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HMA के तहत भरण-पोषण प्रावधान लैंगिक रूप से तटस्थ है

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 22-Nov-2023

चेतराम माली बनाम करिश्मा सैनी

"HMA की धारा 24 लैंगिक रूप से तटस्थ है।"

न्यायमूर्ति वी. कामेश्वर राव और न्यायमूर्ति अनूप कुमार मेंदीरत्ता

स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चेतराम माली बनाम करिश्मा सैनी मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना है कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 24 में निहित प्रावधान लैंगिक रूप से तटस्थ हैं।

चेतराम माली बनाम करिश्मा सैनी मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • अपीलकर्त्ता (पति) का विवाह 19 नवंबर, 2018 को हिंदू रीति-रिवाजों एवं समारोहों के अनुसार प्रतिवादी से हुआ था।
  • पक्षों के बीच मतभेद के कारण प्रतिवादी (पत्नी) 7 जुलाई, 2020 को अपने माता-पिता के घर वापस लौट आई।
  • अपीलकर्त्ता ने फैमिली कोर्ट के समक्ष प्रतिवादी के खिलाफ तलाक की याचिका दायर की, जिसमें HMA की धारा 24 के तहत आक्षेपित आदेश पारित किया गया, जिसमें अपीलकर्त्ता (पति) को मुकदमे के व्यय के साथ-साथ प्रतिवादी को भरण-पोषण के लिये प्रति माह ₹30,000/- का भुगतान करने का निर्देश दिया गया।
  • इसके बाद अपीलकर्त्ता द्वारा फैमिली कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष अपील दायर की गई।
    • उच्च न्यायालय ने आदेश में संशोधन करते हुए अपील खारिज़ कर दी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति वी. कामेश्वर राव और न्यायमूर्ति अनूप कुमार मेंदीरत्ता की पीठ ने कहा कि HMA के तहत पति या पत्नी को कार्यवाही लंबित रहने के दौरान भरण-पोषण और मुकदमेबाज़ी व्यय देने का प्रावधान लैंगिक रूप से तटस्थ है।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि तुल्यता गणितीय परिशुद्धता के साथ नहीं होनी चाहिये, बल्कि इसका उद्देश्य पति/पत्नी को लंबित भरण-पोषण (मुकदमे के लंबित रहने के दौरान भरण-पोषण प्रदान करना) और मुकदमेबाज़ी के व्ययों से राहत प्रदान करना है, जो भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं तथा कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान समर्थन देना एवं यह सुनिश्चित करना कि आय के स्रोत की कमी के कारण पक्ष को नुकसान न हो।

HMA की धारा 24 क्या है?

परिचय:

  • यह धारा मेंटेनेंस पेंडेंट लाइट और कार्यवाही के व्ययों से संबंधित है। यह प्रकट करता है कि:

जहाँ इस अधिनियम के तहत किसी भी कार्यवाही में न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि पत्नी या पति, जैसा भी मामला हो, के पास उसके समर्थन एवं कार्यवाही के आवश्यक व्ययों के लिये आय पर्याप्त नहीं है, तो वह, पत्नी या पति का आवेदन, प्रतिवादी को याचिकाकर्त्ता को कार्यवाही के व्ययों का भुगतान करने का आदेश दे सकता है तथा कार्यवाही के दौरान मासिक रूप से याचिकाकर्त्ता की स्वयं की आय एवं प्रतिवादी की आय को ध्यान में रखते हुए यह न्यायालय को उचित लगना चाहिये।

बशर्ते कि कार्यवाही के व्ययों और कार्यवाही के दौरान ऐसी मासिक राशि के भुगतान के लिये आवेदन, जहाँ तक संभव हो, पत्नी या पति को नोटिस जारी करने की तिथि से साठ दिनों के भीतर, जैसा भी मामला हो, दिया जाना चाहिये।

निर्णयज विधि :

  • चित्रा लेखा बनाम रंजीत राय (1977) में दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना कि HMA की धारा 24 का उद्देश्य कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान निर्धन पति या पत्नी को उनका भरण-पोषण करने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
  • जसबीर कौर सहगल बनाम डिस्ट्रिक्ट जज (1997) मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना है कि HMA की धारा 24 को निर्बंधित अर्थ (Restricted Meaning) नहीं दिया जा सकता है। आगे यह माना गया कि पत्नी के भरण-पोषण का दावा करने के अधिकार में उसका स्वयं का भरण-पोषण और उसके साथ रहने वाली उसकी अविवाहित बेटी का भरण-पोषण भी शामिल होगा।