में अंतरिम राहत का दावा किया जाता है और ऐसी राहत दिये जाने से प्रभावित होने वाला पक्ष, या वाद का कोई अन्य पक्ष, उसकी अनुरक्षणशीलता का मुद्दा उठाता है या कि यह कानून द्वारा वर्जित है और इस आधार पर भी तर्क दिया गया है कि अंतरिम राहत नहीं दी जानी चाहिये, किसी भी रूप में राहत देने से पहले, कम-से-कम एक प्रथम दृष्टया संतुष्टि के गठन और रिकॉर्डिंग से पूर्व पता होना चाहिये कि वाद अनुरक्षणीय है या कानून द्वारा वर्जित नहीं है।
- धारणा पर अंतरिम राहत का अनुदान:
- किसी न्यायालय के लिये अनुरक्षणशीलता के प्रश्न पर अपनी प्रथम दृष्टया संतुष्टि दर्ज न करना अनुचित होगा, फिर भी न्यायालय, इस धारणा पर संरक्षण प्रोटेम(कुछ समय के लिये) देने के लिये तैयार हो कि आदेश XIV, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के नियम 2 के तहत अनुरक्षणशीलता के प्रश्न को प्रारंभिक मुद्दे के रूप में तय किया जाना है।
- यह शक्ति का अनुचित प्रयोग हो सकता है।
- किसी न्यायालय के लिये अनुरक्षणशीलता के प्रश्न पर अपनी प्रथम दृष्टया संतुष्टि दर्ज न करना अनुचित होगा, फिर भी न्यायालय, इस धारणा पर संरक्षण प्रोटेम(कुछ समय के लिये) देने के लिये तैयार हो कि आदेश XIV, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के नियम 2 के तहत अनुरक्षणशीलता के प्रश्न को प्रारंभिक मुद्दे के रूप में तय किया जाना है।
- असाधारण स्थितियों में उचित आदेश:
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यदि कोई असाधारण स्थिति उत्पन्न होती है, जहाँ वाद की अनुरक्षणशीलता के बिंदु पर निर्णय लेने में समय लग सकता है और ऐसे निर्णय के लंबित रहने तक सुरक्षा प्रोटेम न देने से अपरिवर्तनीय परिणाम हो सकते हैं, तो न्यायालय अपने द्वारा अपनाई गई कार्रवाई को उचित ठहराते हुए ऊपर बताए गए तरीके से उचित आदेश देने के लिये तैयात्र हो सकता है।
- दूसरे शब्दों में, यदि आवश्यक हो, तो राहत का दावा करने वाले पक्ष को अपूर्णीय क्षति या चोट या अनुचित कठिनाई से बचने के लिये और/या यह सुनिश्चित करने के लिये कि न्यायालय के हस्तक्षेप न करने के कारण कार्यवाही निष्फल न हो जाए।
वाद की अनुरक्षणशीलता को प्रभावित करने वाले कारक क्या हैं?
- अधिकार क्षेत्र:
- न्यायालय के पास विवाद की विषय वस्तु और इसमें शामिल पक्षों पर अधिकार क्षेत्र होना चाहिये।
- यदि न्यायालय के पास क्षेत्राधिकार का अभाव है, तो वाद अनुरक्षणीय नहीं हो सकता है।
- सीमा अवधि:
- CPC अक्सर एक सीमा अवधि निर्दिष्ट करती है जिसके भीतर वाद दायर किया जाना चाहिये।
- यदि कोई वाद सीमा अवधि की समाप्ति के बाद दायर किया जाता है, तो यह अनुरक्षणीय नहीं हो सकता है।
- कार्रवाई का कारण:
- वादी के पास कानून द्वारा मान्यता प्राप्त कार्रवाई का वैध कारण होना चाहिये।
- वादपत्र में आरोपित तथ्यों से कानूनी अधिकार और उस अधिकार के उल्लंघन का खुलासा होना चाहिये।
- आवश्यक पक्ष:
- वाद में शामिल पक्षों के पास वाद दायर करने की विधिक क्षमता होनी चाहिये।
- गलत तरीके से नामित या अनुचित तरीके से शामिल होने वाले पक्ष वाद को प्रभावित कर सकते हैं।
- CPC के आदेश I, नियम 9 में कहा गया है कि "किसी भी वाद को पक्षों के कुसंयोजन या असंयोजन के कारण अप्रभावी नहीं माना जाएगा, और न्यायालय के समक्ष लाए गए हर वाद में न्यायालय पक्षों के अधिकारों एवं हितों के संदर्भ में विवाद सुलझा सकता है।
- बशर्ते कि इस नियम की कोई भी बात किसी आवश्यक पक्ष के असंयोजन पर लागू नहीं होगी।
- प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं का अनुपालन:
- CPC में आमतौर पर वाद दायर करने का तरीका, सम्मन प्रक्रिया और अन्य औपचारिकताओं का निर्धारण किया गया है।
- इन प्रक्रियात्मक नियमों का पालन करने में विफलता से मुकदमे की स्थिरता प्रभावित हो सकती है।
- पूर्व न्याय:
- यदि विवादित मामले का फैसला पहले ही समान पक्षों के बीच हो चुका है, तो CPC की धारा 11 के तहत उन्हीं मुद्दों पर नया मुकदमा दायर करने को रोकने हेतु पुनर्न्याय का सिद्धांत लागू होगा।